राहत इंदौरी के ना रहने पर !!
राहर इंदौरी देश व उर्दू अदब के प्रख्यात शायर,गीतकार,पेंटर हमारे बीच नहीं रहे। वे 70 वर्ष के थे। इनके ना रहने पर उर्दू साहित्य ही नहीं बल्कि विश्व साहित्य को अपूर्णीय आघात पहुंचा है। समस्त विश्व साहित्य जगत में शोक मना रहा है।कोरोना संक्रमित ह्रदयगति रूकने के कारण इंदौरी साहब ने इस दूनिया को 11 अगस्त 2020 को अलविदा कह दिया।
राहत इंदौरी का पूरा नाम राहत कुरैशी था। इनका बचपन का नाम कामिल था। इनका जन्म 1 जनवरी 1950 को हुआ था । अपने पिता रफ्तुल्लाह कुरैशी व माता मकबूल उन्निसा बेगम की चौथी संतान थे। पिता कपड़ा मिल के कर्मचारी थे । राहत ने दो बार शादी की उन की पत्नियों के नाम अंजुम रहबर व सीमा राहत है। उनके दो बेटे फैसल राहत,सतलज़ राहत व एक बेटी शिल्बी इरफ़ान है।
एक जानकारी के अनुसार और राहत साहब का शायरी पढ़ने से पहले चित्रकारी का शौक था इसके लिए एकदम दीवाने थे। 10 साल की उम्र में उन्होंने साइन चित्रकार का काम शुरू किया वह पैसे कमाने के लिए ट्रकों के पीछे तक भी पेंटिंग कर देते थे। पिता की नौकरी छोड़ जाने पर उन्होंने चित्रकार का काम छोड़कर मजदूरी करना आरंभ कर दिया था। इसी दौरान शायरी का काम शुरू कर दिया ! छुट्टी होने के बाद अक्सर अपने मित्रों में बैठकर उन्हें अपनी शायरी सुनाया करते थे । राहत इंदौरी ने मात्र 19 वर्ष की आयु में शायरी लिखना पढ़ना शुरू कर दिया था ! उनकी स्कूलिंग नूतन स्कूल से हुई और उसके बाद 1973 में इंदौर के इस्लामिया करीमिया कॉलेज से ग्रेजुएशन पूरा किया। वह घटना को बयान करते हुए कहते हैं कि एक बार उनके कॉलेज में जावेद अख्तर के पिता प्रशिक्षण जानिसार अख्तर आए हुए थे अचानक में उनके सामने पहुंच गए उनसे कहा मुझे भी शायरी पढ़नी है। इस पर उन्होंने जवाब दिया था कि अगर आपको शायरी का शौक है तो कम से कम 2000 शायरी मुंह जुबानी याद रखने होंगे।
राहत इंदौरी ने देवी अहिल्या विश्वविद्यालय इंदौर में उर्दू साहित्य के प्रजापत के रूप में पढ़ाना शुरू किया था धीरे-धीरे उनकी शायरी देश-विदेश में पसंद की जाने लगी। राहत इंदौरी ने उर्दू साहित्य में पीएचडी कर रखी थी और वह समकालीन उर्दू साहित्य की अच्छी पकड़ बनाए हुए थे उन्हें उर्दू साहित्य की अच्छी जानकारी थी।
उन्होंने देश के लगभग सभी जिलों में कवि सम्मेलन में भाग लिया। वे अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलनों में भी भाग लेते रहे इस संबंध में उन्होंने यूएसए यूके,ऑस्ट्रेलिया कनाडा सिंगापुर मारीशस कुवैत कतर बहरीन ओमान पाकिस्तान बांग्लादेश और नेपाल आदि की यात्राएं की। वे पिछले 50 सालों से विभिन्न कवि सम्मेलन में भाग लेते रहे
मैंने अपनी खुश्क आंखों से उनकी साहित्यिक यात्रा यहीं पर खत्म नहीं हुई बल्कि उन्होंने फिल्मी दुनिया में भी विभिन्न फिल्मों के लिए मनमोहक और मैं लुभावने गाने लिखे जिनमें मैं तेरा इश्क, आशियाना, सर, जानम, खुद्दार, नाराज, मर्डर, मुन्ना भाई एमबीबीएस, मिशन कश्मीर, मीनाक्षी, करीब, इश्क, बेगम जान घटक जैसी फिल्में मशहूर हुई और लोगों ने गानों को बहुत पसंद किया।
राहत इंदौरी की शायरी हिंदी उर्दू और अंग्रेजी में उपलब्ध है। उर्दू के शायर थे और उनके दिल में हिंदुस्तान बसता था। उनकी शायरी में मानवीय संवेदनाएं व्यक्त की गई हैं।
रोज पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं
रोज़ शीशे से कोई काम निकल पड़ता है
मैंने अपनी खुश्क आंखों से लहू छलका दिया
इक समुंदर कह रहा था मुझको पानी चाहिए
बहुत गुरूर है दरिया को अपने होने पर
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियां उड़ जाएं
दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की राय भी ली जाए
अब ना मैं हूं ना बाकी हैं ज़माने मेरे
फिर भी मशहूर हैं शहरों में फंसाने मेरे
जिंदगी है तो नए जख्म भी लग जाएंगे
अभी भी बाकी हैं कई दोस्त पुराने मेरे
राहत इंदौरी को उनके शेयर कभी मरने नहीं देंगे वे हमारे आस पास अपने शेयरों के माध्यम से जीवित हैं और रहेंगे भी।
मैं जब मर भी जाउं, मेरी अलग पहचान लिख देना
लहू से मेरी पेशानी पे हिंदुस्तान लिख देना
राहत साहब ने कोरोना संक्रमित होने की सूचना ट्वीट कर के दी थी और सब से गुजारिश की थी कि अपने-अपने घरों से ही दुआ करें। राहत साहब को खजरानी (इंदौर) कब्रिस्तान में दफनाया गया
अलविदा ‘राहत’……….