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बिलासपुर , 29 जून [ राकेश शर्मा ] ! सदर के विधायक त्रिलोक जमवाल ने आपदा प्रबंधन को लेकर प्रदेश सरकार को आड़े हाथों लिया है। उन्होंने कहा कि पिछले साल आपदा से बेघर और प्रभावित हुए लोगों के जख्म अभी तक भी नहीं भर पाए हैं। प्रभावित परिवार एक साल से सरकार और प्रशासन से मुआवजे की गुहार लगा रहे हैं। सरकार ने राहत के नाम पर चहेतों की जेबें भरने में कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन वास्तविक पीड़ितों की झोली अभी भी खाली है। आलम यह है कि कई सड़कों पर गिरा मलबा भी अभी तक पूरी तरह से नहीं उठाया गया है, जबकि चहेते ठेकेदारों को भुगतान किया जा चुका है। इस साल बरसात का मौसम दस्तक दे चुका है। प्रदेेश के कई जिलों में पहली ही बारिश से आपदा प्रबंधन की पोल खुल गई है, लेकिन मुख्यमंत्री और उनके साथियों का पूरा फोकस केवल चुनाव प्रचार पर है। त्रिलोक जमवाल ने कहा कि पिछले साल पूरे प्रदेश के साथ ही बिलासपुर सदर विधानसभा क्षेत्र में भी आपदा ने बड़े पैमाने पर कहर बरपाया था। इस विधानसभा क्षेत्र में 9 पक्के और 23 कच्चे मकान पूरी तरह से ध्वस्त हो गए थे, जबकि 2 पक्के और 139 कच्चे मकान क्षतिग्रस्त हुए थे। इसके अलावा 51 रसोईघर, 313 गौशालाएं और कई शौचालय भी ढह गए थे। सरकार ने घोषणा की थी कि जिन लोगों के मकान पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हुए हैं, उन्हें 7-7 लाख रुपये मुआवजा दिया जाएगा। यह पैसा उन चहेतों को बांटा गया, जिनके मकान आंशिक तौर पर क्षतिग्रस्त हुए थे। बेघर हो चुके कई परिवार आज भी सरकार की उस घोषणा के अनुरूप मुआवजे का इंतजार कर रहे हैं। प्रशासन के पास आए दिन लोग शिकायत लेकर पहुंच रहे हैं कि पिछले साल आपदा में पूरी तरह से बेघर हो जाने के बावजूद उन्हें मुआवजे के नाम पर महज डेढ़-दो हजार रुपये मिले हैं। इससे सरकार के दावों और हकीकत का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। त्रिलोक जमवाल ने कहा कि पिछले साल आपदा में बंद हुई सड़कों को 72 घंटों के भीतर बहाल करने का दावा किया गया था, लेकिन सदर विधानसभा क्षेत्र में कई सड़कों की बहाली के लिए लोगों को कई माह तक इंतजार करना पड़ा। आलम यह है कि अभी भी कई सड़कों से मलबा पूरी तरह से नहीं हटाया गया है, जबकि उसके एवज में ‘मित्रों की इस सरकार’ की ओर से चहेते ठेकेदारों को भुगतान भी हो चुका है। बरसात का मौसम फिर से आ गया है, लेकिन ‘सुख’ की इस सरकार ने पिछले साल हुई तबाही से सबक लेने की जहमत नहीं उठाई है। पहली ही बारिश में शिमला व सोलन समेत कई जिलों में हुई तबाही ने सरकार के आपदा प्रबंधन के दावों की कलई खोल दी है। समय रहते कारगर कदम उठाने के बजाए मुख्यमंत्री का फोकस मुख्य रूप से देहरा विधानसभा क्षेत्र पर है, जहां से उनकी धर्मपत्नी चुनाव लड़ रही हैं। बेहतर होगा कि सुखविंदर सिंह सुक्खू लोगों की जान-माल की रक्षा को प्राथमिकता देकर मुख्यमंत्री होने का धर्म निभाएं।
