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शिमला , 10 फरवरी [ शिवानी ] ! देश के उत्तरी भारत में बसे छोटे से प्रदेश हिमाचल प्रदेश को ऐसे ही देवों की भूमि नहीं कहा जाता यहां पर सदैव देवी देवताओं का वास रहता है और यह भूमि अनेकों तीर्थ स्थानों से भरी हुई है। खबर हिमाचल से की टीम ऐसे ही एक तीर्थ स्थान तत्तापानी में पहुंची जहां पर गरम पानी के चश्मे पाए जाते हैं। यह कुदरत का ही करिश्मा है कि जहां एक और सतलुज नदी का ठंडा पानी है वही उसी नदी के किनारे धरती से निकलते हुए गरम पानी के चश्मे। यह अपने में ही एक अचंभित कर देने वाला अहसास है। खबर हिमाचल से की टीम जब तीर्थ स्थल तत्तापानी पहुंची तो पाया की वहां पर एक मेला लगा हुआ था जिसका आगाज मकर संक्रांति के दिन हुआ जोकि पूरे 1 महीने तक चलता है। कहा जाता है कि उस पानी में स्नान करने से कई तरह के चर्म रोगों से मुक्ति मिल जाती है। इस तीर्थ स्थल से लोगों की काफी आस्था जुड़ी हुई है। लोग काफी दूर-दूर से यहां तत्तापानी में स्नान करने के लिए पहुंचे हुए थे और बड़े, बूढ़े बच्चे सभी गरम चश्में के पानी से स्नान कर रहे थे। टीम ने इस मेले के बारे में जानकारी पाने के लिए जब वहां के मंदिर के महंत से इस मेले के महत्व के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि यह मेला सदियों से मकर संक्रांति के दिन मनाया जाता है और उनकी पीढ़ियां कई पीढ़ियों से मंदिर में महंत का काम कर रही है। उन्होंने बताया कि यह मेला मकर संक्रांति के दिन शुरू होता है जिसकी शुरुआत खिचड़ी का भंडारा लगा कर की जाती है और लोग खिचड़ी का दान और तुलादान करते हैं। उनका कहना है कि पहले इस मेले को 2 दिन के लिए ही मनाया जाता था लेकिन अब इस मेले को 1 महीने तक मनाया जाता है। जिसमें पूरे 1 महीने तक बाजार सजाया जाता है और दुकानें लगाई जाती है। लोग वहां पर तत्तापानी में स्नान करने के लिए दूर दूर से पहुंचते हैं। वहीं जब एक और बाबा से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वह भी यहां पर अतिथि है उन्होंने कहा कि उन्हें भी थोड़ी बहुत ही जानकारी है। उन्होंने बताया कि यह जमदग्नि ऋषि की तपोस्थली है और जब ऋषि मणिकरण से नहाकर वापस आए थे तो उन्होंने अपना परणा और लंगोट को यहां निचोड़ा था जिसके छींटे यहां इस जगह पर गिरे थे। जहां जहां पर वह छींटे गिरे थे वहां पर गर्म पानी उत्पन्न होने लगा। उनका कहना है कि इस छोटे से स्थान को छोड़कर और कहीं पर भी गर्म पानी नहीं पाया जाता है। एक और तीर्थ स्थल तत्तापानी से कई श्रद्धालुओं की श्रद्धा जुड़ी हुई है। वहीं इस स्थान पर गंदगी के भी काफी अंबार लगे हुए है। जो की इस तीर्थ स्थल की सुंदरता पर दाग का काम रहे थे। जब वहां के लोगों से साफ सफाई के बारे में पूछा गया तो उनका कहना है कि यहां की सफाई व्यवस्था काफी चरमराई हुई है उनका कहना है कि प्रशासन ने यहां पर बोर्ड तो लगा दिए हैं जिसमें लिखा है कि गंदगी फैलाने वालों को ₹500 का जुर्माना किया जाएगा। लेकिन धरातल पर वह कहीं भी नजर नहीं आता। वही जब वहां पर दुकाने लगाए हुए व्यापारियों से बातचीत की गई तो उनकी प्रतिक्रिया भी कुछ खास नहीं थी उनका कहना है कि यहां पर तकरीबन ढाई सौ के करीब दुकानें लगाई गई हैं जिस वजह से उन्हें खास आमदनी नहीं हो पाई है। उनका कहना है कि प्रशासन द्वारा काफी ऊंचे ऊंचे दाम में उन्हें दुकान लगाने के लिए जगह दी जाती है। लेकिन जितने दाम वह जगह खरीदने के लिए देते हैं उतनी उनकी वहां पर कमाई नहीं हो पाती। उनका कहना है कि वह लोग कई वर्षों से अपनी पौराणिक परंपरा को सहेजे हुए है ऐसे में उन्होंने मेला कमेटी और प्रशासन से दुकानें लगाने के लिए कुछ राहत की माग की है। उनका कहना है कि कई ऐसे मेले है जिनमें उन्हें फ्री में अपनी दुकान लगाने के लिए जगह दी जाती है। लेकिन कहीं मेले ऐसे हैं जहां पर उनसे काफी ऊंचे ऊंचे दाम वसूले जाते हैं। उसका कहना है कि हम यह नहीं कहते कि हमें फ्री में ही जगह दी जाए लेकिन कुछ राहत प्रशासन की तरफ से उन्होंने अपने लिए मांगी है।
