चम्बा/भरमौर ! राधा कृष्ण मंदिर जुलाहकड़ी से रवाना हुई मणिमहेश डल झील के लिए पवित्र छड़ी !

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चम्बा/भरमौर ! शिव भूमि चम्बा की विश्व विख्यात मणिमहेश यात्रा के लिए दशनामी अखाड़ा से मणिमहेश के लिए निकलने वाली छड़ी आज राधा कृष्ण मंदिर जुलाहकड़ी से मणिमहेश डल झील के लिए रवाना हुई। देर शाम लक्ष्मी नारायण मंदिर से मुख्य बाजार से होते हुए यह छड़ी राधा कृष्ण मंदिर पहुंची जहां पर रात्रि विश्राम किया गया। बम बम भोले के जयकारों के साथ साधु संत मुख्य बाजार से होते हुए राधा कृष्ण मंदिर पहुंचे उनके साथ प्रशासनिक अधिकारी भी मौजूद रहे। इस बीच लोगों ने नतमस्तक होकर पवित्र छड़ी का आशीर्वाद लिया।

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राधा कृष्ण मंदिर पहुंचने पर वहां के प्रबंधन ने पवित्र छड़ी का फूल बरशा के साथ स्वागत किया जहां पर एसडीम चम्बा द्वारा छड़ी की पूजा अर्चना कर उसे वहां पर स्थापित किया गया। अब यह छड़ी यहां से पैदल मणिमहेश डल झील के लिए रवाना होगी रास्ते में चार जगह पर रात्रि विश्राम कर राधा अष्टमी के दिन इस छड़ी को पवित्र डल झील में डुबकी लगवाने के बाद ही वहां पर बड़ा स्नान शुरू होगा। पिछले कल जब छड़ी को लक्ष्मी नारायण मंदिर से रवाना किया गया तो वहां पर साधु-संतों और प्रशासन के बीच कम्युनिकेशन गैप के की वजह से हल्का सा विवाद हुआ लेकिन एसडीएम चम्बा ने मौके पर पहुंचकर इस विवाद को समाप्त कर दिया।

स्थानीय विधायक पवन नैयर ने बताया कि पवित्र छड़ी यात्रा मणिमहेश के लिए रवाना हो चुकी है। राधा अष्टमी के दिन छड़ी को पवित्र डल झील में स्नान करवाया जाएगा। उन्होंने कहा कि थोड़ा सा प्रशासन और साधु महात्माओं के बीच में कम्युनिकेशन गैप की वजह से विवाद हुआ लेकिन उसे जल्द सुलझा लिया ह्या। उन्होंने कहा कि कोरोना की वजह से यह यात्रा सीमित लोगों के बीच निकाली गई लेकिन अगली बार बड़ी ही धूमधाम से छड़ी यात्रा निकाली जाएगी।

वहीं एसडीएम चम्बा नवीन तंवर ने बताया कि मणिमहेश यात्रा के लिए दशनामी अखाड़ा से छड़ी रवाना हो चुकी है पहले जुलाहकडी के राधा कृष्ण मंदिर में विश्राम के बाद यह पैदल पड़ाव दर पड़ाव आगे बढ़ती जाएगी और राधा अष्टमी के दिन छड़ी को स्नान कर वापिस दशनामी अखाड़ा पहुंचाया जाएगा। उन्होंने कहा कि कोविड के सभी नियमों का पालन किया जा रहा है ज्यादा लोग इस यात्रा में शामिल नहीं किए गए हैं क्योंकि कॉविड वजह से एहतियात बरतना जरूरी है।

वही छड़ी दार महंत यतीन्द्र गिरी ने बताया कि आज छड़ी चम्बा से रवाना हो चुकी है और यह परंपरा करीब 1000 साल से चली आ रही है। दशनामी अखाड़ा से पैदल यह मणिमहेश पहुंचती है उसके बाद पवित्र डल झील में स्नान कर छड़ी वापस दशनामी अखाड़ा में पहुंच जाती है।

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