भारत की प्राचीन शिक्षा व्यवस्था की अवधारणा और वर्तमान शिक्षा का स्वरूप : भाग 2 – देवेंद्र धर ! 

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सांकेतिक चित्र
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मध्यकालीन भारत की शिक्षा व्यवस्था

प्राचीन भारत, मध्य भारत की समय अवधि व इतिहासकारों के विवादों में ना फंस कर हम सिर्फ मध्ययुगीन शिक्षा व्यवस्था पर बात करना चाहेंगे और मध्ययुगीन शिक्षा को मुगल काल के अंत में, ईस्ट इंडिया कंपनी के भारत में आगमन से पूर्व देखने की कोशिश करेंगे। सामान्यतः मध्यकाल को दो भागों में बांटा गया है । पूर्व मध्यकाल-200 ई.पू-800। मध्यकालीन भारत -500.ई –1761 ई तक।. ईसा पूर्व 240 से 1761 ईस्वी तक मध्यकालीन भारत का समय माना गया है। जिसमें चोल साम्राज्य, गुप्त साम्राज्य, पाल साम्राज्य, प्रतिहार, राजपूत कॉल इसके बाद दिल्ली सल्तनत में गुलाम वंश, खिलजी वंश, तुगलक वंश, सैयद वंश, लोदी वंश इसके बाद 1526 से अट्ठारह सौ सत्तावन ईसवी तक पूरा मुगल साम्राज्य आ जाता है। सामान्यतया आधुनिक भारत को 1762 से 1947 ईस्वी तक माना गया है। जिसमें 1760 से 1947 तक देश की शिक्षा व्यवस्था अलग-अलग प्रक्रिया से गुजरी। जिसको मोटे तौर पर समझना जरूरी है। इस लेख का एक मात्र उद्देश्य तत्कालीन शिक्षा व्यवस्था को समझना मात्र है नाकी इतिहास को 3 मार्च 1707 को अहमदनगर में औरंगजेब की मृत्यु के साथ ही मुगल साम्राज्य का पतन होना आरंभ हो गया। मुगल साम्राज्य से पहले देश की अलग रियासतों में शिक्षा व्यवस्था लगभग एक सी थी। उच्च शिक्षा के लिए वे ही मान्य विश्वविद्यालय थे जिनका जिक्र प्राचीन भारत की शिक्षा प्रणाली में किया गया। मुगल साम्राज्य के आने से पहले राज्यों और रियासतों की शिक्षा प्रणाली में भी अंतर होना आरंभ हो गया। 1556 में, जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर के राज्य संभालने के साथ ही मुगल राज्य का काल आरंभ हुआ और सम्राट औरंगजेब के निधन के बाद इसका अंत हो गया। यह लगभग 150 वर्ष चला। मुगल साम्राज्य 1526 में शुरू हुआ, जिसमें 17वीं शताब्दी के आखिर में और 18वीं शताब्दी के शुरुआत में भारतीय उपमहाद्वीप पर मुगलों ने राज किया और 19वीं शताब्दी के मध्य में समाप्त हो गया। मुगलों ने छोटे-मोटे राज्यों और यात्रियों को अपने राज्य में सम्मिलित कर एक तरह से संघीय ढांचा खड़ा कर दिया। यहां संघीय ढांचा मुगलों की इच्छा अनुसार काम करने लगा। मुगलों की सरकारी भाषा पहले पहल फारसी रही बाद में उर्दू में बदल गई। आज भी कुछ शब्द ऐसे हैं जो राजस्व विभाग और पुलिस विभाग उर्दू और फारसी के शब्द प्रयोग में लाए जा रहे हैं। मध्यकालीन भारत में इस्लामिक शिक्षा फलती फूलती नजर आई। तत्कालीन बादशाहों ने इस्लाम को फैलाने के लिए उस समय के शिक्षा के ढांचे को तहस-नहस करने का काम शुरू कर दिया। मुसलमानों ने अरबी फारसी और उर्दू में शिक्षा ग्रहण करने पर बल दिया। ऐसा करने से संस्कृत भाषा के विकास को बाधा आई। नौकरियों में अरबी फारसी उर्दू जरूरी हो गई। वे लोग ही नौकरियों का सकते थे जिन्हें फारसी की जानकारी थी और वही मुगल सल्तनत के करीब माने जाते थे।

