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शिमला ! विश्वविद्यालय एसएफआई इकाई ने PhD के अंदर बिना प्रवेश परीक्षा के हुए दाखिलों को लेकर प्रेस कांफ्रेंस की और उन दाखिलों को निरस्त करने की मांग उठाई। प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए कैंपस सचिव रॉकी ने विश्वविद्यालय में हुई हाल ही में PhDभर्ती पर आपत्ति जताते हुए इसे अध्यादेश और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के नियमों की अवहेलना बताया। परिसर सचिव रॉकी का कहना है कि विश्वविद्यालय प्रशासन मात्र अपने चहेतों को फायदा पहुंचाने के लिए इस तरह की धांधलियां पीएचडी के अंदर कर रहा है। विश्वविद्यालय में जो भी एडमिशन पीएचडी के अंदर हुई हैं यूजीसी और विश्वविद्यालय के ऑर्डिनेंस के नियमों को दरकिनार करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति द्वारा अपने फायदे के लिए की गई है। जिसके प्रमुख बिंदु इस प्रकार से है टीचर कोटा।:- विश्वविद्यालय के अंदर कार्यकारी परिषद EC में तय किया गया की हाल ही में जिन प्रोफेसर कीभर्तियां हुई है और जिन अध्यापकों की पीएचडी पूरी नहीं हुई है वो अध्यापक अपनी पीएचडी मैं एडमिशन बिना किसी एंट्रेंस एग्जाम के ले सकते हैं। उनके लिए EC के अंदर एक सुपरन्यूमैरेरी सीट का प्रस्ताव पास किया गया। जिससे वे अपनी पीएचडी बिना किसी एंट्रेंस एग्जाम के पूरी कर सकते हैं। SFI का कहना है यदि इस तरह की सुपरन्यूमैरेरी सीट आप रख रहे हैं तो इसमें जितने भी प्राध्यापक कॉलेजों और विश्वविद्यालय के अंदर पढ़ाते हैं उन्हें समान अवसर का मौका मिलना चाहिए जोकि प्रवेश परीक्षा के माध्यम से ही दिया जाना था जिसे विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा नहीं दिया गया क्योंकि विश्वविद्यालय प्रशासन और प्रदेश की सरकार अपने चहेतों की भर्तियां पीएचडी के अंदर करवाना चाहती है और इस विश्वविद्यालय को एक विशेष विचारधारा का अड्डा बनाना चाहती है। इस भेदभाव पूर्ण फैसले के कारण जो प्राध्यापक अपनी पीएचडी पूरी करना चाहता भी था वह भी अपनी पीएचडी पूरी नहीं कर पाएगा। SFI ने सवाल उठाया की अगर एक छात्र PhD में प्रवेश के लिए प्रवेश परीक्षा पास कर सकता है तो एक अध्यापक क्यों नहीं? Wards कोटा:- विश्वविद्यालय प्रशासन ने अपनी भगवाकरण की इसी मुहिम को आगे बढ़ाते हुए 21 अगस्त 2021 को विश्वविद्यालय की एग्जीक्यूटिव काउंसिल की मीटिंग में यह पारित किया की विश्वविद्यालय का प्राध्यापक व कर्मचारी वर्ग अपने बच्चों की एडमिशन PhD के अंदर बिना किसी प्रवेश परीक्षा के करवा सकता है। और सबसे पहले जिनके बच्चे इसके माध्यम से PhD में दाखिला लेते हैं वह है विश्वविद्यालय का कुलपति, डीन ऑफ सोशल साइंसेज, डायरेक्टर है। इससे यह सिद्ध होता है की यह कहीं ना कहीं उन 1200 से अधिक कर्मचारियों व 300 से अधिक प्राध्यापकों के बच्चों के साथ भी भेदभाव है उनके समान अवसर के अधिकार को छीन लिया गया है क्योंकि सबसे पहले जिन के बच्चों की भर्ती PhD में हुई है वे विश्वविद्यालय के सबसे सर्वोच्च स्थान पर बैठे हुए अधिकारी हैं और कहीं ना कहीं प्रभावशाली लोग हैं । विश्वविद्यालय एसएसआई इकाई सचिव रॉकी ने आरोप लगाया कि कोटा कहीं ना कहीं प्रशासन और प्रदेश सरकार के इशारे पर कुलपति के बेटे को फायदा पहुंचाने की साजिश है। क्योंकि जब EC के द्वारा इस कोटे के तहत यह सीटें निकाली गई ना तो इन सीटों को विज्ञापित भी नही किया गया न ही प्रवेश परीक्षा का आयोजन किया गया जोकि समान अवसर के अधिकार की भी छीनना है और यूजीसी की गाइडलाइंस की अवहेलना है। विश्वविद्यालय के अंदर दीनदयाल उपाध्याय नाम से एक पीठ का गठन किया गया है और जिसके अंदर डिप्लोमा कोर्स शुरू किया गया है जिसकी अपनी कोई मास्टर डिग्री नहीं है परंतु विश्वविद्यालय प्रशासन ने अयोग्य लोगों को इस विश्वविद्यालय में भर्ती करने के लिए इस पीठ में PhD का प्रावधान किया। अब सवाल यह है कि जिस पीठ की मास्टर डिग्री ही नहीं है वह पीएचडी कैसे करवा रही है। दूसरा इस विश्वविद्यालय के अंदर यह होता आ रहा है की जितनी सीटें पीएचडी के लिए विज्ञापित की जाती हैं उससे ज्यादा भर्तियां की जा रही है। ये एक बहुत बड़ी सोची समझी साजिश के तहत किया जा रहा है। डीडीयू के अंदर भी इसी तरह की धांधली सामने आई थी जिसमें पहले 5 सीटों को विज्ञापित किया गया था परंतु अपने चहेतों को फायदा पहुंचाने के लिए 8 और लोगों को और एडमिशन पीएचडी के अंदर दिलाई गई। एसएसआई ने आरोप लगाए हैं की विश्वविद्यालय प्रशासन या कुलपति प्रदेश सरकार और आर एस एस के इशारे पर इस विश्वविद्यालय के अंदर नियमों को दरकिनार करते हुए एक विशेष विचारधारा को इस विश्वविद्यालय के अंदर आरक्षण दे रही है फिर चाहे किसी भी नियम को ताक पर रखना हो। एसएसआई इन भर्तियों की जो नियमों को ताक पर रखकर की गई है और मेहनत करने वाले छात्रों को समान अवसर के अधिकार को छीन करके की गई हैं कड़ी निंदा करती है और प्रदेश सरकार और प्रशासन से यह मांग करती है की इन भर्तियों को निरस्त किया जाए। विश्वविद्यालय के अंदर पिछले कुछ समय से निजी शिक्षण संस्थानों से छात्रों की माइग्रेशन हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के अंदर की जा रही है जो सरासर विश्वविद्यालय के अध्यादेश का उल्लंघन करता है क्योंकि हम जानते हैं विश्वविद्यालय के अंदर PhD के अंदर दाखिला लेने के लिए प्रवेश परीक्षा और NET JRF qualify करना पड़ता है जबकि दूसरी और निजी संस्थानों के अंदर सिर्फ पैसे के बलबूते आप PhD के अंदर दाखिला ले सकते हैं और अंत में आप अपने चहेते लोगों को HPU में PhD के अंदर माइग्रेशन करवा देते हो और जो पीएचडी के अंदर बैठने के योग्य ही नहीं है इसे साफ तौर पर भ्रष्टाचार सामने आता है।
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