हिमाचल ! सुदर्शन वशिष्ठ का काव्य संसार – देवेंद्र धर !

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हिमाचल ! सुदर्शन वशिष्ठ देश के ख्यातिलब्ध, प्रख्यात साहित्यकार हैं जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर हिमाचल के हिंदी साहित्य को एक बड़ा धरातल दिया और राष्ट्रीय हिंदी साहित्य से जोड़ दिया। सुदर्शन वशिष्ठ मात्र कवि ही नहीं, बल्कि साहित्य की हिंदी साहित्य की अन्य विधाओं में कथा, व्यंग्य, नाटक, उपन्यास व संस्कृति तथा अन्य विधाओं पर भी लिखते रहे हैं। यहां हम उनकी कविताओं पर चर्चा करने तक ही सीमित रहना चाहते हैं।उनकी साहित्यिक यात्रा पर अलग से बात करने की जरूरत है। उनके लोकप्रिय काव्य संग्रह ‘अनकहा, जो देख रहा हूं, युग परिवर्तन, वशिष्ठ, सिंधूरी सांझ और खामोश आदमी है। वशिष्ठ का कवि एक गंभीर, चिंतन युक्त, मानवीय त्रासदी को समझने वाला कवि है। कवि के हल्के फुल्के मजाक में भी एक गंभीरता नजर आती है, एक संदेश नजर आता है, जो ठीक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महानायक व अभिनेता “चार्ली चैपलिन”ने दिया था। ऐसा करने में शायद उनका व्यंग्यकार उन्हें समाज की विषमताओं से जोड़ता हुआ नजर आता है जिसमें “ठट्ठा” भी है और संदेश देने की गंभीरता भी।

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उनकी कविताओं की यह विशेषता रही है कि वे परिपक्व बिम्बों और प्रतीकों का इस्तेमाल करते हुए उन्हें आम आदमी से जोड़ देते हैं। इस प्रक्रिया में वह सब कवियों से “वशिष्ठ” हो जाते हैं। कवि की अंतर्रात्मा का केंद्र बिंदु मानवीय संवेदनों को व्यक्त करना, वह भी संभ्रांत नहीं बल्कि निम्न मध्यवर्गीय संवेदनाओं को व्यक्त करते हुए उन्हें समाज के संभ्रांत वर्ग से रूह- ब- रूह करवाना है।ऐसा करने में ‘पोइटिक डिक्शन’ पर बने शब्द के साथ कविता की बोधगम्यता बनी रहती है।

हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में जन्मे कवि सुदर्शन वशिष्ठ अपनी कविताओं को अपने परिवेश की आत्मीयता से जोड़ते हुए भी राष्ट्रीय स्तर पर खड़ा कर देते हैं। उन्होंने अपने समाज में व्याप्त विषमताओं व यातनाओं को व्यक्त करने में वह सब खतरे उठा रखे हैं जो एक कवि का दायित्व होता है। लेकिन इन खतरों को बहुत ही शालीन तरीके से व्यक्त किया गया है। ऐसा कहा जा सकता है कि उनकी कविता की बनावट आम आदमी की समझ के आसपास की है। वैश्विक महामारी के जिस दौर से हम गुज़र रहे है ऐसे में कवि सुदर्शन वशिष्ठ की कोरोना-काल में लिखी कविताएं जीवन के उस सत्य को रेखांकित करती हैं जहां एक ओर डर है और दूसरी ओर काले प्लास्टिक में लिपटी देह ।सुनिये उन की कविताएँ उन्हीं की ज़ुबानी

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