मंडी ! बल्ह बचाओ किसान संघर्ष समिति की बैठक श्री जोगिन्दर वालिया की अधयक्षयता में सम्पन हुई जिसमे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंदर मोदी जी को एक पत्र लिख कर मांग की गई कि प्रस्ताविक हवाई अड्डे को किसी दूसरी जगह बनाया जाये और इस क्षेत्र की उपजाऊ भूमि को हर हाल में बचाया जाए, कयोंकि भूमि उपयोग को लेकर किसान का हमेशा यही नजरिया होता है कि गैर कृषि कार्य के लिए उस भूमि को उपयोग में लाया जाए जो बंजर हो या जिसमें फसल कम होती हो। गैर कृषि कार्य के लिए उपजाऊ भूमि का उपयोग किसान तभी करने को तैयार होता है जब और विकल्प बंद हो जाएँ। वर्तमान राज्य सरकार का मुखिया श्री जयराम ठाकुर चूँकि स्वयं किसान परिवार से है इसलिए निश्चित तौर से किसान और भूमि के इन आत्मीय रिश्तों को भलीभांति समझते होंगे। मण्डी जिला के बल्ह क्षेत्र में प्रस्तावित हवाईअड्डे के निर्माण को किसान और भूमि के इसी रिश्ते के मद्देनजर समझने की आवश्यकता है !
बल्ह क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से कृषि क्षेत्र रहा है जिसे मिनी पंजाब के नाम से भी जाना जाता है। स्वतंत्रता से पहले यहाँ जो भूमि थी, वह राजा द्वारा स्थापित सामंतों, साहूकारों के पास थी। किसानों के लंबे संघर्ष के बाद 1966-67 में किए गए भूमि सुधारों के चलते जमीन पर किसानों को मालिकाना हक मिला और इसी दौरान भंगरोटू में इंडो जर्मन एग्रीकल्चर प्रोजेक्ट आया । जिससे यहाँ किसानों ने आधुनिक खेती की शुरुआत की तथा लगातार वैज्ञानिक खेती को अपनाते हुए आगे बढ़ता गया। पहले पारम्परिक खेती की जाती थी परंतु अब नकदी फसलें उगाई जा रही हैं, जिसमें मुख्य सब्जी उत्पादन है। टमाटर उत्पादन में सोलन जिला के बाद हिमाचल में दूसरा स्थान इसी क्षेत्र का है।
आज यह एक बहुत घनी आबादी वाला क्षेत्र है। करीब 12000 से अधिक आबादी प्रस्तावित हवाईअड्डे के निर्माण से प्रभावित होगी। दूसरे शब्दों में कहें तो रोजगार विहीन हो जायेगी । प्रस्तावित हवाई अड्डा क्षेत्र में लगभग 2000 स्थानीय परिवार प्रभावित हो रहे हैं जिनकी आबादी 10000 से अधिक है। इनके अतिरिक्त करीब 2000 ऐसे मजदूर जो बिहार, झारखण्ड तथा उत्तरप्रदेश से आते हैं और इस क्षेत्र में नकदी फसलों को उगाने में मजदूरी करते हैं भी प्रभावित होंगे। इस तरह हजारों स्थानीय पढ़े-लिखे नौजवान नकदी फसलें उगाकर अपना परिवार पाल रहा हैं। यहाँ सैंकड़ों किसान दूध उत्पादन करते हैं, हर परिवार के पास कम से कम एक गाय/भैंस है और कुछ किसान बड़ी डेयरी का काम भी करते हैं। कुछ किसान रेशम उत्पादन करते हैं। अपनी आजीविका कमाने के लिए भेड-बकरी और मुर्गी पालन का कार्य भी करते हैं। कुछ लोगों ने यहाँ उद्योग धंधें स्थापित किए हैं, निर्माण उद्योग से जुडी मशीनरी भी काफी नौजवानों ने स्थापित की है जिस से रोजगार चलता रहे। यहाँ जमीन के नीचे 10–12 फुट पर पानी उपलब्ध है और अति आधुनिक सिंचाई सुविधा का प्रावधान इस क्षेत्र में है जो हिमाचल में कम ही मिलेगा, जिसके चलते किसान तीन से चार फसल ले पाते हैं।
1962 में जब ब्यास सतलुज लिंक परियोजना का सर्वे किया गया था तो बल्ह में झील बनाना प्रस्तावित था जिससे यह इलाका पूरी तरह तबाह हो रहा था। किसानों के विरोध के चलते झील का प्रस्ताव बदलकर, पंडोह से बग्गी टनल बनाई गई और सुंदरनगर में झील का निर्माण किया गया फलस्वरूप बहुमूल्य कृषि भूमि को बचाया गया । हिमाचल प्रदेश में मात्र 14.86 % भूमि ही कृषि योग्य है, इस पर अब फोरलेन, राट्रीय उच्च मार्ग, हवाई अड्डे और रेलवे लाइन के बनने से कृषि भूमि खत्म हो रही है। रेलवे लाइन का जो सर्वे हुआ था वह इस प्रस्तावित हवाई अड्डे में समा जाएगा उसे भी बदलना पड़ेगा ।