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शिमला , 29 सितंबर [ विशाल सूद ] ! हिमाचल प्रदेश में बरसात से भारी तबाही हुई है। बारिश के तांडव से 481लोगों की मौत हो गई है है। जान माल के इस नुकसान को प्राकृतिक आपदा का नाम दिया जा रहा है लेकिन इसमें सरकारों की नीतियों और लोगों की भूमिका को जानकर तथाकथित विकास के मॉडल में बदलाव की जरूरत है। यह बात आज शिमला में हिमालय नीति अभियान संस्था ने कही है। हिमालय नीति के समन्यवक गुमान सिंह ने कहा कि हिमाचल में विकास का जो मॉडल अपनाया जा रहा है इसे समय रहते बदला न गया तो यह विनाश का कारण बनेगा। उन्होंने कहा कि यह नुकसान बारिश से नहीं हुआ बल्कि जो अवेध डंपिग नदी नालों की गई है उससे ज्यादा नुकसान हुआ। उन्होंने कहा कि एनएचएआई ने सड़को का निर्माण जिस तरह से किया है, पहाड़ों की गलत कटिंग से ज्यादा नुकसान हुआ है। इस लापरवाही से सैंकड़ों लोगों को नुकसान उठाना पड़ा है। एनएचएआई पर एफआईआर होनी चाहिए। पौंग डेम से जिस तरह से पानी छोड़ा गया उससे बहुत नुकसान हुआ इसके खिलाफ कार्यवाही होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि राज्यपाल से राज्यपाल से मिले हैं और राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की मांग की। वह मुख्यमंत्री से मिलकर 55 सूत्रीय सुझाव पत्र देंगे। ऐसे में भाजपा कांग्रेस को राजनीति का खेल न खेलकर प्रदेश को पटरी पर लाने के लिए काम करने की जरूरत है। आपदा में जिन लोगों के घर चले गए हैं उनको फॉरेस्ट कंजरवेशन एक्ट में बदलाव कर सरकारी भूमि दी जानी चाहिए।यह आपदा प्राकृतिक नही बल्कि मानव जनित है। प्रदेश में जियोलॉजिकल सर्वे के अनुसार काम होना चाहिए इसमें लोगों की राय ली जानी चाहिए। हिमाचल में एक समान विकास मॉडल नहीं अपनाया जा सकता है। गलतियों से सीखने की जरूरत है। हिमालय क्या काम होना चाहिए और क्या नहीं इसके लिए शोध की जरूरत है। पहाड़ों में फोरलेन की जरूरत है या डबल लेन ही काफी है इस पर विचार की जरूरत है। हिमालय में विकास का मॉडल क्या हो इसके लिए काम होना चाहिए। उन्होंने शिमला डेवलपमेंट प्लान 2041 को वापिस लेने की मांग की है यह धंसते शिमला के वजूद को बचाने के लिए जरूरी है।
शिमला , 29 सितंबर [ विशाल सूद ] ! हिमाचल प्रदेश में बरसात से भारी तबाही हुई है। बारिश के तांडव से 481लोगों की मौत हो गई है है। जान माल के इस नुकसान को प्राकृतिक आपदा का नाम दिया जा रहा है लेकिन इसमें सरकारों की नीतियों और लोगों की भूमिका को जानकर तथाकथित विकास के मॉडल में बदलाव की जरूरत है। यह बात आज शिमला में हिमालय नीति अभियान संस्था ने कही है।
हिमालय नीति के समन्यवक गुमान सिंह ने कहा कि हिमाचल में विकास का जो मॉडल अपनाया जा रहा है इसे समय रहते बदला न गया तो यह विनाश का कारण बनेगा। उन्होंने कहा कि यह नुकसान बारिश से नहीं हुआ बल्कि जो अवेध डंपिग नदी नालों की गई है उससे ज्यादा नुकसान हुआ। उन्होंने कहा कि एनएचएआई ने सड़को का निर्माण जिस तरह से किया है, पहाड़ों की गलत कटिंग से ज्यादा नुकसान हुआ है।
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इस लापरवाही से सैंकड़ों लोगों को नुकसान उठाना पड़ा है। एनएचएआई पर एफआईआर होनी चाहिए। पौंग डेम से जिस तरह से पानी छोड़ा गया उससे बहुत नुकसान हुआ इसके खिलाफ कार्यवाही होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि राज्यपाल से राज्यपाल से मिले हैं और राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की मांग की। वह मुख्यमंत्री से मिलकर 55 सूत्रीय सुझाव पत्र देंगे।
ऐसे में भाजपा कांग्रेस को राजनीति का खेल न खेलकर प्रदेश को पटरी पर लाने के लिए काम करने की जरूरत है। आपदा में जिन लोगों के घर चले गए हैं उनको फॉरेस्ट कंजरवेशन एक्ट में बदलाव कर सरकारी भूमि दी जानी चाहिए।यह आपदा प्राकृतिक नही बल्कि मानव जनित है। प्रदेश में जियोलॉजिकल सर्वे के अनुसार काम होना चाहिए इसमें लोगों की राय ली जानी चाहिए। हिमाचल में एक समान विकास मॉडल नहीं अपनाया जा सकता है।
गलतियों से सीखने की जरूरत है। हिमालय क्या काम होना चाहिए और क्या नहीं इसके लिए शोध की जरूरत है। पहाड़ों में फोरलेन की जरूरत है या डबल लेन ही काफी है इस पर विचार की जरूरत है। हिमालय में विकास का मॉडल क्या हो इसके लिए काम होना चाहिए। उन्होंने शिमला डेवलपमेंट प्लान 2041 को वापिस लेने की मांग की है यह धंसते शिमला के वजूद को बचाने के लिए जरूरी है।
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