चम्बा ! हिमाचल प्रदेश प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन ने किया शिक्षा मंत्री के वक्तव्य का विरोध।

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समाचार पत्र में प्रकाशित खबर
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चम्बा ! हिमाचल प्रदेश प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन एक समाचार पत्र में प्रकाशित शिक्षा मंत्री के उस वक्तव्य का कड़ा विरोध करती है जिसमे उन्होंने निजी स्कूल संचालकों को जेल भेजने की धमकी दी है। उन्होंने मुख्यमंत्री से मांग की है कि शिक्षा मंत्री को अपने वक्तव्य को वापिस लेने को कहें क्योंकि निजी स्कूल संचालक कोई अपराधी नहीं हैं जिन्हें जेल भेजने को बोल रहे हैं । निजी स्कूल सरकार के द्वारा दिये गए दिशा निर्देशों का पालन करते आये हैं और मौजूद समय मे भी कर रहे है। उन्होंने कहा कि सरकार को निजी स्कूलों की स्थिति को भी समझना चाहिए। कुछ गिने चुने स्कूलों की कार्यप्रणाली से पूरे प्रदेश के स्कूलों को नहीं जोड़ा जाना चाहीये। कोरोना की इस महामारी में निजी स्कूल शिक्षा में अहम भूमिका निभा रहे हैं। व्हाट्सएप्प ग्रुप से जुड़े छात्रों का ये भी पता नहीँ की कौन स्कूल छोड़ेगा ओर कोन आएगा वाबजूद इसके बिना किसी भेदभाव के सभी को ऑनलाइन पढाया जा रहा है। इतना सब कुछ करने के बाबजूद सरकार का निजी स्कूलों के प्रति नाकारत्मक रवैया समझ से परे है।

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एक तरफ सरकार कहती है की निजी स्कूल सरकार का एक अभिन्न अंग है उसके बिना शिक्षा का स्तर आगे नहीं बढ़ सकता और दूसरी तरफ सरकार कहती है कि केवल ट्यूशन फीस लेकर सभी टीचर की सैलरी भी पूरी दी जाए और साथ में किसी टीचर को निकालना भी नहीं है।

स्कूल की गाड़ियों की लोन की किश्तें, उनके टैक्स, स्कूल भवनों के किराए, बिजली बिल, पानी बिल, लैब, लाइब्रेरी के खर्चे व अन्य प्रकार के खर्चे स्कूल संचालक कहाँ से पूरे करेंगे।

निजी स्कूल संचालकों के कहना है कि सरकार जहां अपने स्कूलों पर करोड़ों खर्च करती है बावजूद इसके अभिभावकों का झुकाव निजी स्कूलों की ओर ही रहता है जिसका मुख्य कारण वहां मिलने वाली सुविधाएं व पढाई होती है। उन्होंने कहा कि सरकार को लगता है कि 500 से 2000 तक फीस लेकर निजी स्कूल अभिभावकों को लूट रहे है तो सरकार प्रदेश के सभी स्कूलों का अधिग्रहण कर सकती है जिसके लिए वह तैयार है वशर्ते की उन्हें व स्कूल में तैनात अध्यापकों को भी सरकारी नॉकरी प्रदान कर दे।

निजी पाठशालाएं सरकार में खासकर शिक्षा मंत्री के रवैये से आहत हैं। शिक्षा मंत्री लगातार फीस के मसले पर अलग बयान दे रहे हैं। संघों का आरोप है कि हाल ही में शिक्षा मंत्री सुरेश भारद्वाज से उनकी वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए बात हुई थी,उस समय भी उनका रवैया हताश करने वाला था। सरकार हर हाल में उन्हें कुचलना चाहती है। संगठन से जुड़े कुछ लोगों ने तो यहां तक कहा कि सरकार उनसे कोविड फंड के लिए भी दबाव बना रही है। कुछ बुद्धिजीवियों ने भी कहा कि सरकार का निर्णय एकपक्षीय  है और रति भर भी लोकतांत्रिक नहीं है। सरकार यह बताए कि और किस निजी सेक्टर के लिए सरकार न ऐसा फरमान सुनाया है। स्कूल संगठनों ने कहा कि वे इस समय सबसे बढि़या शिक्षा दे रहे हैं और सरकार के लगभग सभी वर्गो के बच्चे लाभान्वित हो रहे हैं इसलिए बजाय चाबुक चलाने के प्राइवेट स्कूलों को पैकेज दे कर मदद करनी चाहिए।

सरकारी स्कूलों के एक बच्चे का सालाना खर्च लगभग पचास से 70000 रुपये के करीब आता है जबकि एक निजी स्कूल में मात्र 12 हजार से 20 हजार रुपए तक प्रति विद्यार्थी साल का खर्च आता है । बावजूद इसके निजी स्कूलों के विद्यार्थी हर क्षेत्र में सरकारी स्कूलों से एक कदम आगे ही रहते हैं।

निजी स्कूल के सभी संगठनों ने प्रदेश के मुख्यमन्त्री से मांग की है कि शिक्षा मंत्री व अधिकारी निजी स्कूलों को मानसिक व आर्थिक रूप से प्रताड़ित करना बन्द करे ताकि कोरोना महामारी के इस दौर में बच्चों की पढ़ाई पर सम्पूर्ण ध्यान दिया जा सके।

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