शिमला ! अयोग्य घोषित 463 वाटर गार्ड अदालत के ताजा आदेशों से लाभान्वित होंगे।

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सांकेतिक चित्र
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शिमला ! हिमाचल हाईकोर्ट ने वाटर गार्ड को बड़ी राहत प्रदान की है। राज्य सरकार की पॉलिसी के मुताबिक पंप अटैंडैंट बनने के लिए अयोग्य घोषित 463 वाटर गार्ड अदालत के ताजा आदेशों से लाभान्वित होंगे। जगदीश कुमार व अन्य बनाम हिमाचल सरकार व अन्य केस में हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के भगवती प्रसाद केस का हवाला देते हुए कहा यह न्यूनतम शैक्षणिक अयोग्यता का मामला नहीं है। इसलिए इन्हें पंप अटैंडैंट के तौर पर तैनाती दी जाए, जैसे दूसरे वार्ड गार्ड को दी गई है। इतना ही नहीं, कोर्ट ने वाटर गार्ड को 31 जुलाई तक सभी वित्तीय लाभ देने और 31 अगस्त, 2021 तक एरियर का भी भुगतान करने के आदेश दिए हैं। दीगर रहे कि राज्य सरकार ने वर्ष 2019 में वाटर गार्ड के लिए पॉलिसी बनाई। प्रदेश में 6000 हजार से अधिक वाटर गार्ड वर्ष 2006 के बाद से निरंतर सेवाएं दे रहे हैं।

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नई पॉलिसी में आठवीं पास न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता तय की गई। इस शर्त को तकरीबन 463 वाटर गार्ड पूरा नहीं कर पाए और इन्हें पंप अटैंडैंट बनने के लिए अयोग्य ठहरा दिया गया। हालांकि वाटर गार्ड के तौर पर तो सभी निरंतर सेवाएं दे रहे हैं। जब इनके लिए पॉलिसी बनाई गई तब तक इन्हें सेवाएं देते हुए 12 साल बीत गए थे। पंप अटैंडैंट के लिए अयोग्य ठहराने जाने के फैसले को इन्होंने हाईकोर्ट में चुनौती दी, जहां से इन्हें अब बढ़ी राहत मिली है। हाईकोर्ट के आदेशानुसार इन्हें भी पंप अटैंडैंट के तौर पर तैनात करना होगा। उधर, वाटर गार्ड एसोसिएशन के प्रदेशाध्यक्ष रविंद्र ने अदालत के फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने मुख्यमंत्री व जल शक्ति मंत्री से इन्हें जल शक्ति विभाग में जल्द चतुर्थ श्रेणी पदों पर समायोजित करने का आग्रह किया है।

दरअसल, जल शक्ति विभाग इन्हें पंप अटैंडैंट के तौर पर अनुबंध में ला रहा है। राज्य सरकार की अनुबंध नीति के मुताबिक तीन साल बाद इन्हें रैगुलर किया जाएगा। ऐसे में न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता पूरी न कर पाने वाले जलरक्षकों को भी इसका लाभ मिलेगा। जल शक्ति विभाग के प्रमुख अभियंता नवीन पुरी ने बताया कि वाटर गार्ड को लेकर हाईकोर्ट का फैसला आया है लेकिन उन्हें अभी आदेशों की कॉपी नहीं मिली है। ऑर्डर की कॉपी मिलने के बाद देखा जाएगा कि वाटर गार्ड का क्या किया जाए।

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