हिमाचल के बूढ़े केदार में कोरोना आपदा की वजह से नहीं हो पाया इस बार गंगा स्नान !

मंडी के सराज क्षेत्र में पांडव कालीन बुढ़ा केदार में सदियों से मनाया जाता है पर्व

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जंजैहली ! हिमाचल के बूढ़े केदार के नाम से प्रसिद्व तीर्थ स्थल पर इस बार वार्षिक पर्व का आयोजन नहीं हुआ । सराज घाटी के जंजैहली क्षेत्र के तहत सुप्रसिद्ध तीर्थ स्थल बुढ़े केदार का पर्व जो तीन दिन चलता था । लेकिन इस बार विश्व कोरोना जैसी महामारी के कारण बुढे केदार में गंगा स्नान करने नही जा सके। बता दें ये पर्व सदियों से मनाते आ रहे हैं । इस बार ये पर्व नही मनाया गया। इस बारे मे सनातन धर्म सभा बुढे केदार के संस्थापक हिमा राम शास्त्री ने बताया कि इस बार कोरोना आपदा की वजह से सनातन धर्म सभा की ओर से कोई भी व्यवस्था नहीं की गई । सामाजिक दूरी बनाए रखने के लिए इस वर्ष इस पर्व को नहीं मनाया जाएगा। बता दें यह बुड्ढे केदार हिमाचल प्रदेश के जिला मंडी से करीब 109 किलोमीटर दूर है । यहां स्नान करने से एक पवित्र अनुभूति होती हैं और पाप नष्ट होते हैं जो अनजाने में हुए हैं ।यह स्नान जून महीने में गंगा दशमी व एकादशी को स्नान करते हैं । श्रद्धालु के अलावा यहां देवता भी स्नान करने आते हैं ।

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ये है मान्यता !

मान्यता यह है कि अज्ञातवास के दौरान पांडव यहां से होकर गुजरे थे । जब पांडव यहां से गुजरे थे तो एक बैल आगे आगे भाग रहा था । उसको पकडऩे की मंशा में पांडव भी बैल का पीछा करने लगे । लेकिन बुढे केदार पहुंच कर ये बैल इस शीला में प्रविष्ट हो गया उसको पकडऩे के लिए अर्जुन ने पत्थर शीला पर तीर से भेदन किया । शीला के बीच से एक जलधारा फूट पड़ी । लेकिन बैल नहीं मिला और इसके साथ ही एक पत्थर है। उसमें एक कुआं है और बैल उस कुएं में प्रविष्ट हो गया । भीम भी उसके पीछे.पीछे उस कुएं में प्रविष्ट हो गया। लेकिन बैल की पूंछ पकड़ में आई लेकिन उसका सिर आज भी प्रतीक रूप में केदारनाथ में मौजूद है और पूंछ कुएं में । माना जाता है कि उतराखंड के केदारनाथ की तरह ये बुढ़े केदार भी है । जहां सदियों से गंगा दशमी पर स्नान होता है ।

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