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सोलन ! डॉ यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी, विश्वविद्यालय नौणी के वनस्पति विज्ञान विभाग के वैज्ञानिकों की टीम द्वारा वर्ष 1991 में विकसित फ्रेंच बीन लक्ष्मी (पी -37) को हाल ही में राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली है। इस किस्म को स्वर्गीय प्रोफेसर एके सिंह के नेतृत्व में विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की एक टीम ने तैयार किया था। इस किस्म को तीन दशक पहले विकसित किया गया था, लेकिन इसकी खेती काफी हद तक केवल हिमाचल तक ही सीमित रही। तब से विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग के कई वैज्ञानिकों ने इसके रखरखाव, गुणवत्ता और प्रसार पर काम किया। सब्जी फसलों पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना के तहत विश्वविद्यालय की टीम जिसमें डॉ एके जोशी, डॉ रमेश कुमार भारद्वाज, डॉ संदीप कंसल, डॉ कुलदीप ठाकुर और डॉ डीके मेहता शामिल थे, ने राष्ट्रीय स्तर पर इसके परीक्षण और किसानों के बीच इस किस्म की लोकप्रियता बढ़ाने की दिशा में काम किया। अभी हाल ही में सब्जी फसलों पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना की 39वीं समूह बैठक वर्चुअल रूप से आयोजित हुई जिसमें लक्ष्मी बीन प्रजाति की राष्ट्रीय स्तर पर सर्वश्रेष्ठ घोषित किया गया। सब्जी विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. एके जोशी ने किस्म के फायदे बताते हुए बताया कि यह किस्म बुवाई के 60-70 दिनों में फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसमें बिना तार वाली, सीधी, हरी फली होती है जिसकी लंबाई लगभग 15 सेंटीमीटर होती है। उन्होंने कहा कि उपज क्षमता लगभग 160-170 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। डॉ. जोशी ने बताया कि रिलीज होने के 30 साल बाद भी फ्रेंच बीन की अन्य पोल-प्रकार की प्रजाति से लक्ष्मी प्रजाति ने विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन किया। उन्होंने रिले-फसल प्रणाली में इस किस्म के उपयोग की वकालत की जिसको मध्य-पहाड़ियों के किसानों द्वारा टमाटर की पंक्तियों के बीच रिले फसल के रूप में इस्तेमाल की जाती है । इस तरह उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है और किसान एक ही भूमि से एक सीजन में अपनी आय को 35,000 रुपये तक बढ़ा सकते हैं। टीम के प्रयासों की सराहना करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. परविंदर कौशल ने कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर इस किस्म की गुणवत्ता का माना जाना इसके प्रजनक को श्रद्धांजलि है। राष्ट्रीय स्तर पर किस्म को मिली सिफारिश को डॉ. कौशल ने किसानों की आय बढ़ाने की दिशा में एक कदम के रूप में देखा। उन्होंने वैज्ञानिकों को सलाह दी कि वे विश्वविद्यालय द्वारा जारी लोकप्रिय किस्मों को राष्ट्रीय स्तर पर खेती के लिए बढ़ावा देने की दिशा में कार्य करें।
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