कुल्लू के शमशर में चार गढ़ों के गढ़पति शमशरी महादेव मंदिर का है दो हजार साल पुराना इतिहास !

0
7131
- विज्ञापन (Article Top Ad) -

कुल्लू जिले के आनी तहसील मुख्यालय से महज़ तीन किलोमीटर दूर सैंज-लूहरी-आनी-औट राष्ट्रीय उच्च मार्ग 305 पर स्थित शमशर गांव में चार गढ़ों के गढ़पति शमशरी महादेव का मंदिर है । यह मंदिर समुद्रतल से 2145 फ़ीट की ऊंचाई पर स्तिथ है । प्राचीन महादेव मदिंर परिसर में अंकित इतिहास के अनुसार यह मंदिर दो हजार साल पुराना है । जाहिर है, मान्यताओं के अलावा ऐतिहासिक दृष्टि से भी यह मंदिर काफी महत्वपूर्ण माना जाता है ।

- विज्ञापन (Article inline Ad) -

● टांकरी शैली में लिखा है इतिहास

मंदिर का इतिहास टांकरी शैली में लिखा हुआ है। हिमाचल के प्रख्यात टांकरी विद्वान खूबराम खुशदिल ने टांकरी में लिखे अनुवाद के हिन्दी विवरण में बताया है कि इस देव परिसर का विक्रमी सम्वत के अनुसार सन 57 में (विक्रम संवत 2076 में 2019 वर्ष) पुनर्निमाण किया गया। इससे माना जाता है कि यह मंदिर दो हजार साल पुराना है । शमशरी महादेव की कहानी भी उनके नाम को सार्थक करती है ‘शमशर’ शब्द के सन्धि विच्छेद में शम’ का अर्थ पहाड़ी भाषा में ‘पीपल’ के वृक्ष को कहते हैं, जबकि ‘शर’ या ‘सर’ का मतलब ‘तालाब’ होता है।

● यह है अवतरण कथा

मान्यताओं के अनुसार शमशर से कुछ दूरी पर प्राचीन गांव कमांद से एक ग्वाला प्रतिदिन अपने मालिक की दुधारू गाय को चराने शमशर गांव में आता था । परन्तु अक्सर सायंकाल के समय जब उसका मालिक उसे दुहने की कोशिश करता मगर उसके थनों में दूध न पाकर निराश हो जाता और अपने ग्वाले नौकर को डांटता । एक दिन मालिक ने ग्वाले का पीछा किया तो पाया कि वह गाय एक पीपल के पेड़ के नीचे अपने थनों से दूध इस तरह से डाल रही थी मानों वो शिवलिंग पर दूध चढ़ा रही हो । उसी रात देवता ने उस ग्वाले के मालिक को दर्शन दे कर कहा कि जहां तुम्हारी गाय रोज मुझे दूध चढ़ाती है, उसी ‘शम’ यानि ‘पीपल’ के पेड़ के नीचे मेरा भू-लिंग है उसे वहां से निकालकर पीछे की पहाड़ी पर स्थित गांव में स्थापित करो ।

● ऐसे निकलती है शमसरी महादेव की फेरी

मंदिर को अर्पित किया जाता है गांव का पहला घी

आज भी कमांद गांव से ही भोलेनाथ पर गाय का घी सर्वप्रथम चढ़ाया जाता है । मान्यता है कि देवता की आज्ञा के बिना क्षेत्र में कोई भी कार्य सम्पन नहीं होता । तीन या सात साल जिसे सतराला भी कहा जाता है बाद जब शमशरी महादेव फेरों पर निकलते हैं तो क्षेत्र में कोई भी शुभ कार्य अमल में नहीं लाया जाता । देवता के हर धार्मिक अनुष्ठान के दौरान इसके कार्यक्षेत्र या दायरे में आने वाले हर घर से कम से कम एक व्यक्ति को प्रतिदिन कार्य में सहयोग देना होता है ।
महादेव नवंबर माह में बूढ़ी दिवाली के अवसर पर अपने प्राचीन मंदिर धोगी पधारते हैं जहां पारम्परिक रीति-रिवाजों का निर्वहन करते हुए अद्धभुत नज़ारा पेश होता है ।
महाशिवरात्रि के अवसर पर महल की चकाचौंध देखने योग्य होती है । पारपंरिक रीति-रिवाजों और वाद्य यंत्रों की धुनों पर महाशिवरात्रि पर्व को अलग व अनूठे तरीके से मनाया जाता है ।

● जिला स्तरीय आनी मेला है शमशरी महादेव की देन

कभी दो चार दुकानों और कुछ लोगों के साथ शमशरी महादेव के सानिध्य में मनाया जाने वाला आनी मेला आज जिला स्तर का दर्जा ले चुका है ।
आनी की प्राचीन रियासत सांगरी के राजा ने इस मेले को 100 से अधिक वर्षों पहले शुरू किया था । जो आज एक बड़े मुकाम तक पहुंच चुका है ।

●किसी राजा से कम नहीं शमशरी महादेव

यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि शमशरी महादेव एक राजा है । प्राचीन समय में शमशरी महादेव 2200 बीघा भूमि के मालिक थे लेकिन मुज़ारा कानून के चलते ज़मीन अपने भक्तजनों में बांट दी गई थी जिसे आज भी लोग कमाकर अपनी आजीविका चला रहे हैं ।

● वर्ष 2008 में हर गांव की कहानी में भी दर्ज है शमशर गांव

प्राचीन धरोहरों एवं स्थलों पर किये गए एक सर्वेक्षण में शमशर गांव को हर गांव की कहानी के अंतर्गत लिया गया है । दो हज़ार पुराने मन्दिर को समूचे जिले में अव्वल भी आंका गया है । मन्दिर और गांव सम्बंधी सभी जानकारियां मन्दिर में सूचना पट्ट के रूप में लगाई गई है लेकिन यह मात्र सूचना बनकर ही दीवार ओर तंगी रह गई है ।

● धार्मिक स्थलों समेत पर्यटन स्थलों को संवारने की आवश्यकता

आनी क्षेत्र अपनी प्राकृतिक सुंदरता एवं धार्मिक कृत्यों के लिए सुप्रसिद्ध हैं । पर्यटन की दृष्टि से भी आनी क्षेत्र की एक अलग पहचान है । लेकिन शमशर जैसे कई धार्मिक स्थल और पर्यटन स्थल सरकार के नकारात्मक रवैये से अपने अस्तित्व के बचाव के लिए तरस रहे हैं । सरकार को चाहिए कि प्रयर्टन की दृष्टि और पारम्परिक धरोहरों के संरक्षण के मकसद से ऐसे स्थलों को और अधिक सुंदर बनाने के लिए प्रयास किये जायें ।

- विज्ञापन (Article Bottom Ad) -

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

पिछला लेखदलाश ! कुई कंडा मन्दिर कमेटी ने दान की 1,05,000/- की राशि
अगला लेखकुल्लू ! निर्धारित नियम का नहीं होगा सही से पालन तो ,नहीं मिलेगा सामान – पुलिस !