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मध्यकालीन भारत में दो प्रकार के शिक्षण संस्थान बनाए गए जिनका संचालन मौलवी, इमाम किया करते थे। इस काल में दो प्रकार के शिक्षण संस्थान थे, मकतब, मदरसे। हिंदू और मुसलमानों के लिए एक तरह की शिक्षा व्यवस्था थी, पाठ्यक्रम भी एक साथ था। मुस्लिम बादशाहों के आक्रमण के कारण तक्षशिला, विक्रमशिला आदि प्राचीन उच्च शिक्षा के केंद्र बर्बाद होते चले गए। अन्य शिक्षा केंद्रों को नष्ट कर दिया गया। ये शिक्षा केंद्र सदियों तक स्थापित नहीं हो सके।इन शिक्षा संस्थानों के समाप्त होने के साथ संस्कृत समाप्त होती चली गई। हिंदू शिक्षा पद्धति भी समाप्त होनी आरंभ हो गई। इस्लामी शिक्षा का बोलबाला हो गया और इस्लामी शिक्षा जोर पकड़ने लगी। मुगल काल में संस्कृति का विकास नहीं हो सका। बादशाहों ने यह जो मुस्लिम शिक्षा संस्थान बनाएं दूसरे संस्थानों के अभाव में हिंदू छात्रों ने भी इन्हीं संस्थाओं में पढ़ना आरंभ कर दिया। इस दौरान ब्रतानिया सरकार ने 1600 ईस्ट इंडिया कंपनी का गठन कर भारत की ओर रुचि दिखाना आरंभ कर दिया। दिल्ली सल्तनत के सत्ता में आते ही अपना क्षेत्रफल बढ़ा दिया और उस तमाम क्षेत्र में उर्दू भाषा को जोरदार समर्थन देना आरंभ कर दिया। उर्दू बोलने, पढ़ने, लिखने वालों को हर मामले में तरजीह दी जाती थी व उन्हें बहुत योग्य समझा जाता था। ईस्ट इंडिया कंपनी ने भी देश में अपने पैर पसारने आरंभ कर दिए थे। साथ-साथ इस्लामिक धार्मिक मान्यताएं,शरीयत कानून, उर्दू साहित्य आदि पढ़ाया जाने लगा। वक्त वक्त प्रारंभिक शिक्षा के केंद्र बने और मदरसे उच्च शिक्षा के लिए कार्य करने लगे। मदरसों में कुरान को जबानी याद करना सिखाया जाता था जिसमें हिंदू बालक भी में पढ़ते थे । मुगल सल्तनत को देखते हुए अंग्रेजों ने अपने स्वार्थ के लिए उनका सहयोग करना आरंभ कर दिया। सर्वप्रथम 1761 में बंगाल के गवर्नर जनरल वार्न होस्टिंग ने फारसी और अरबी भाषा के अध्ययन के लिए कोलकाता में मदरसे खोलने आरंभ कर दिए। यह एक अंग्रेजी अफसरों की सुनियोजित चाल थी। ईस्ट इंडिया कंपनी, ब्रिटानिया सरकार ने इस प्रकार अपने पैर पसारने आरंभ कर दिए। ईस्ट इंडिया कंपनी जो मात्र व्यापार करने की दृष्टि से भारत आई थी, काफी राज्यों को अपने क्षेत्र में मिलाकर राज करने की नीति बनाने लगी। इस प्रकार सारी व्यवस्था ने भारतीय जीवन शैली में इस्लामिक शिक्षा पद्धति का वे रोक टोक प्रवेश तो हुआ ही साथ साथ अंग्रेजी शिक्षा पद्धति और व्यवस्था का प्रवेश होना भी आरंभ हो गया। यद्यपि मदरसे अपना काम करते रहे,वे इस्लामिक शिक्षा व्यवस्था का विस्तार का काम भी करते रहे।

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