हिमाचल ! देश व हिमाचल प्रदेश के हिंदी साहित्य में अजीत कुमार एक ऐसे कवि हुए है जिन्होंने जनआंदोलनों मे रहते हुए कविताएँ लिखी है। वे ना तो किसी विश्वविद्यालय, महाविद्यालय के प्रवक्ता रहे ना ही हिन्दी साहित्य के छात्र जो कविताओं व हिन्दी साहित्य से सीधा सरोकार रखते हो । उनका सरोकार तो जनआंदोलनों को कविताओं को जोड़ते हुए ऐसी कविताएँ लिखना था जो समाज को मानव सरोकारों से जोड़ते हुए मानव ह्रदय को उद्वेलित करके यह सोचने पर विवश कर दे कि आज आदमी, आदमी का शोषण क्यों कर रहा है।
अपनी सशक्त व सामान्य भाषा के माध्यम से कवि ने जो भी लिखा । एक सामान्य व्यक्ति को एक बार सोचने के लिये विवश करता है कि उसके परिवेश में क्या हो रहा है। हिमाचल प्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना, पोस्टर कविता का आरंभ, ‘युवा पर्व’ पत्रिका का संपादन जैसे उनके साहित्यिक अनुष्ठान आज भी हमारे मस्तिष्क में कौंधते हैं। छोटी आयु में ही देहावसान होने के बाबजूद वे जो भी कवितायें लिख गये है हमें बहन किरण शर्मा के माध्यम से उपलब्ध कराई गई है व काव्य संग्रह ‘पत्थरों पर खुदे नाम’ में संग्रहित है। आलोचक स्व.डा. विजय मोहन सिंह के शब्दों में ‘उनकी कविताओं में एक आवेग है’ हम मातुलधर सक्सेना का भी आभार व्यक्त करते है जिन्होंने स्व. अजीत कुमार की कविताओं को वाणी दी है।