हिमाचल ! हि.प्र.मिड डे मील वर्करज़ यूनियन द्वारा जोरदार प्रदर्शन किए गए।

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हिमाचल ! आंगनबाड़ी,आशा व मिड डे मील वर्करज़ आदि स्कीम वर्करज़ की अखिल भारतीय संयुक्त समिति के आह्वान पर 7-8 अगस्त 2020 को दो दिवसीय हड़ताल के तहत हिमाचल प्रदेश के ग्यारह जिलों के जिला मुख्यालयों,ब्लॉक मुख्यालयों व कार्यस्थलों पर सीटू से सम्बंधित हि.प्र.आंगनबाड़ी वर्करज़ एवम हेल्परज़ यूनियन व हि.प्र.मिड डे मील वर्करज़ यूनियन द्वारा जोरदार प्रदर्शन किए गए।

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शिमला,रामपुर,रोहड़ू,सोलन,अर्की,नालागढ़,नाहन,शिलाई,मंडी,जोगिन्दरनगर,सरकाघाट,सुंदरनगर,करसोग,कुल्लू,बंजार,आनी,हमीरपुर,नादौन,रैत,शाहपुर,नगरोटा सूरियां, धर्मशाला,पालमपुर,बैजनाथ,लम्बगांव,टापरी, रिकोंगपिओ,चम्बा, चुवाड़ी,तीसा, सलूणी,ऊना,अब,गगरेट,बंगाणा, सन्तोषगढ़ आदि स्थानों पर योजनकर्मियों ने जबरदस्त प्रदर्शन किए। इस दौरान वर्करज़ ने केंद्र व प्रदेश सरकार को चेताया कि अगर आईसीडीएस,मिड डे मील व नेशनल हेल्थ मिशन जैसी परियोजनाओं का निजीकरण किया गया व आंगनबाड़ी,मिड डे मील व आशा वर्करज़ को नियमित कर्मचारी घोषित न किया गया तो देशव्यापी आंदोलन और तेज़ होगा।

सीटू से सम्बंधित आंगनबाड़ी वर्करज़ एवम हेल्परज़ यूनियन की प्रदेशाध्यक्षा नीलम जसवाल व महासचिव राजकुमारी तथा हि.प्र.मिड डे मील वर्करज़ यूनियन की प्रदेशाध्यक्षा कांता महंत व महासचिव हिमी कुमारी ने संयुक्त बयान जारी करके कहा है कि अखिल भारतीय हड़ताल के आह्वान के तहत हिमाचल प्रदेश में दर्जनों जगह धरने- प्रदर्शन किए गये जिसमें प्रदेशभर में हज़ारों योजनकर्मियों ने भाग लिया। उन्होंने केंद्र सरकार से वर्ष 2013 में हुए भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिश अनुसार आंगनबाड़ी,मिड डे मील व आशा कर्मियों को नियमित करने की मांग की है। उन्होंने आंगनबाड़ी व आशा कर्मियों को हरियाणा की तर्ज़ पर वेतन और अन्य सुविधाएं देने की मांग की है। उन्होंने मिड डे मील वर्करज़ के लिए हिमाचल प्रदेश का न्यूनतम वेतन 8250 रुपये लागू करने की मांग की है। उन्होंने योजनाकर्मियों के लिए पेंशन,ग्रेच्युटी,मेडिकल व छुट्टियों की सुविधा लागू करने की मांग की है।

उन्होंने केंद्र सरकार को चेताया है कि वह इन योजनाओं के निजीकरण का ख्याली पुलाव बनाना बन्द करे। देश के अंदर चलने वाली सभी योजनाओं से देश के लगभग एक करोड़ लोगों को रोजगार मिला हुआ है जिसमें से नब्बे प्रतिशत महिलाएं हैं। उन्होंने हैरानी जताई है कि महिलाओं की सबसे ज़्यादा संख्या योजनाकर्मियों के रूप में है व यह सरकार उनका सबसे ज़्यादा आर्थिक शोषण कर रही है। केंद्र सरकार लगातार इन योजनाओं को कमज़ोर करने की कोशिश कर रही है। इन सभी योजनकर्मियों को महीने का 2300 से लेकर 6300 रुपये वेतन दिया जा रहा है जोकि देश व प्रदेश का न्यूनतम वेतन भी नहीं है। यह सरकार शिक्षा के अधिकार के नाम पर पच्चीस बच्चों से नीचे संख्या होने पर हर दो वर्करज़ में से एक की छंटनी कर रही है। उन्होंने मांग की है कि मल्टीपरपज वर्करज़ का काम मिड डे मील कर्मियों से ही करवाया जाए व उनके वेतन में बढ़ोतरी की जाए। उन्होंने मांग की है कि हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के वर्ष 2019 के निर्णय को तुरन्त लागू करके दस महीने के बजाए बारह महीने का वेतन लागू किया जाए। उन्होंने आंगनबाड़ी कर्मियों को वर्ष 2013 का नेशनल रूरल हेल्थ मिशन के तहत बकाया राशि का भुगतान तुरन्त करने की मांग की है। उन्होंने मांग की है कि प्री नर्सर्री कक्षाओं के जिम्मा आंगनबाड़ी वर्करज़ को दिया जाए क्योंकि वे काफी प्रशिक्षित कर्मी हैं। इसकी एवज़ में उनका वेतन बढाया जाए व उन्हें नियमित किया जाए। उन्होंने कहा कि कोविड-19 के दौरान आशा कर्मियों ने फ्रंटलाइन वॉरियर की तरह कार्य किया है परन्तु उन्हें इन सेवाओं व सामान्य परिस्थितियों में भी उनकी भूमिका की एवज़ में केवल शोषण ही नसीब हुआ है। आशा वर्करज़ की सेवाओं के मध्यनजर उन्हें हरियाणा की तर्ज़ पर वेतन व सुविधाएं मिलनी चाहिए।

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