हिमाचल ! पढ़ाई से विरक्त होने लगे हिमाचल के छात्र – देवेंद्र धर ।

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सांकेतिक चित्र
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हिमाचल ! कोरोना महाकाल ने हिमाचल में सबसे ज्यादा स्कूली बच्चो व शिक्षा क्षेत्र को प्रभावित किया है ! कोरोना काल के चलते हिमाचल प्रदेश के छात्र विशेषकर स्कूली छात्र जो पहले से शिक्षा को लेकर विलगाव की स्थिति में थे अब अनलॉक 4.0, जो 1 सितंबर से आरंभ होने जा रहा है बिलकुल ‘एलिनेट’ हो जाएंगे। केंद्रीय सरकार द्वारा अनलॉक के मार्गदर्शी सिद्धांतों के अनुसार स्कूल और सिनेमाघर नहीं खुलेंगे ! जिसके कारण विशेषकर स्कूली छात्रों में स्कूल के प्रति अलगाव की भावना जो चल रही थी वह और बढ़ेगी ! इस भावना के चलते, जो बच्चों पर एक मनोवैज्ञानिक दबाव बनाए हुए हैं उनको स्कूल संस्कृति और शिक्षा से बिल्कुल अलग-थलग कर देगी ! स्कूली शिक्षा के मामले में यह स्थिति और भी गंभीर है, जबकि उच्च शिक्षा कॉलेज और विश्वविद्यालयों के छात्र किसी हद तक इस मानसिक दबाव से निकल सकेंगे ! देश में कोरोना संभावित लोगों की संख्या 31 लाख के आसपास पहुंच गई है जबकि हिमाचल प्रदेश में यह संख्या 5000 के ऊपर चली गई है ऐसी परिस्थिति में स्कूली शिक्षा को संभालना सरकार के लिए एक चुनौती पूर्ण कार्य ही नहीं बल्कि बच्चों के उज्जवल भविष्य को संवारने का प्रश्न भी खड़ा करता है ! क्या हिमाचल के ये बच्चे इस सत्र में अपने आप को संभाल पाएंगे या कक्षा की अपेक्षाओं पर खरे उतर पाएंगे या उन्हें इस शिक्षा सत्र का बलिदान करना होगा ! हिमाचल प्रदेश में कोरोना के मामले बढ़ते जा रहे हैं, ऐसे दौर में शिक्षा के स्तर के साथ-साथ बच्चों को स्कूल के प्रति विलगाव भावना के मनोविज्ञान से दूर निकालकर स्कूलों से और शिक्षा के माध्यमों से जोड़ना होगा अन्यथा बच्चों का भविष्य व जीवन जीना चुनौती भरा हो जाएगा ! शिक्षा के बिखराव की परिस्थिति में शिक्षा के अधिकार के प्रावधान की कितनी गुंजाइश की जाएगी, क्या सभी बच्चों को शिक्षा ग्रहण करने का अवसर मिल पाएगा !

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कोरोना वायरस को लेकर अब तक के हुए अध्ययन से यह बात सामने आ चुकी है कि कोरोना वायरस से बच्चे ज्यादा संक्रमित होते हैं चाइनीस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन ने करीब 72000 बच्चों पर यह प्रयोग करके देखा है !अमेरिका में भी 500 संक्रमित मामलों में पाया गया कि बच्चे ज्यादा प्रभावित हुए हैं ! 18 साल से कम उम्र के बच्चों पर कोरोना वायरस का ज्यादा प्रभाव रहता है ! इस संक्रमण का बच्चों के माध्यम से फैलना स्वभाविक है ! विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इस बात की पुष्टि की है ! अतः यह एक गंभीर प्रश्न है कि बच्चों और बुजुर्गों को इस संक्रमण की चपेट में आने से कैसे बचाया जा सके ! अनलॉक 4.0 में यह स्पष्ट कर दिया है कि स्कूल और कॉलेज फिलहाल नहीं खुलेंगे जिनमें आईआईटी आईआईएम अन्य शिक्षण संस्थान भी है ! लेकिन इनके खोलने पर विचार किया जा रहा है,ऐसी परिस्थिति में निसंदेह हिमाचल जैसे दूरस्थ वह पहाड़ी क्षेत्र में जहां शिक्षा पाना पहले ही चुनौती है बच्चों के लिए शिक्षा ग्रहण करना एक गंभीर समस्या बन कर खड़ी हो गई है !

