उत्तराखंड ! भगवान बद्रीश के कपाट वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ अपने निर्धारित समय आज 3:30 श्याम काल में शीतकाल के लिए बंद हो गए हैं। अब छह माह तीर्थयात्री और पर्यटक अपने प्रिय भगवान बद्रीश का दीदार नहीं कर सकेंगे। आपको बता दें भगवान बद्री विशाल के कपाट आज अपने निर्धारित समय शाम 3:30 पर शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए। दरसअल भगवान बद्री विशाल के कपाट बंद करने की परंपरा तो कई सदियों से चली आ रही है।
आपको बता दें प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी भगवान बद्री विशाल के कपाट बंदी के दौरान बद्रीनाथ धाम के मुख्य पुजारी ईश्वरी प्रसाद नंबूदिरि द्वारा माता महालक्ष्मी को भगवान विष्णु के गर्भ ग्रह में स्थापित किया गया। जिसके बाद आर्मी के बैंड की धुन पर भगवान बद्री विशाल के कपाट बंदी की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी गई थी। आपको बता दें आर्मी बैंड की धुन पर बद्रीनाथ मंदिर के धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल के साथ स्थानीय लोग भी खूब झूमे। भगवान बद्रीश की भक्ति में लीन स्थानीय लोगों ने जमकर स्थानीय ताल पोना नृत्य पर भी ठुमके लगाए हैं।
आपको बता दें जिसके बाद धीरे-धीरे भगवान बद्रीश के कपाट बंदी की पूजा अर्चना प्रारंभ होकर समाप्त भी हुई। जिसके बाद कि भगवान बद्रीश के यहां 12 माह चलने वाली अखंड ज्योति को मंदिर के मुख्य पुजारी के कर कमलों द्वारा प्रज्वलित करवाया गया। जिसके बाद भगवान बद्रीश के कपाट बंद कर दिए गए। स्थानीय लोगों का मानना है कि भगवान बद्रीश के चरणों में लीन छह माह तक रहने वाले ईश्वरी प्रसाद नंबूदिरि को कपाट बंदी के दौरान कुछ आभास होते हैं।
इस दौरान मुख्य पुजारी रावल बेहोशी की हालत में होते हैं। जिसके बाद मुख्य पुजारी रावल को लक्ष्मी जी का वस्त्र साड़ी पहनाकर मंदिर से बाहर लाया जाता है। रावल अपनी अवस्था में आकर मंदिर के कपाट बंद कर देते हैं। जिसके बाद भगवान बद्री विशाल की गद्दी को पांडुकेश्वर लाया गया कल भगवान बद्री विशाल की गद्दी जोशीमठ स्थित नरसिंह मंदिर पहुंच जाएगी।