नई शिक्षा नीति व हिमाचल प्रदेश में इसके विस्तार की संभावनाएं – देवेंद्र धर !

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नई शिक्षा नीति व हिमाचल प्रदेश में इसके विस्तार की संभावनाएं ।

लगभग 34 वर्ष बाद देश को एक नई शिक्षा नीति दी गई है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 29 जुलाई 2020 इस नई शिक्षा नीति अनुमोदित करते हुए मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया। उम्मीद की जा रही है कि नई शिक्षा नीति से देश को एक नई दिशा दिशा मिलेगी तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की शिक्षा प्रणाली की गुणवत्ता में सुधार होगा। यह माना जा रहा है कि नई शिक्षा नीति देश को तक्षशिला और नालंदा के आधार पर चलती हुई हार्वर्ड, बर्केले जैसे विश्वविद्यालयों के बराबर लाकर खड़ा कर देगी। नई शिक्षा नीति को समझने के लिए इसके स्वरूप और विस्तार की संभावनाओं को समझना बहुत जरूरी है व इस शिक्षा नीति का कार्यान्वयन कैसे होना है। इसको विस्तार से समझा होगा, विशेषकर हिमाचल प्रदेश की भौगोलिक, सामाजिक, शैक्षणिक व संसाधनों की स्थिति को देखते हुए इसे कैसे लागू किया जा सकता है।

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नई शिक्षा की पांच मुख्य विशेषताएं बताई गई हैं, जो इस शिक्षा का आधार रहेगा। 1. शिक्षा कि सब तक पहुंच 2. भागीदारी.3. गुणवत्ता युक्त शिक्षा 4. सस्ती शिक्षा 5. जवाबदेही। यह मूल सूत्र शिक्षा के भविष्य को तय करेंगे और नई शिक्षा नीति को इसी का आधार माना गया। नई शिक्षा नीति 5 + 3 + 3 + 4 पर आधारित होगी।बच्चों पर परीक्षा का दबाव न रहें। साल में दो बार बोर्ड की परीक्षाओं का प्रावधान है। स्नातक की डिग्री 3 साल से बढ़ाकर 5 साल हो गई है 10वीं का बोर्ड खत्म हो गया और एमफिल को भी खत्म कर दिया गया। नई शिक्षा नीति भारत को वैश्विक ज्ञान का केंद्र बना देगी ऐसा दावा किया जा रहा है। स्कूलों का उपयोग शैक्षणिक सत्र के बाद प्रौढ़ शिक्षा के लिए किया जाएगा व शिक्षा की अन्य गतिविधियों के लिए उपलब्ध रहेगा। कंप्यूटर शिक्षा जो पहले नवमी कक्षा से पढ़ाई जाती थी, अब कंप्यूटर एक विषय के रूप में छठी कक्षा से पढ़ाया जाएगा। बच्चों के लिए स्किल डेवलपमेंट पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। ताकि बच्चे को जो ऱोजगारोन्मुख बनाया जा सके और वे स्कूल से निकलने के बाद अपने जीवन यापन के लिए काम कर सकें। वे बेरोजगार ना रहे।

देश में पहली बार मल्टीप्ल एंट्री, मल्टीपल एग्जिट व्यवस्था लागू की गई है। इस व्यवस्था के तहत 3 साल में कभी भी शिक्षा पूर्ण होने पर या डिग्री ना करने पर प्रथम वर्ष में पास होने पर सर्टिफिकेट दूसरे वर्ष में डिप्लोमा व तीसरे वर्ष में डिग्री दी जा सकेगी। इस दौरान विद्यार्थी कभी भी अपनी क्षमता और संभावनाओं के हिसाब से शिक्षा को छोड़ सकेगा या फिर दोबारा आरंभ कर सकेगा। स्कूल के आखिरी 4 साल नौवीं से बारहवीं तक बड़े महत्वपूर्ण रहेंगे इसमें कोई स्ट्रीम चुनने का सिस्टम नहीं रहेगा। अगर आप चाहें तो फिजिक्स के साथ म्यूजिक पढ़ सकते हैं,यह छात्रों की रुचि पर निर्भर रहेगा। सभी विद्यार्थी तीसरी पांचवी और आठवीं की स्कूली शिक्षा देंगे। 10वीं और 12वीं के लिए बोर्ड की परीक्षा जारी रखी जाएगी लेकिन इन्हें नया रूप दिया जाएगा। कक्षा एक से 3 साल के बच्चों को सिर्फ लिखाई पढ़ाई पर जोर दिया जाएगा,विशेषकर मातृ भाषा में वह 6 साल से ऊपर बच्चों को वोकेशनल कोर्स कराए जाएंगे जिसमें कार्पेंट्री, लॉन्ड्री,कृषि,शिल्प कला हो सकती है।