सरकारी आंकड़े व पूर्व शिक्षा मंत्री सुरेश भारद्वाज के अनुसार प्रदेश में 500000 बच्चों को सोशल मीडिया के माध्यम से शिक्षा विभाग ने जोड़ने में सफलता प्राप्त की है ! आंकड़ों में कितनी सत्यता है इसका अनुमान लगाना संभव नहीं है, फिलहाल हिमाचली छात्रों और अभिभावकों को संतोष तो करना ही होगा ! उनके अनुसार 4 अगस्त से 7 अगस्त तक ई-पी टी एम, यानी पैरेंट टीचर मीट के माध्यम से, ई शिक्षण की संभावनाएं व अभिभावकों और बच्चों के सामने आ रही समस्याओं की भी जानकारी एकत्र की जाएगी और उनका निवारण किया जाएगा ! अविभावकों से संवाद भी स्थापित होगा ! इसी प्रकार की ई-पाठशाला भी चलाई जा रही है जिसके तहत अध्यापक बच्चों को व्हाट्सएप या सोशल मीडिया या यूट्यूब के माध्यम से पाठ भेजे जाते हैं व उसे घर पर रहते हुए इसका अभ्यास करना और शिक्षकों को जानकारी देना है ! अगर शिक्षा विभाग व सरकार के नजरिए से देखा जाए तो यह एक बड़ा मनभावन और संतोष स्थिति को उजागर करता है परन्तु वस्तुस्थिति कुछ और ही लग रही है !

शिक्षा विभाग की वेबसाइट में कोविड-19 के चलते शिक्षण में आ रही समस्या को दूर करने के लिए एक उपाय एक व्हाट्सएप नंबर 9816008364 बताया गया है जो किसी भी शिक्षण संबंधी समस्या को रिपोर्ट करने के लिए छात्र और उनके अभिभावकों को दिया जा रहा है ! ई- शिक्षण के माध्यम से पढ़ने वाले छात्र और उनको समर्थन देने वाले अभिभावक कई तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं जिनको प्रस्तुत करना यहां जरूरी हो गया है !

हिमाचल प्रदेश में गरीब, मजदूर, किसान अभिभावक क्या इस सामर्थ्य के हैं कि वह अपने बच्चों को एंड्राइड मोबाइल ले कर दें या कोई ऐसा मोबाइल ले कर दे जो व्हाट्सएप या यूट्यूब को चला सके ! ऐसा एक मोबाइल सामान्यतः किसी भी स्थिति में 5000 से ₹7000 तक के मूल्य से कम नहीं हो पाएगा ! क्या ऐसी स्थिति में सभी छात्र सोशल मीडिया के माध्यम से शिक्षा विभाग या अपने शिक्षकों से जुड़ पाने की क्षमता रखते है ! हम ऐसे छात्रों को भी जानते हैं जो अपने सहयोगी छात्रों की देखा देखी में अपने पास मोबाइल रखे हुए हैं लेकिन यह मोबाइल सामान्य श्रेणी से भी निचले दर्जे के हैं, मैं संभ्रांस सक्षम छात्रों की बात नहीं करता !

जो समय अवधि व शिक्षकों अभिभावकों और छात्रों के बीच संबंध स्थापित करने की है क्या उस अवधि में छात्र नेट का उपयोग कर पाएंगे या मोबाइल के माध्यम से व्हाट्स एप पर संपर्क करने के लिए उपलब्ध रहेंगे ! क्या उनके अभिभावक इतने पढ़े लिखे हैं कि वे उस समय के दौरान या सुनिश्चित करें कि छात्र शिक्षण सामग्री व नेट से जुड़े रहे ! जिन्हें खुद नेट व मोबाइल की जानकारी न हो उनसे क्या उम्मीद की जा सकती है ! हां शहरों के संभ्रांत शिक्षित व सक्षम परिवारों के बच्चे ऐसा करने में समर्थ हो पाएंगे जिन्हें लैपटॉप मोबाइल की पर्याप्त जानकारी रहती है वे इस पर काम भी करते रहते हैं !

