हिमाचल ! बर्फीले पहाड़ की दास्तां-गणेश गनी की कविताएं – सतीश धर !

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हिमाचल ! कवि गणेशगनी किसी परिचय के मोहताज़ नहीं । हिंदी कविता के बिना गणेश गनी अधूरे हैं और गणेश गनी के बिना हिंदी कविता । कवि गणेश ने कविता को सहज और साधारण भाषा में पाठकों तक पहुंचा कर इस मिथ को समाप्त किया है कि हिंदी कविता पाठकों से दूर होती जा रही है ।”किस्से चलते हैं बिल्ली के पांव पर” के प्रकाशित होने के एकदम बाद कविता को बिना किसी अध्यापकीय आलोचना के पाठकों तक पहुंचाने के इस नायाब तरीके को हाथों-हाथ लिया ।

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गणेशगनी प्रकृति के इतने करीब रहते हैं कि नैसर्गिक आभा से सराबोर इस धरा का सूक्ष्म से सूक्ष्म पल गहरी संवेदनाओं के साथ गनी की कविताओं का अटूट हिस्सा बन जाता है । ये कवितायें जंगल और जीवन की कविताएं बन जाती हैं, सर्दियों की गुनगुनी दोपहरी धूप का आभार और हवा का ऋण चुकाने का संदेश देने लगती हैं। कवि जीवन और मृत्यु के बीच के क्षणों में भी आराम करते श्मशान में एक-दो पौधे रोपने का अनुरोध करता है । कवि अपने और नदी से इतना अभिभूत है कि उसके भीतर गांव और नदी हर वक्त तैरती रहती है । ।गनी की कविताएं आने वाले खतरों का भी पूर्व संकेत देती हैं।आदमी की जब जिजीविषा मर जाती है वह आत्मा को मारने का प्रयास करता है। गनी की कविताओं के बिम्ब आसपास के परिवेश से जुड़े होते हैं और गम्भीर अर्थ को ले कर कविता में प्रवेश करते हैं ।

गणेश गनी के काव्य-संग्रह”वह सांप-सीढ़ी नहीँ खेलता” से इतर की कुछ कविताएं नववर्ष पर गणेश गनी की भेंट खबर हिमाचल के माध्यम से ।

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