स्कूली शिक्षा से सब बच्चों के एक समान विकास पर जोर दिया जाएगा। जब बच्चा स्कूल से निकले तो उसके पास कोई ना कोई वोकेशनल स्किल्स जरूर आएगा। अगर वह आगे ना पढ़ना चाहे तो अपनी रोजी-रोटी का जुगाड़ कर सकेगा। स्कूली शिक्षा के साथ-साथ कानूनी, कृषि चिकित्सा, तकनीकी शिक्षा को भी शिक्षा के दायरे में लाया जाएगा। विषयों के क्रम में विज्ञान के साथ आर्ट, म्यूजिक आदि अतिरिक्त विषय भी पाठ्यक्रम का हिस्सा बनेंगे और इनके साथ शिक्षा जारी रखी जा सकेगी। कोई छात्र अगर चाहे तो अपनी रूचि के अनुसार मेडिकल के साथ संगीत, इंजीनियरिंग के साथ साहित्य की शिक्षा भी ले सकेगा। भाषा, साहित्य, संगीत, दर्शन, इंडोलॉजी, आर्ट, थियेटर आदि विषयों को शिक्षा के पाठ्यक्रम में जोड़ा जाएगा।

जहां तक अंग्रेजी भाषा का प्रश्न है व अंग्रेजी पठन-पाठन का प्रश्न है पांचवी तक अंग्रेजी पढ़ाने की शिक्षा नीति में अनुमति नहीं है। क्षेत्रीय भाषा शिक्षण का माध्यम रहेगा। शिक्षा नीति में कहा गया है जहां तक संभव हो अंग्रेजी को भी ऐंपल स्कोप दें। पांचवी तक मातृभाषा में , नवमी तक क्षेत्रीय भाषा में, शिक्षण पर बल दिया जाएगा। अब अध्यापक बनना कठिन कार्य होगा। सरकार ने निर्देश दिए हैं कि शिक्षा में गुणवत्ता लाने के लिए अध्यापक बनने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। इसके लिए B.Ed में बदलाव किए गए हैं।नई शिक्षा नीति के तहत जल्दी ही राष्ट्रीय मानक बनेगा। प्रत्येक शिक्षक के लिए 2 वर्ष में न्यूनतम B.Ed डिग्री तय होगी। वहीं शिक्षकों की शैक्षणिक योग्यता का आधार 1 से 4 साल होगा। इसके लिए हमें के बाद 1 साल व इंटरमीडिएट के बाद 4 साल की शैक्षणिक योग्यता तय होगी। टीचर्स के लिए एक समान मानक एनपीटीएस नेशनल काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन बनाया जाएगा। 2022 तक टीचर्स के लिए एक समान मानक तैयार करने के निर्देश दिए गए हैं। शिक्षण के लिए तय यह मानक नेशनल प्रोफेशनल स्टैंडर्ड फॉर टीचर्स कहलाएगा।।

नई शिक्षा नीति में पीएचडी को लेकर भी नए प्रवधान किए गए हैं ।इस कार्यक्रम को नए सिरे से रीडिजाइन और रिओरियंट ऐड किया गया है। अब पीएचडी प्रोग्राम में क्रेडिट बेस्ट कोर्स लेने को अनिवार्य कर दिया गया है। सभी यूनिवर्सिटी को कुछ खास तरह के पीएचडी प्रोग्राम चलाने जरूरी कर दिए गए हैं। एमफिल किए बिना ही पीएचडी की जा सकेगी। अभी बीए , बीएससी जैसे ग्रेजुएशन कोर्स 3 साल के होते हैं अब नई शिक्षा वाली पॉलिसी में दो तरह के विकल्प होंगे।। जो नौकरी के लिए से पढ़ रहे हैं उनके लिए 3 साल की ग्रेजुएशन और जो रिसर्च करने जाना चाहते हैं उनके लिए 4 साल की ग्रेजुएशन फिर 1 साल का पोस्ट ग्रेजुएशन और 4 साल की पी एच डी। उच्च शिक्षा के लिए सिंगल रेगुलेटर बनाया जाएगा अभी यूजीसी, एआईसीटीई जैसे कई संस्थान हायर एजुकेशन के लिए हैं, सबको मिलाकर इकट्ठा कर दिया जाएगा और एक ही शिक्षण संस्थान बनाया जाएगा। इस नीति के तहत देश में 2030 तक 100% युवा और प्रौढ़ को साक्षर बनाया जाए जाने का लक्ष्य रखा है. शिक्षा नीति के अंतर्गत राष्ट्रीय स्तर पर संकेत भाषा को विकास किया जाएगा ताकि श्रवण बाधित बच्चे राष्ट्रीय स्तर पर एक समान इस का उपयोग कर सकें।

