ऑर्गेनिक फार्मिंग समय की मांग प्रयासरत भारत और हिमाचल प्रदेश – रोहित गुप्ता !

0
3468
- विज्ञापन (Article Top Ad) -

यह एक सर्वविदित तथ्य है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि है और कृषकों की मुख्य आय का साधन खेती है। हरित क्रांति के समय से बढ़ती हुई जनसंख्या को देखते हुए एवं आय की दृष्टि से उत्पादन बढ़ाना आवश्यक है अधिक उत्पादन के लिये खेती में अधिक मात्रा में रासायनिक उर्वरको एवं कीटनाशक का उपयोग करना पड़ता है जिससे सीमान्य व छोटे कृषक के पास कम जोत में अत्यधिक लागत लग रही है और जल, भूमि, वायु और वातावरण भी प्रदूषित हो रहा है साथ ही खाद्य पदार्थ भी जहरीले हो रहे है। ऐसे में एक अन्य विकल्प जैविक खेती (ऑर्गेनिक फार्मिंग) मौजूद है!

- विज्ञापन (Article inline Ad) -

जैविक खेती कृषि की वह विधि है जो संश्लेषित उर्वरकों एवं संश्लेषित कीटनाशकों के अप्रयोग या न्यूनतम प्रयोग पर आधारित है तथा जो भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने के लिये फसल चक्र, हरी खाद, कंपोस्ट आदि का प्रयोग करती है। 2004-05 में पहली बार खेती पर राष्ट्रीय परियोजना की शुरुआत की गई सन 2004-05 में जैविक खेती (Organic Farming) को करीब 42 हजार हेक्टेयर में अपनाया गया जिसका रकबा मार्च 2010 तक बढ़ कर करीब 11 लाख हेक्टेयर हो गया। इसके अतिरिक्त 34 लाख हेक्टेयर जंगलों से फसल प्राप्त होती है। इस तरह कुल 45 लाख हेक्टेयर में जैविक उत्पाद उत्पन्न किये जा रहे हैं। भारत दुनिया में कपास का सबसे बड़ा जैविक उत्पादक है। पूरी दुनिया का जैविक कपास का 50 % उत्पादन भारत में किया जाता है। 920 उत्पादक समूहों के अंतर्गत आने वाले करीब 6 लाख किसान 56.40 करोड़ रूपए मूल्य के 18 लाख टन विभिन्न जैविक उत्पाद पैदा करते हैं। 18 लाख टन जैविक उत्पादों में से करीब 561 करोड़ रूपये मूल्य के 54 हज़ार टन जैविक उत्पादों का निर्यात किया जाता है।

दुनिया के अन्य देशों जैसे ब्राजील, वियतनाम, ताइवान, साउथ कोरिया आदि ने भी जैविक खेती पर खासा जोर दिया है। जैविक खेती लाभ की बात करें तो जहां यह एक ओर मिट्टी की उर्वरक क्षमता को नष्ट नहीं होने देती है ,पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाती है,पानी का संरक्षण करती है क्योंकि इसमें कम पानी की जरूरत होती है ,कम लागात में अच्छी पैदावारी होती है ,वही दूसरी ओर यह यूनाइटेड नेशन द्वारा जारी सतत विकास लक्ष्य जैसे गरीबी की समाप्ति खाद्य सुरक्षा और बेहतर पोषण और टिकाऊ कृषि को बढ़ावा स्वास्थ्य सुरक्षा और स्वास्थ्य जीवन को बढ़ावा आदि लक्ष्यों को हासिल करने में भी भूमिका निभाती है।

हरित क्रांति के पश्चात बाजार में कीटनाशक युक्त उत्पादों का अत्यधिक प्रयोग बड़ा तथा इससे निर्मित उत्पादों के सेवन के साथ ही अस्पतालों में किडनी, लिवर, कैंसर, एलर्जी, अस्थमा जैसे रोगियों की संख्या में भी काफी इजाफा हुआ! तो ऐसे वातावरण में यूपी कृषि की उपयोगिता और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।

पूर्वोत्तर राज्य सिक्किम ने भारतीय कृषि के इतिहास में एक सुनहरा पन्ना जोड़ है। करीब 12 वर्षों के अथक प्रयास के बाद 75 हजार हेक्टेयर भूमि पर जैविक खेती कर देश का पहला पूर्ण जैविक राज्य बना। साथ ही मध्य प्रदेश राजस्थान महाराष्ट्र आंध्र प्रदेश उत्तराखंड ने भी इस दिशा मे सराहनीय प्रयास किए है।

जैविक खेती की इन्हीं सभी उपयोगितओ को समझते हुए और प्रदेश की अपार क्षमताओं को ध्यान रखते हुए हिमाचल सरकार ने भी अनेक पृष्णसानिय कदम उठाए हैं, इनमें से अतिरिक्त 2000 एक्टर भूमि को जैविक खेती के अंदर लाना, 200 बायो पार्क स्थापित करना, इस क्षेत्र में काम अच्छा प्रयास करने वाले किसानों को सम्मानित करना भी शामिल है। कृषि गतिविधियों के विविधीकरण के लिए राज्य में महत्वाकांक्षी 321 करोड़ रुपये की परियोजना कार्यान्वित की जा रही है, जिसके तहत कृषि समुदाय को जैविक खेती अपनाने और नकदी फसलों का उत्पादन करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। यह योजना कांगड़ा, ऊना, बिलासपुर, हमीरपुर में लागू की जा रही है।

जापान इंटरनेशनल को-ऑपरेशन एजेंसी (JAICA) के सहयोग से जिलों मे इस योजना के तहत अब तक 212 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं और मौजूदा वित्त वर्ष के लिए 80 करोड़ रुपये खर्च करने का प्रावधान किया गया है। कृषि विकास समाज सिंचाई सुविधाओं को विकसित करने के लिए मुख्य उद्देश्य के साथ योजना को लागू करने में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी है जो किसानों को जैविक खेती अपनाने और नकदी फसलों का उत्पादन करने के लिए प्रेरित करता है!
परंतु हिमाचल के इस संदर्भ मे प्रयास अभी नाकाफी है इसके साथ सरकार को इको टूरिज्म तथा जैविक खेती को आपस में जुड़ना होगा जिससे पैटर्न के साथ-साथ जैविक खेती को भी बढ़ावा मिले, साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर जैविक उत्पादों की पहचान बनाने के लिए उत्पादन को ई मार्केट प्लेटफार्म पर लाना होगा।
जैविक उत्पादों की कम हुई उपजता से हुई हानी को सरकार द्वारा किसानो को विशेष वित्तय लाभ देना होगा, विशेष जैविक ऋण का प्रावधान करना होगा, तथा कम फसल होने पर ऋण माफी का प्रावधान करना होगा, साथ ही कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर और वानिकी विश्वविद्यालय नौणि मे जैविक कृषि मे शोध और विकास पर प्रयास किये जाने चाइये।

अतः कहा जा सकता है कि वह दिन दूर नहीं जब सरकार के कुशल नेतृत्व , वैज्ञानिकों के अथक प्रयास तथा किसानों की सहभागिता से आने वाले समय में धीरे ही सही परंतु हिमाचल जैविक कृषि के क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान बनाने में कामयाब होगा।

- विज्ञापन (Article Bottom Ad) -

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

पिछला लेखचम्बा/भरमौर ! भरमौर कीआंचलिक कथाओं की प्रविष्टियों की तिथि बढ़ाई।
अगला लेखचम्बा/सलूणी ! बगीचे में पहरा दे रहे चौकीदार की ढांक से गिरकर मौत।