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हिमाचल सरकार जनलुभावन घोषणाएं करने में व्यस्त है।कमाल की बात तो यह है कि हिमाचल जैसे छोटे प्रदेश में माननीय प्रधानमंत्री छ मास के भीतर ही हिमाचल के अलग अलग क्षेत्रों में तीन दौरे कर के चले गये। जो शायद इतने कम समय में पहले किसी भी प्रधान मंत्री ने हिमाचल में किये हों।केंद्र, हिमाचल प्रदेश को इस बार कितनी गंभीरता से ले रहा हैं यह तो स्पष्ट ही है ।सरकार की आठ वर्षों की उपलब्धियों का जश्न भी हिमाचल में ही मनाया गया। केंद्र के तीन तीन मंत्री योग संदेश देने हिमाचल आ पंहुचे। हर जिले में केंद्रीय मंत्री घूमते नज़र आते है।बात यह है कि पिछले उनचुनावों में सरकार की अप्रत्याशित हार के कारणों का सरकार भली प्रकार विश्लेषण नहीं कर सकी। स्थानीय समस्याओं के साथ पहले कोरोना काल फिर अन्नदान फंसे अब युवा अग्निपथ पर चलने की तैयारी कर रहे है। पक्ष-प्रतिपक्ष मे जनता चक्की में पिसती जा रही है। मूल मुद्दों पर बात कोई करता ही नहीं।आखिर पैसा आये तो कहां से सारे संसाधन तो हांफते जा रहे हैं। चुनाव आने वाले हैं और घोषणाओं पर घोषणाएं होतीं जा रही है। 'पापुलिज्म' के नाम पर हेलिपेड, एयरपोर्ट,पर्यटन मेले, शिक्षा संस्थान खुलना,धराधड़ नौकरियों की भरमार घोषित करना,उद्योगीकरण पर छदम् जोर वो भी छ मास में , मंड़ी,कुल्लू विधान सभा व मंड़ी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र पर सब कुछ लूटाया जा रहा है ताकि जिन विधान सभा क्षेत्रों से भाजपा को वोट नहीं मिले उन लोगों को कैसे संतुष्ट किया जाए सरकार ने अपनी तिजोरी में रखा उधारी का धन वर्चुअल रूप से जोरों पर बांटना आरंभ कर रखा है।आचार संहिता लगने से पहले पहले ,क्या यह सब संभव है कि बिना बजट प्रावधानों के घोषणाएं की जाएं। स्पष्ट है कि ये मात्र घोषणाएं ही रह जानी है।सत्ता में फिर आये तो 'वदिया',तो पांच साल कोई दिक्कत नहीं। नहीं हटे तो कोई ना कौन फिर पूछेगा।कांगड़ा में यह कहावत बहुत मशहूर है।" गट्ठी नी धेल्ला चढ़ता रेला" । पैसा है नहीं रेल यात्रा करनी है। हमारी जानकरी के अनुसार केंद्र सरकार के पास हिमाचल सरकार का रिपोर्ट कार्ड ठीक नहीं है। सूचना एजेन्सियों की रिपोर्ट भी नकारात्मक है तो फिर माननीय मोदी जी का ही सहारा हो सकता है जो हिमाचल में भाजपा की नैय्या पार लगा सके। तभी हिमाचल महत्वपूर्ण हो चला है। जयराम सरकार के बस का मामला तो रहा नहीं ।दूसरी तरफ महंगाई ने सारे रिकार्ड तोड़ डाले है। उपभोग की सभी वस्तुएं चार गुणा मंहगी हो गई हैं।मंहगाई पर सरकार का कोई नियंत्रण ही नहीं है।अब जनता भी समझने लगी है कि चुनाव आते ही डीजल, पैट्रोल व अन्य उपभोग की वस्तुएं क्यों सस्ती हो जातीं हैं? जनता में रोष है । सरकार कर्ज में डूब गई है।फिर कभी-कभार केजरीवाल भी हिमाचल आ कर तंगहाल सरकार को तंग करते रहते है। विकास के नाम पर कुछ फुटकर काम चल रहा है। पुलिस भर्ती गोटाले ने तो कमाल ही कर दिया।हिमाचल प्रदेश का कोई जिला ऐसा नहीं जहां पेयजल की समस्या ना हो।राजधानी शिमला में तो हद हो रखी है। नगर निगम के चौबीस घंटे पानी देने के संकल्प ढ़कोसले बन कर रह गये हैं। तीसरे दिन पानी मिल रहा है। गांवों में तो " हर नल को जल की तलाश" जारी है।पेयजल के ठेकेदार नियमित यथा निर्धारित समयावधि में पानी ना देना अपना अधिकार समझते है। जनता पानी के लिए तरसती रहती है। नई पैंशन योजना,फोरलेन का चार गुणा मुआवजा , पे कमीशन के बढ़े हुए वेतनमानों का भुगतान ।हजारों-हजार नई नौकरियों के लिए वेतन। नयी घोषित परियोजनाएं ,स्मार्ट सिटी कहीं कुछ नज़र नहीं आता। यद्यपि कांग्रेस की प्रमुख प्रतिभा सिंह जहां भी जातीं है कुछ हद तक अपने लिए भीड़ एकत्रित करने में सफल रहीं है। लेकिन सुक्खू और अग्निहोत्री का वाक् युद्ध और खेमों में बंटी प्रदेश कांग्रेस जिला सिरमौर व अन्य जिल कांग्रेस कमेटियों में बिखराव ऊपर से कांग्रेस के 'एक्सट्रा कांस्टीचयुशनल' विक्रमादित्य सिंह भी एक फैक्टर बनने की कोशिश में हैं जिसे पिता वीरभद्र सिंह समय पर लांच कर गये ।फिलहाल सरकार की तमाम विफलताओं के बावजूद कांग्रेस भाजपा को एक संगठित और मजबूत चुनौती देती नज़र नज़र नहीं आ रही है और हिमाचल प्रदेश का रोम रोम कर्ज में डूबा हुआ है।
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