महाविद्यालयों को ग्रेडेड ऑटोनॉमी दी जाएगी ।अभी तक यूनिवर्सिटी से संबद्ध कई कॉलेज होते थे जिनकी परीक्षाएं यूनिवर्सिटी लिया करती थी ।अब महाविद्यालयों को को स्वायत्तता दी जाएगी वे अपनी परीक्षाएं ले सकेंगे। शोध को बढ़ावा देने के लिए वित्त पोषण की व्यवस्था की गई है जिसे अमेरिका के तर्ज पर नेशनल रिसर्च फाउंडेशन बनाया जाएगा जो साइंस के अलावा आर्ट विषय में भी रिसर्च प्रोजेक्ट्स को फंड देगी।

नई शिक्षा नीति के तहत 2030 तक 100प्रतिशत युवा और प्रौढ़ साक्षरता का लक्ष्य प्राप्त करना है।

नई शिक्षा नीति को नए भारत की परिकल्पना से जोड़ते हुए नैतिक मूल्यों व देश के गौरव से जोड़ा गया है। नई शिक्षा का मूल आधार इसे समाज के लिये उपयोगी व शिक्षा को रोजगार से जोड़ना है बनाना ताकि देश में बेरोजगारी खत्म हो और भारत के युवकों मविष्य उज्जवल हो और प्रगतिशील भारत में अपना भविष्य ढूंढ सकें।

संसाधनः- शिक्षा के वर्तमान ढांचे को नई शिक्षा नीति के अंतर्गत लाने के लिए केंद्र सरकार को भारी व्यय करना पड़ेगा। इसके वितपोषण के लिए सरकार ने एक सीमा निर्धारित की है जो कि बजट प्रावधानों से बाहर सकल घरेलू आय का वार्षिक अंश व्यय किया जाना 6% निर्धारित किया गया है। यह जानना जरूरी है कि केंद्र सरकार ने वर्ष 2018-19 सकल घरेलू आय 3% शिक्षा पर व्यय किया किया था, जो रू.5.6 लाख करोड़ बनते हैं। जबकि वर्ष 2018-19 में सकल घरेलू उत्पाद 140.78 लाख करोड़ रही। ये आंकडे सांख्यिकीय व कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने प्रस्तुत किए हैं। देश की वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद वर्ष 2019 में,4.23 प्रतिशत व 2020 में 1.87 है। 2021 में परिलक्षित 7.43 प्रतिशत रखा गया है। इसी वर्ष अप्रैल-जून तिमाही में यहां -23.9 प्रतिशत की दर से चला है जो पिछले 40 वर्षों में सबसे कम है। इसके लिए शायद कोरोना काल भी जिम्मेदार है। लेकिन क्या असक्षम आर्थिक संसाधनों के चलते भारी-भरकम परिवर्तन देश या प्रदेश जेल पाएगा या नहीं यह एक व्यवहारिक प्रश्न है। भारत छात्र अध्यापक अनुपात के संदर्भ में प्रारंभिक व उच्चतर माध्यमिक गुणवत्ता वाली शिक्षा पर खर्च करने में विश्व में 62 वें स्थान पर है।

