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हिमाचल में सड़क को चौड़ा करने व फोरलेन बनाने के लिए एन एच ए आई ने एक डी पी आर बनाई व अवैज्ञानिक तरीके से बिना देखे सुने भूमि आधिग्रहण का काम आरंभ कर दिया व पहाड खोदने आरंभ कर दिये । बात विशेष कर शिमला के केथली घाट से ढ़ली वाले भाग की हो रही है वैसे हाल सब पहाडों का एक सा ही है। इस भाग का सर्वेक्षण ही हवा में बैठ कर किया गया । अखबारों में इस क्षेत्र की भूमि अधिग्रहण का कारण फोरलेन बनाने के लिए बताया गया। इस सर्वे को कई बार बदला भी गया ताकि कुछ लोगों के घरों व संपत्ति को बचाया जा सके। सरकार ने बिना सोचे समझे टेंडर देकर अवैज्ञानिक तरीके से अपनी "नामावारी" कमाने के लिए जमीनें व पहाड खोद डाले व जनता के घर तोड़ डाले। केथली घाट से ढ़ली वाले भाग में तो कठिन काम लगने के कारण सड़क निर्माण करने वाली कंपनी के ठेकेदार काम की जटिलता को देख काम छोड़कर भाग लिये। कमाल की बात तो यह रही भूमि अधिग्रहण में "शेयर" के नाम एन एच ए आई ने बिना जांच करे उन भूमि स्वामियों को भी अधिग्रहण का मुआवजा दे डाला जिनकी भूमि न तो अधिग्रहण की गई न ही वह फोरलेन में आई थी। देश का ऐसा कौन सा कानून है कि भूमि अधिग्रहण के बिना ही मुआवज़ा दिया जाए चाहे भूमि बिना अधिग्रहण के राजस्व रिकार्ड में शेयर में ही दिखाई भी गई हो। कुछ लोगों की आधी भूमि का तो अधिग्रहण कर ली गई । बची हुई भूमि को बिना अधिग्रहण के छोड़ दिया गया बिना मुआवज़ा दिये। अब भू स्वामी बची हुई जमीन का कुछ नहीं कर सकते। भूमि अधिग्रहण में उचित मुआवजा एवं पारदर्शिता का अधिकार, सुधार तथा पुनर्वास अधिनियम, 2013 के अधिनियमानुसार न तो मुआवज़ा देने में कोई पारदर्शिता नहीं अपनाई गई फिर पुनर्वास का तो सवाल ही नहीं । मुआवजा देने में अधिग्रहण नियमानुसार उचित मार्गदर्शक मानदंड नहीं अपनाये गये. आमजन की भूमि भूस्से के भाव अधिग्रहीत की गई विशेषकर नगर निगम शिमला की सीमा परिधि में। न मार्केट रेट न सर्कल रेट न औसत देखा गया। सरकार ने बाकायदा वायदा किया था कि अधिग्रहित भूमि का चार गुणा मुआवजा दिया जाएगा। कमेटी पे कमेटी बैठती गई सरकारें समय "सरकाती" गईं। सभी राजनैतिक दलों ने यह मुद्दा "नजरअंदाज" कर दिया, क्योंकि किसी राजनेता की जमीन का अधिग्रहण नहीं किया गया था। जिन नेताओं की जमीन व घर फोर की ज़द मे आये भी उन्हें इससे बाहर कर दिया गया।देश के एक बहादुर सिपाही, ब्रिगेडियर खुशहाल ठाकुर ने किसी हद तक इस संबंध में जनता को संगठित कर आवाज उठाने का साहस तो किया ।आवाज भी बुलंद थी पर वे भी सरकार की झोली में जा कर संसद की सीढियां चढ़ने का ख्वाब देखते हुए संसद की और रुख करके औंधे गिरे और जनता ने उन्हें चुनाव में हरा कर अपने ठगने का बदला लिया। इस बहादुर सिपाही से ऐसी उम्मीद न थी।अब बारी बी जे पी सरकार की है। फोरलेन के नाम पर भूमि अधिग्रहण के बाद सब कुछ तोड़कर अब (ढली उप नगर) पर फिर डीपीआर बदल कर नये फोरलेन की खुदाई आरंभ कर दी। जिस प्रयोजन के लिए भट्ठाकुफर-ढली में सरकार ने भूमि अधिग्रहण की थी अब फिलहाल उस का क्या होगा स्पष्ट नहीं है। क्या यह एक तरह की सरकारी "ठगी" नहीं तो और क्या है, कैसा विकास होने जा रहा है । जिस काम के लिए भूमि का अधिग्रहण किया गया वह अब नहीं किया जा रहा। सत्ता में आने से पहले फोरलेन विस्थापितों को चार गुणा मुआवज़ा देने का भुगतान करने का वायदा करने वाले अब चुप कब क्यों है? कहां हैं वे राजनीतिक दल जो जनता के हित के नाम पर अपना गला फाड़कर व चिल्ला कर जनहित की दुहाई देते है।
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