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हिमाचल प्रदेश, 18 दिसंबर [ देवेंद्र धर ] ! कहावत मशहूर हैं कि आदमी अपनी गलतियों से सबक लेता है। इस कहावत से हिमाचल के संदर्भ में भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा व पूर्व मुख्य मंत्री जयराम ठाकुर का कोई लेना देना नहीं है। कांग्रेस ने अपनी गलतियों से सीख ली तो भारतीय जनता पार्टी अपने स्वाभिमान में रही और हिमाचल के हार से मुंह छिपाने के लिए गुजरात जाकर लड्डू बांटती रही। बीजेपी "डबल इंजन" की इंजीनियरिंग चलाने में बीजेपी ध्वस्त हो गई। पिछले विधानसभा उपचुनाव से भाजपा ने कोई सबक नहीं लिया। मंडी लोकसभा से प्रतिभा सिंह की जीत ने भारतीय जनता पार्टी को बैकफुट पर खड़ा कर दिया हालांकि वे बहुत कम अंतर से जीतीं थीं। भारतीय जनता पार्टी के पास ये 'इनपुट' पहले से ही था कि हिमाचल में भाजपा 'पतली' हालत में हैं.।शाहपुर (कांगडा) जैसे जिन क्षेत्रों में प्रधानमंत्री ने जहां जहां रैलियां करीं वहां वहां की भीड़ को क्या वोटों में बदला जा सका। भारतीय जनता पार्टी का यह निर्वाचन क्षेत्र बदलने वाला व प्रत्याशियों को बदलने का प्रयोग नड्डा तंत्र को बहुत ही मंहगा पडा। सुरेश भारद्वाज भारतीय जनता पार्टी के नेेता शिमला नगर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र की सेवा तीन दशकों से भी अधिक समय तक करते रहे। शिक्षा मंत्रालय उन्हें मिला था। पहली यातना मिली कि उनसे वह विभाग छिन गया । आरंभ से ही जयराम ठाकुर चाह रहे थे कि शिक्षकों की राजनीति में दखल.हो। अध्यापकों का बाहुल्य व अपने अपने क्षेत्र में प्रभाव के चलते उन्हें अपने वश में किया जाए। सुरेश भारद्वाज से शिक्षा मंत्रालय लेकर गोविंद सिंह ठाकुर को दे दिया ताकि अध्यापक तबके में भाजपा पैंठ गहरी बनी रहे। हिमाचल जैसे राज्य में अध्यापन से जुड़े लोगों की संख्या प्रभावशाली है। गोविंद सिंह इस पर पूरी तरह से फेल हो गये। विधानसभा के चुनावों मे दल कम और व्यक्तित्व ज्यादा अहमियत रखता हैं। अगर शिमला नगर से सुरेश भारद्वाज चुनाव लडते तो ऊपरी शिमला के मतदाता उन्हें अपना वोट डाल देते ऐसा अनुभव कांग्रेस और बीजेपी दोनो के पास रहा है। जब जब निचले क्षेत्र के प्रत्याशी ने शिमला नगर से चुनाव लड़ तो उन्हें ऊपरी क्षेत्र के वोट नहीं के बराबर मिले। जिस प्रयोग ने तत्कालीन मुख्यमंत्री व मुख्यमंत्री के घोषित प्रत्याशी प्रेम कुमार धूमल को 'धूमिल' कर दिया उस प्रयोग को दोबारा करने का क्या फायदा व औचित्य ? ऐसा लगा कि कुछ प्रत्याशियों को जानकर हार भेंट की गई जिन में शिमला निर्वाचन क्षेत्र में सुरेश भारद्वाज,देहरा में रमेश धवाला, ज्वालामुखी में रविन्द्र सिंह रवि ज्वाली निर्वाचन क्षेत्र प्रमुख है। यद्यपि कृपाल परमार काफी अंतर से हारे पर वे नड्डा को कठोर संदेश दे गये" हम तो डूबे हैं सनम तुझे भी ले डूबेगें" । पिछले उपचुनाव से पहले जयराम ठाकुर चेतन ब्रागटा को कंधों पर बिठा कर उनके निर्वाचन क्षेत्र में घूमते रहे और जब चुनाव आये तो टिकट किसी और के हत्थे लगा। इससे उनकी साख को बट्टा लगा बाद में इस बार बीजेपी के होकर हार गये।पिछले विधानसभा चुनाव में प्रो.प्रमोद शर्मा को बीजेेपी का टिकट झट से पकड़ाया गया ।इस बार शिमला ग्रामीण में पांच वर्ष तक जयराम प्रो.