हिमाचल में शिक्षा का वर्तमान स्वरूप ऩई शिक्षा नीति की संभावनाएं

नई शिक्षा नीति(एन ई एस) को हिमाचल के परिप्रेक्ष्य में देखने की जरूरत है ताकी कार्यान्वयन स्तर पर क्या क्या कठिनाईयां आ सकती हैं व इसे कैसे लागू किया जा सकता है। हिमाचल प्रदेश मंत्रिमंड़ल एन द्वारा एन ई पी का अनुमोदन करना स्वाभाविक है। शिक्षा मंत्री गोबिंद सिंह इसे लागू करने की दौड़ में सबसे आगे नज़र आ रहे हैं, उनकी उम्मीद है ऐसा करने वाला हिमाचल पहला राज्य बनेगा। उनका मत है कि इस नीति की कुछ मदें पहले से लागू की गई हैं।जहां तक हम समझ पाये है वे दूसरी भाषा, वैकल्पिक विषयों,स्कील डेवलपमेंट की बात कर रहे होंगे। प्रदेश के कितने ऐसे सरकारी स्कूल हैं जहां वैकल्पिक विषय़ पढ़ाये जाते हैं,प्राईवेट स्कूलों की बात ही छोड़ दे ,अस्तु 31 अगस्त तक शिक्षकों से सुझाव भी मांगे गये थे। 28 प्रबुध लोगों का “वर्किंग ग्रुप” इस पर जल्दी काम करेगा। क्या कुछ ‘सब-‘ग्रुप भी बने चाहिये जो एन ई पी के अलग मद्दो पर अलग-अलग विचार कर अपना दें। जाहिर है, सरकार की उत्सुकसा नजर आ रही है।

नई शिक्षा नीति का यह ढ़ांचा अमरिकी पद्ति से एकदम मिलता है। फिर आर्थिक संसाधनों का क्या होगा। कोरोना काल की मंदी और बाद के प्रभाव में हिमाचल कब तक जूझेगा। क्या केंद्र सरकार राज्यों को सहायता देगी। हिमाचल में शिक्षा की आधारभूत व्यवस्था पर ही 500-700 करोड़ रू के खर्च का ही अनुमान है, ये मात्र मूलभूत सुविघाओं के लिये व्यय होगा।मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने बजट 2020-21 का बजट पेश करते हुए कहा कि शिक्षा पर 8016 करोड़ रू खर्च किये जाएंगे। शिक्षा बजट का अब वस्तुनिष्ठ आकलन दोबारा जरूरी हो गया है। ये राशि संभावी वास्तविक आंकड़ों के पास तक ना बैठ पाऐंगे। 26-27 अगस्त 2020 को प्रदेश राज्य शिक्षा परिषद द्वारा आयोजित दो दिवसीय वेबनार के मुख्य अतिथि के रूप में भाग लेते हुए राज्यपाल बंड़ारू दत्तात्रेय नई शिक्षा नीति को नये भारत की परिकल्पना से जोड़ते हुये कहा कि यह समृद्ध,रचनात्मक,नैतिक मुल्यों पर आधारित है।लेकिन लागू करना भी एक गंभीर चुनौती है।

अध्यापकों को लेकर सरकार के सामने एक बहुत बड़ी चुनौती खड़ी है, वैकल्पिक तथा रोजगार उन्मुख विषयों को बढ़ाना, क्लस्टर स्कूलों में सारे वैकल्पिक विषय उपलब्ध करवाना जो बच्चों को वैकल्पिक विषय चुनने की सुविधा दे सकें। इस कार्य के लिए शिक्षा की गुणवत्ता को बनाए रखना व सशक्त व गुणवत्तापूर्ण अध्यापकों की उपलब्धता एक बहुत बड़ा प्रश्न रहेगा। साथ-साथ वैकल्पिक वह रोजगार उन्मुख विषयों पर पाठ्यक्रम सुनियोजित करना एक लंबा समय मांगेगा या कब तक संभव हो पाएगा देखना है। शिक्षा विभाग में नई शिक्षा नीति की कार्यप्रणाली को क्रियान्वित करने के लिए, कार्यान्वयन विभाग की व्यवस्था क्या रहेगी,देखना होगा। जहां तक अध्यापकों की उपलब्धता का सवाल है, हिमाचल में तकनीकी व प्रौद्योगिकी अध्यापकों की संख्या बहुत कम है नई नियुक्तियां अपरिहार्य है जिससे सरकार गुरेज करती है। गुणवत्ता वाले प्रतिभा युक्त व्यक्ति प्रदेश को उपलब्ध कराने हैं, जन संसाधन उपलब्ध करवाना हिमाचल प्रदेश के लिए इतना सहज कार्य नहीं है, और तो और कुछ स्कूल आज भी ऐसे हैं जो स्कूल प्रबंधन समिति द्वारा नियुक्त किए गए अध्यापकों के सिर पर चल रहे हैं। इनकी विधिवत कोई नियुक्ति नहीं हुई है, ऐसी परिस्थितियों में अध्यापकों का आभाव है, शिक्षा विभाग में अध्यापकों की रिक्तियां काफी पड़ी है, ऊपर से नई शिक्षा नीति के अंतर्गत अध्यापकों की उठक पटक कितनी और कहां तक संभव हो हो पाएगी। दूरस्थ स्कूलों में 6 वर्ष से 12 वर्ष के बच्चों के लिए वैकल्पिक शिक्षा के लिये अध्यापकों का होना जरूरी है।

