मंडी ! हिमाचल प्रदेश को देवभूमि से जाना जाता है यहां पर अनेक देवी देवताओं का वास !

0
2250
- विज्ञापन (Article Top Ad) -

हिमाचल प्रदेश को देवभूमि से जाना जाता है यहां पर अनेक देवी देवताओं का वास है और अपनी अपनी मान्यताएं हैं आज हम बताएंगे आपको जिला मंडी जिला के सुंदरनगर-बग्गी सड़क मार्ग पर हटगढ़ में मौजूद माता हाटेश्वरी का भव्य मंदिर मौजूद है। इस प्राचीन मंदिर के समीप पांडवों द्वारा महाभारत के उपरांत स्वर्ग के लिए सीड़ियों के भी निर्माण की कोशिश की गई थी। लेकिन एक ही रात में इसका निर्माण नहीं कर पाने के कारण इसका कार्य अधूरा रह गया था। मंदिर में मौजूद शिवलिंग स्वयम्भू और पंचमुखी है।मंदिर परिसर में जिस प्रकार के विशाल पाषाण अवशेष मिलते हैं, उससे तय है कि मंदिर के आस पास कोई बड़ा शहर या कस्बा था। आज भी खुदाई करने पर पाषाण अवशेष मिलते रहते हैं। इलाके का नाम हटगढ़ होना भी इस बात की पुष्टि करता है कि इतिहास में इस जगह कोई राजा का गढ़ रहा होगा। वहीं मंदिर में अखंड धूणा भी मौजूद है। महाभारत के दौरान पांडव भी इस मंदिर में आए थे और यहां से ही पांडवों द्वारा स्वर्ग के लिए सीढ़ियों का निर्माण कार्य शुरू किया गया था जो एक ही रात्रि में किसी भी जीव के जागने से पहले पूरा करना था। लेकिन सुबह होने पर पक्षियों की चहचहाहट के कारण काम कुछ सीड़ियों के निर्माण के बाद रूक गया था। इन सीढ़ियों के अवशेष मंदिर के मुख्य द्वार से पहले मौजूद हैं। महाभारत के युद्ध के बाद पांंडव इस क्षेत्र से गुजरे थे। वर्तमान में जिसे काटल खड्ड कहा जाता है, उसमें स्नान करके पांंडवों ने माता हाटेश्वरी की पूजा अर्चना की थी। पांडवों को पीलिया रोग हो गया था, जिसे माता हाटेश्वरी द्वारा ही ठीक किया गया था। पांडव जब कमरू झील के पास थे, तब अर्जुन ने जमीन से पानी निकालने के लिए वहांं से एक तीर चलाया था ,जो आज भी पाषाण रूप में मंदिर से 300 मीटर दूर जंगल मे मौजूद है। मंडी रियासत के राज परिवार का माता हाटेश्वरी से बहुत पुराना नाता है। इस बात की पुष्टि इससे होती है कि मंदिर में पूजा करने का अधिकार आज भी सिर्फ मंडी के ही पुजारियों को है। इस प्रकार के अवशेष मंदिर परिसर में मिलते हैं यह बात तो तय है कि यहांं राजाओं का रहन सहन था।मान्यतानुसार पांडवों ने हाटेश्वरी माता मंदिर में परौली बनाई थी। मंदिर से 50 मीटर पहले ही विशालकाय शिलाओं से बना एक द्वार था (जिसे स्थानीय भाषा मे परौली कहा जाता है) इस परौली को आज के समय के बुजुर्गों ने भी देखा है। कुछ दशकों पहले तक यह परौली सही सलामत थी। लेकिन समय के साथ इसने अपना रूप खो दिया है। वहीं पांडवों द्वारा मंदिर क्षेत्र के समीप बहने वाली खड्ड में अनाज को पीसने के लिए घराट भी लगाया गया था। वर्तमान में मंदिर की देखरेख श्री हाटेश्वरी मंदिर प्रबंधन समिति हटगढ़ द्वारा देखा जा रहा है। मंदिर कमेटी द्वारा इस मंदिर व समाजिक कार्यों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया जाता है। कमेटी द्वारा मंदिर में आने वाले भक्तों के लिए पूरी सुविधाएं उपलब्ध कराई गई है। माता हाटेश्वरी मंदिर में हर वर्ष एक 3 दिवसीय भव्य मेले और नवरात्रों में विशेष आयोजन भी किया जाता है, जिसमें हजारों की संख्या में श्रधालु माता के चरणों में अपना शीश नवाते हैं।

- विज्ञापन (Article inline Ad) -
- विज्ञापन (Article Bottom Ad) -

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

पिछला लेखचम्बा ! मंडल अध्यक्ष पातो राम की अध्यक्षता में की गई भाजपा एससी मोर्चा की बैठक।
अगला लेखमंडी के कामधेनु गौसदन उचित मात्रा में चारा उपलब्ध नही हो पा रहा !