प्रमोद शर्मा को लेकर घुमते रहे.टिकट अपेक्षाकृत कम लोकप्रिय व्यक्ति को दिया गया। इंदू वर्मा का शिमला का ठियोग और चम्बा सदर निर्वाचन क्षेत्र में ड्रामा किया गया उससे भी बीजेपी का प्रयोग फेल हुआ। बिलासपुर सदर में जगत प्रकाश नड्डा के स्वंय वोट मांगने के बाबजूद वंबर ठाकुर बहुत कम अंतर.से हारे। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर अपने संसदीय निर्वाचन क्षेत्र हमीरपुुर.व बीजेपी अध्यक्ष सुरेश कश्यप शिमला संसदीय क्षेत्र में प्रभावहीन नज़र आये। प्रत्याशी बदलने के प्रयोग भी विफल रहे। चम्बा ,धर्मशाला, कुल्लू में जो हुआ उसकी जिम्मेदारी जयराम, नड्डा की है। ऐसी उम्मीद की गई कि महेश्वर सिंह को हेलिकाप्टर की सैर करवा कर कुल्लू अपना हो जाएगा ।बीजेपी के कुछ मंत्री स्वाभिमानी रहे कि हम सुरक्षित हैं बीजेपी हमारी तारणहार है वे सभी "गयो" चले हुए "कारतूस" इक्ट्ठे कर उन उपयोग किसी काम न आया। राजीव बिंदल व जयराम मंत्रीमंडल में भ्रष्टाचार के आरोप झेल रही मंत्री सरवीण चौधरी को संरक्षण मिलता रहा जिससे भाजपा की साख पर प्रश्न चिन्ह लगा।ओपीएस पर मुख्य मंत्री के बयान से कर्मचारी खासे नाराज रहे व बीजेपी के कर्मचारी नेता छिपते रहे। फोरलेन पर मुख्यमंत्री के वायदे से मुकरना ।ब्रिगेडियर खुशहाल का प्रयोग भी भारतीय जनता पार्टी को डुबो गया। हिमाचल प्रदेश को भी गुजरात की तरह समझ कर सत्ता विरोधी लहर पर काबू पाने में प्रधान मंत्री मोदी ने काफी प्रयास किये लेकिन ओपीएस पर उन की चुप्पी बीजेपी महंगी पडी,यद्यपि मतदान नजदीक आते कुछ बीजेपी नेता ओपीएस के पक्ष में बयान देने लग गये थे।
हिमाचल प्रदेश, 18 दिसंबर [ देवेंद्र धर ] ! कहावत मशहूर हैं कि आदमी अपनी गलतियों से सबक लेता है। इस कहावत से हिमाचल के संदर्भ में भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा व पूर्व मुख्य मंत्री जयराम ठाकुर का कोई लेना देना नहीं है। कांग्रेस ने अपनी गलतियों से सीख ली तो भारतीय जनता पार्टी अपने स्वाभिमान में रही और हिमाचल के हार से मुंह छिपाने के लिए गुजरात जाकर लड्डू बांटती रही। बीजेपी "डबल इंजन" की इंजीनियरिंग चलाने में बीजेपी ध्वस्त हो गई। पिछले विधानसभा उपचुनाव से भाजपा ने कोई सबक नहीं लिया। मंडी लोकसभा से प्रतिभा सिंह की जीत ने भारतीय जनता पार्टी को बैकफुट पर खड़ा कर दिया हालांकि वे बहुत कम अंतर से जीतीं थीं। भारतीय जनता पार्टी के पास ये 'इनपुट' पहले से ही था कि हिमाचल में भाजपा 'पतली' हालत में हैं.।शाहपुर (कांगडा) जैसे जिन क्षेत्रों में प्रधानमंत्री ने जहां जहां रैलियां करीं वहां वहां की भीड़ को क्या वोटों में बदला जा सका।
भारतीय जनता पार्टी का यह निर्वाचन क्षेत्र बदलने वाला व प्रत्याशियों को बदलने का प्रयोग नड्डा तंत्र को बहुत ही मंहगा पडा। सुरेश भारद्वाज भारतीय जनता पार्टी के नेेता शिमला नगर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र की सेवा तीन दशकों से भी अधिक समय तक करते रहे। शिक्षा मंत्रालय उन्हें मिला था। पहली यातना मिली कि उनसे वह विभाग छिन गया । आरंभ से ही जयराम ठाकुर चाह रहे थे कि शिक्षकों की राजनीति में दखल.