इंजीनियरिंग व स्किल डेवलपमेंट के लिए चल रहे शिक्षा संस्थानों को लेकर क्या असमंजस की स्थिति बनी रहेगी। आ टी आइ जैसे बने संस्थानों जहां पहले ट्रेड विशेष को पढ़ाने के लिए पहले से शिक्षकों का अभाव है,कैसे व्यवस्था होगी। नई शिक्षा नीति को लागू करने के लिए शिक्षकों को भी प्रशिक्षण देना पड़ेगा।जब तक शिक्षक ही नई शिक्षा नीति के भाव नहीं समझेंगे तब तक इसका विस्तार कैसे होगा। हिमाचल प्रदेश में ऐसे कितने शिक्षण संस्थान हैं जो शिक्षकों को ऑडियो विजुअल ऐड्स व मॉडर्न टेक्नोलॉजी का प्रयोग करने के लिए प्रशिक्षित करते हैं। एसएमसी शिक्षकों का क्या होगा। विशेष बच्चों को शिक्षा देने वाले अध्यापकों सरकारी अध्यापकों के बराबर क्यों नहीं किया गया।

बात भाषा, क्षेत्रीय भाषा, मातृभाषा की जाए जिससे हिमाचल प्रदेश में शिक्षा का माध्यम तय होना है, स्पष्ट नहीं है। हमारे सामने यह एक और गंभीर प्रश्न है।. जहां तक पाठ्यक्रम पढ़ाने के लिए मातृ भाषा में पढ़ाने का प्रश्न है ,नई शिक्षा नीति के अंतर्गत 6 से 9 साल के बच्चों को उनकी मातृभाषा में पढ़ाया जाएगा। हिमाचल के संदर्भ में यह असंभव सा लगता है। प्रदेश में 5 लाख के लगभग बच्चों में कितनों की मातृभाषा हिंदी है। हिमाचली बोलियों का ना आलेख है ना ही लिपि। लिपि के अभाव में बच्चों को उनकी मातृभाषा में कैसे पढ़ाया जाए व लेखन व पठन सामग्री कैसे प्रस्तुत की जाए ।मलयालम, तमिल, तेलुगू ,बांग्ला, उड़िया,तमिल, पंजाबी, कश्मीरी, गुजराती या मराठी इस तरह की मातृ भाषा जिनके विकसित साहित्य हैं विधिवत एक लिपि है,पढ़ाना संभव हो सकता है। बच्चे को मंडीयाली,चंबयाली, किन्नौरी,लाहौली या कांगड़ी भाषा में पढ़ाना संभव नहीं हो पाएगा।

नई शिक्षा नीति आने के एक सीमा तक तो शिक्षा निशुल्क रहेगी ।उसके बाद शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश लेने के लिए व पढ़ने के लिए अतिरिक्त धन खर्च करना पड़ेगा, साथ-साथ बढ़े हुए शैक्षणिक सत्र में को पास करने के लिए अतिरिक्त वर्ष जो लगने वाले हैं, उसके लिए छात्रों को पहले से ज्यादा धन की आवश्यकता रहेगी। हिमाचल में नई शिक्षा नीति आने से

बढ़े हुए पाठ्यक्रमों के कारण दूरस्थ क्षेत्रों से आने वाले छात्रों के लिए,अन्य छात्रों के लिए भी शिक्षा किसी हद तक महंगी हो जाएगी।

अगर हिमाचल में इस तरह का कोई प्रयास भी किया गया तो भाषाई दृष्टिकोण से यह घातक सिद्ध हो सकता है।भाषा एक संवेदनशील विषय है।देश में कितने प्रदेश है जिन की मातृभाषा हिंदी है ।फिर वह राजभाषा ,राष्ट्रभाषा का संकल्प इसके प्रावधानों को शिक्षा नीति के अंतर्गत जुड़ता नहीं देखा गया है।हिमाचल राज्य शिक्षा परिषद के सामने एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी खड़ी हो गई है।नई शिक्षा नीति को ठीक से आत्मसात करना उसे सीमाओं संभावनाओं के चलते सरकार द्वारा गठित वर्किंग ग्रुप के समक्ष प्रस्तुत करना व आने वाली समस्याओं का निवारण करना बहुत जरूरी कार्य है। तभी नई शिक्षा नीति का औचित्य सफल होगा।

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