दूसरी समस्या नेटवर्क की है ! हिमाचल प्रदेश में कॉल ड्रॉप,नेटवर्क की अनुपस्थिति,नेटवर्क न होना एक आम समस्या है ! उसके बाद इसे रिचार्ज पर आने वाले खर्च का वहन करवाना क्या सभी शिक्षा पाने वाले छात्रों के लिए संभव हो पाएगा या उनके अभिभावक यह खर्चा उन्हें देंगे ! जो बच्चे शिक्षा पाने के लिए किताबें वर्दी सरकार से लेते हो क्या वे नेटवर्क की उपलब्धता के लिए अपने मोबाइल रिचार्ज करवा पाएंगे ! इस पर सोचना बहुत जरूरी है ! शिक्षा विभाग व सरकार की ई लर्निंग प्रक्रिया बच्चों को कोई दिशा दे पाएगी ?

बात हम अध्यापन सामग्री पर भी करेंगे शिक्षकों, अध्यापकों से यह कहा गया है कि वह नोट्स बना कर बच्चों को दें और सोशल मीडिया का उपयोग करते हुए इन नोट्स को छात्रों तक पहुंचाएं ! हम नोट्स की गुणवत्ता पर बिल्कुल बात नहीं करेंगे हम यह मानकर चल रहे हैं कि शिक्षण सामग्री जो अध्यापक देंगे बड़े उच्च श्रेणी की होगी और छात्र इससे लाभान्वित भी होंगे ! लेकिन क्या शिक्षक ऐसी सामग्री बना पाएंगे या फिर इतना समय दे पाएंगे कि छात्रों के भविष्य के लिए एक उच्च व सक्षम श्रेणी की सामग्री को तैयार करें ! फिर उसकी गुणवत्ता पर सवाल है ! उसकी गुणवत्ता की जांच कैसे हो पाएगी कौन से मानदंड होंगे ! जो सामग्री छात्रों को दी जाएगी ! शिक्षक जो बोर्ड पर लिखते हैं उसके बाद कुछ भी लिखने से क्यों गुरेज करते हैं ! हिमाचल प्रदेश के सरकारी स्कूलों में कितने ऐसे शिक्षक हैं जो अपनी दैनिक डायरी लिखते हैं या बने बनाए नोट्स अपने छात्रों को देते हैं ! ई-पैरेंट टीचर मीट इस मामले में कितनी प्रभावी हो सकती है ! फिर छात्र जब तक स्वयं ना पढें, नोट्स के सहारे परीक्षा के लिए तैयार कर पाएंगे ! ई -लर्निंग के साथ साथ ई -टीचिंग भी आनी चाहिए यह भी एक अनुभव है ! क्या हिमाचल का सारा अध्यापक समुदाय इस कार्य के लिए सक्षम है, ई-शिक्षण की बात तो दूर हिमाचल प्रदेश में कितने ऐसे स्कूल हैं जो ऑडियो विजुअल ऐड्स पढ़ाते हुए इस्तेमाल करते हैं ! फिर विज्ञान के छात्रों के लिए प्रैक्टिकल वाली लैब का क्या होगा !

सीबीएसई के आधार पर सिलेबस कम करने से छात्राओं को कुछ शिक्षण की निजात मिल पाएगी, या नहीं यह प्रक्रिया हिमाचल प्रदेश में सिर्फ शिक्षकों के परिणाम से संबंधित कार्यकलापों को बनाए रखने के लिए किया जाएगा ! इस तरह की समस्याओं से जुड़े हुए प्रश्न अक्सर अभिभावकों व प्रबुद्ध अध्यापकों को उद्वेलित करते आ रहे हैं ! कैसे निवारण होगा लगता है हिमाचल प्रदेश में शिक्षा का यह सत्र बस आगे ना कहे तो ठीक रहेगा !
देखना है वीराने गुलिस्ता का क्या होगा..

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