बिलासपुर , 29 जून [ राकेश शर्मा ] ! सदर के विधायक त्रिलोक जमवाल ने आपदा प्रबंधन को लेकर प्रदेश सरकार को आड़े हाथों लिया है। उन्होंने कहा कि पिछले साल आपदा से बेघर और प्रभावित हुए लोगों के जख्म अभी तक भी नहीं भर पाए हैं। प्रभावित परिवार एक साल से सरकार और प्रशासन से मुआवजे की गुहार लगा रहे हैं।
सरकार ने राहत के नाम पर चहेतों की जेबें भरने में कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन वास्तविक पीड़ितों की झोली अभी भी खाली है। आलम यह है कि कई सड़कों पर गिरा मलबा भी अभी तक पूरी तरह से नहीं उठाया गया है, जबकि चहेते ठेकेदारों को भुगतान किया जा चुका है। इस साल बरसात का मौसम दस्तक दे चुका है। प्रदेेश के कई जिलों में पहली ही बारिश से आपदा प्रबंधन की पोल खुल गई है, लेकिन मुख्यमंत्री और उनके साथियों का पूरा फोकस केवल चुनाव प्रचार पर है।
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त्रिलोक जमवाल ने कहा कि पिछले साल पूरे प्रदेश के साथ ही बिलासपुर सदर विधानसभा क्षेत्र में भी आपदा ने बड़े पैमाने पर कहर बरपाया था। इस विधानसभा क्षेत्र में 9 पक्के और 23 कच्चे मकान पूरी तरह से ध्वस्त हो गए थे, जबकि 2 पक्के और 139 कच्चे मकान क्षतिग्रस्त हुए थे। इसके अलावा 51 रसोईघर, 313 गौशालाएं और कई शौचालय भी ढह गए थे। सरकार ने घोषणा की थी कि जिन लोगों के मकान पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हुए हैं, उन्हें 7-7 लाख रुपये मुआवजा दिया जाएगा।
यह पैसा उन चहेतों को बांटा गया, जिनके मकान आंशिक तौर पर क्षतिग्रस्त हुए थे। बेघर हो चुके कई परिवार आज भी सरकार की उस घोषणा के अनुरूप मुआवजे का इंतजार कर रहे हैं। प्रशासन के पास आए दिन लोग शिकायत लेकर पहुंच रहे हैं कि पिछले साल आपदा में पूरी तरह से बेघर हो जाने के बावजूद उन्हें मुआवजे के नाम पर महज डेढ़-दो हजार रुपये मिले हैं। इससे सरकार के दावों और हकीकत का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।
त्रिलोक जमवाल ने कहा कि पिछले साल आपदा में बंद हुई सड़कों को 72 घंटों के भीतर बहाल करने का दावा किया गया था, लेकिन सदर विधानसभा क्षेत्र में कई सड़कों की बहाली के लिए लोगों को कई माह तक इंतजार करना पड़ा। आलम यह है कि अभी भी कई सड़कों से मलबा पूरी तरह से नहीं हटाया गया है, जबकि उसके एवज में ‘मित्रों की इस सरकार’ की ओर से चहेते ठेकेदारों को भुगतान भी हो चुका है।
बरसात का मौसम फिर से आ गया है, लेकिन ‘सुख’ की इस सरकार ने पिछले साल हुई तबाही से सबक लेने की जहमत नहीं उठाई है। पहली ही बारिश में शिमला व सोलन समेत कई जिलों में हुई तबाही ने सरकार के आपदा प्रबंधन के दावों की कलई खोल दी है। समय रहते कारगर कदम उठाने के बजाए मुख्यमंत्री का फोकस मुख्य रूप से देहरा विधानसभा क्षेत्र पर है, जहां से उनकी धर्मपत्नी चुनाव लड़ रही हैं। बेहतर होगा कि सुखविंदर सिंह सुक्खू लोगों की जान-माल की रक्षा को प्राथमिकता देकर मुख्यमंत्री होने का धर्म निभाएं।
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