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चम्बा ! आज एसएफआई इकाई चम्बा के द्वारा महाविद्यालय चम्बा के गेट पर धरना प्रदर्शन किया गया यह धरना प्रदर्शन एसएफआई की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के आव्हान पर नीट के विरोध में किया गया धरने का संचालन करते हुए परिसर सचिव खेमराज ने कहा कि नीट को आमतौर पर मेडिकल कोर्सों के लिए केवल प्रवेश परीक्षा समझ लेने की गलती कर दी जाती है। यह विश्वविद्यालयों और क्लासरूम की पढ़ाई ख़त्म करने का एक स्पष्ट रोडमैप है. यह आइसबर्ग (हिमखंड) का शीर्ष भर है. यह नई शिक्षा नीति २०२० के उस एजेंडे की शुरुआत है जिसके तहत सभी स्नातक कोर्सों के लिए एनटीए द्वारा एक राष्ट्रीय योग्यता परीक्षा आयोजित की जाएगी। सामान्यतः एक विशवविद्यालय अपनी प्रवेश प्रक्रिया खुद तय करता है। नीट में संसद में एक क़ानून के ज़रिये केन्द्र सरकार दाखिले की यह प्रक्रिया तय करती है। संविधान की ७वी अनुसूची की दूसरी सूची के ३२वी एंट्री में राज्यों को विश्वविद्यालयों के निर्माण और उनके विनियमन का पूर्ण अधिकार वर्णित है। नीट राज्यों से राज्य विश्वविद्यालयों द्वारा की प्रवेश प्रक्रिया का अधिकार छीन लेती है। और सब कुछ बिना संविधान में संशोधन किये हो रहा है। मेडिकल सेवाएं और मेडिकल शिक्षा एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. हर राज्य को सर्वव्यापी चिकित्सा सेवा मुहैया कराने के लिए अपनी खुद की प्रक्रिया तय करनी होती है और उसी के हिसाब से मेडिकल कोर्स के लिए प्रवेश प्रक्रिया बनानी होती है. राज्यों का यह अधिकार छीन लिया गया है। तमिल नाडु में एक लम्बे समय तक नीट के ज़रिये प्रवेश होने से प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में डॉक्टरों की कमी आ जायेगी. स्पष्टतः निजी संस्थान अस्पतालों की एक श्रंखला बना लेंगे जो कार्पोरेट अस्पतालों के फायदे के लिए ही काम करेगी. नीट हमारी विद्यालयी पढ़ाई को अप्रासंगिक बनाता है जिससे कक्षाओं की पढ़ाई कोचिंग, और ट्रेनिंग सेंटरों के ज़रिये प्रतिस्थापित हो जायेगी। नीट देश में मेडिकल कॉलेज खोलने के लिए विदेशी पूँजी जो आमंत्रित करने की व्यापक योजना है। नीट केवल भारतीयों के लिए नहीं है. भारतवासियों के साथ-साथ अप्रवासी भारतीयों और विदेशी नागरिक भी मेडिकल सीट्स में दाखिले के लिए आवेदन के अर्ह है। गुजरात या महारष्ट्र की बस्तियों से आने वाले एक विद्यार्थी को लन्दन के वेस्टमिन्स्टर से आने वाले विद्यार्थियों के साथ कम्पीट करना होगा। तमिल नाडु मेडिकल प्रवेश के इस व्यवसायी करण के खिलाफ संघर्ष की अगुआई कर रहा है। यह संघर्ष पूरे भारत के लिए है। चुनौती केवल तमिल नाडु विधानसभा में पेश किये गए बिल के सामने ही नहीं बल्कि लोकतंत्र और संघीय नीति पर आधारित भारत के संविधान की है। जिला उपाध्यक्ष कॉमरेड प्रेम ने कहा इसके साथ साथ हमारी दूसरी मांग जो एसएफआई काफी लंबे समय से करती आ रही है लेकिन प्रशासन और सरकार इस पर थोड़ा भी ध्यान नहीं दे रही है जब महाविद्यालय के अंदर प्राध्यापक ही नहीं होंगे तो छात्रों की पढ़ाई कैसे होगी तो छात्र की पढ़ाई नहीं हुई तो एग्जाम कैसे पास करेंगे एसएफआई काफी लंबे समय से मांग कर रही है कि महाविद्यालय के अंदर प्रध्यापकों के रिक्त पदों को जल्द भरा जाए अगर सरकार और प्रशासन इन मांगो को नहीं मानती है तो आने वाले समय के अंदर एसएसआई इस आंदोलन को और उग्र करेगी जिसकी सारी जिम्मेवारी सरकार और प्रशासन की होगी छात्रों की इस मांग को मनवाने के लिए एसएफआई को चक्का और सड़कों पर भी आना पड़े तो आएगी प्रदेश सरकार और प्रशासन एक हफ्ते के अंदर कोई संज्ञान नहीं लेती है तो एसएफआई महाविद्यालय के अंदर भूख हड़ताल करेंगे।
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