हो। अध्यापकों का बाहुल्य व अपने अपने क्षेत्र में प्रभाव के चलते उन्हें अपने वश में किया जाए। सुरेश भारद्वाज से शिक्षा मंत्रालय लेकर गोविंद सिंह ठाकुर को दे दिया ताकि अध्यापक तबके में भाजपा पैंठ गहरी बनी रहे। हिमाचल जैसे राज्य में अध्यापन से जुड़े लोगों की संख्या प्रभावशाली है। गोविंद सिंह इस पर पूरी तरह से फेल हो गये। विधानसभा के चुनावों मे दल कम और व्यक्तित्व ज्यादा अहमियत रखता हैं। अगर शिमला नगर से सुरेश भारद्वाज चुनाव लडते तो ऊपरी शिमला के मतदाता उन्हें अपना वोट डाल देते ऐसा अनुभव कांग्रेस और बीजेपी दोनो के पास रहा है। जब जब निचले क्षेत्र के प्रत्याशी ने शिमला नगर से चुनाव लड़ तो उन्हें ऊपरी क्षेत्र के वोट नहीं के बराबर मिले।
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जिस प्रयोग ने तत्कालीन मुख्यमंत्री व मुख्यमंत्री के घोषित प्रत्याशी प्रेम कुमार धूमल को 'धूमिल' कर दिया उस प्रयोग को दोबारा करने का क्या फायदा व औचित्य ? ऐसा लगा कि कुछ प्रत्याशियों को जानकर हार भेंट की गई जिन में शिमला निर्वाचन क्षेत्र में सुरेश भारद्वाज,देहरा में रमेश धवाला, ज्वालामुखी में रविन्द्र सिंह रवि ज्वाली निर्वाचन क्षेत्र प्रमुख है। यद्यपि कृपाल परमार काफी अंतर से हारे पर वे नड्डा को कठोर संदेश दे गये" हम तो डूबे हैं सनम तुझे भी ले डूबेगें" ।
पिछले उपचुनाव से पहले जयराम ठाकुर चेतन ब्रागटा को कंधों पर बिठा कर उनके निर्वाचन क्षेत्र में घूमते रहे और जब चुनाव आये तो टिकट किसी और के हत्थे लगा। इससे उनकी साख को बट्टा लगा बाद में इस बार बीजेपी के होकर हार गये।पिछले विधानसभा चुनाव में प्रो.प्रमोद शर्मा को बीजेेपी का टिकट झट से पकड़ाया गया ।इस बार शिमला ग्रामीण में पांच वर्ष तक जयराम प्रो.प्रमोद शर्मा को लेकर घुमते रहे.टिकट अपेक्षाकृत कम लोकप्रिय व्यक्ति को दिया गया। इंदू वर्मा का शिमला का ठियोग और चम्बा सदर निर्वाचन क्षेत्र में ड्रामा किया गया उससे भी बीजेपी का प्रयोग फेल हुआ। बिलासपुर सदर में जगत प्रकाश नड्डा के स्वंय वोट मांगने के बाबजूद वंबर ठाकुर बहुत कम अंतर.से हारे। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर अपने संसदीय निर्वाचन क्षेत्र हमीरपुुर.व बीजेपी अध्यक्ष सुरेश कश्यप शिमला संसदीय क्षेत्र में प्रभावहीन नज़र आये। प्रत्याशी बदलने के प्रयोग भी विफल रहे। चम्बा ,धर्मशाला, कुल्लू में जो हुआ उसकी जिम्मेदारी जयराम, नड्डा की है। ऐसी उम्मीद की गई कि महेश्वर सिंह को हेलिकाप्टर की सैर करवा कर कुल्लू अपना हो जाएगा ।बीजेपी के कुछ मंत्री स्वाभिमानी रहे कि हम सुरक्षित हैं बीजेपी हमारी तारणहार है वे सभी "गयो" चले हुए "कारतूस" इक्ट्ठे कर उन उपयोग किसी काम न आया। राजीव बिंदल व जयराम मंत्रीमंडल में भ्रष्टाचार के आरोप झेल रही मंत्री सरवीण चौधरी को संरक्षण मिलता रहा जिससे भाजपा की साख पर प्रश्न चिन्ह लगा।ओपीएस पर मुख्य मंत्री के बयान से कर्मचारी खासे नाराज रहे व बीजेपी के कर्मचारी नेता छिपते रहे। फोरलेन पर मुख्यमंत्री के वायदे से मुकरना ।ब्रिगेडियर खुशहाल का प्रयोग भी भारतीय जनता पार्टी को डुबो गया। हिमाचल प्रदेश को भी गुजरात की तरह समझ कर सत्ता विरोधी लहर पर काबू पाने में प्रधान मंत्री मोदी ने काफी प्रयास किये लेकिन ओपीएस पर उन की चुप्पी बीजेपी महंगी पडी,यद्यपि मतदान नजदीक आते कुछ बीजेपी नेता ओपीएस के पक्ष में बयान देने लग गये थे।
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