शिमला , 10 फरवरी [ शिवानी ] ! देश के उत्तरी भारत में बसे छोटे से प्रदेश हिमाचल प्रदेश को ऐसे ही देवों की भूमि नहीं कहा जाता यहां पर सदैव देवी देवताओं का वास रहता है और यह भूमि अनेकों तीर्थ स्थानों से भरी हुई है।
खबर हिमाचल से की टीम ऐसे ही एक तीर्थ स्थान तत्तापानी में पहुंची जहां पर गरम पानी के चश्मे पाए जाते हैं। यह कुदरत का ही करिश्मा है कि जहां एक और सतलुज नदी का ठंडा पानी है वही उसी नदी के किनारे धरती से निकलते हुए गरम पानी के चश्मे। यह अपने में ही एक अचंभित कर देने वाला अहसास है।
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खबर हिमाचल से की टीम जब तीर्थ स्थल तत्तापानी पहुंची तो पाया की वहां पर एक मेला लगा हुआ था जिसका आगाज मकर संक्रांति के दिन हुआ जोकि पूरे 1 महीने तक चलता है। कहा जाता है कि उस पानी में स्नान करने से कई तरह के चर्म रोगों से मुक्ति मिल जाती है। इस तीर्थ स्थल से लोगों की काफी आस्था जुड़ी हुई है। लोग काफी दूर-दूर से यहां तत्तापानी में स्नान करने के लिए पहुंचे हुए थे और बड़े, बूढ़े बच्चे सभी गरम चश्में के पानी से स्नान कर रहे थे।
टीम ने इस मेले के बारे में जानकारी पाने के लिए जब वहां के मंदिर के महंत से इस मेले के महत्व के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि यह मेला सदियों से मकर संक्रांति के दिन मनाया जाता है और उनकी पीढ़ियां कई पीढ़ियों से मंदिर में महंत का काम कर रही है। उन्होंने बताया कि यह मेला मकर संक्रांति के दिन शुरू होता है जिसकी शुरुआत खिचड़ी का भंडारा लगा कर की जाती है और लोग खिचड़ी का दान और तुलादान करते हैं। उनका कहना है कि पहले इस मेले को 2 दिन के लिए ही मनाया जाता था लेकिन अब इस मेले को 1 महीने तक मनाया जाता है। जिसमें पूरे 1 महीने तक बाजार सजाया जाता है और दुकानें लगाई जाती है। लोग वहां पर तत्तापानी में स्नान करने के लिए दूर दूर से पहुंचते हैं।
वहीं जब एक और बाबा से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वह भी यहां पर अतिथि है उन्होंने कहा कि उन्हें भी थोड़ी बहुत ही जानकारी है। उन्होंने बताया कि यह जमदग्नि ऋषि की तपोस्थली है और जब ऋषि मणिकरण से नहाकर वापस आए थे तो उन्होंने अपना परणा और लंगोट को यहां निचोड़ा था जिसके छींटे यहां इस जगह पर गिरे थे। जहां जहां पर वह छींटे गिरे थे वहां पर गर्म पानी उत्पन्न होने लगा। उनका कहना है कि इस छोटे से स्थान को छोड़कर और कहीं पर भी गर्म पानी नहीं पाया जाता है।
एक और तीर्थ स्थल तत्तापानी से कई श्रद्धालुओं की श्रद्धा जुड़ी हुई है। वहीं इस स्थान पर गंदगी के भी काफी अंबार लगे हुए है। जो की इस तीर्थ स्थल की सुंदरता पर दाग का काम रहे थे। जब वहां के लोगों से साफ सफाई के बारे में पूछा गया तो उनका कहना है कि यहां की सफाई व्यवस्था काफी चरमराई हुई है उनका कहना है कि प्रशासन ने यहां पर बोर्ड तो लगा दिए हैं जिसमें लिखा है कि गंदगी फैलाने वालों को ₹500 का जुर्माना किया जाएगा। लेकिन धरातल पर वह कहीं भी नजर नहीं आता।
वही जब वहां पर दुकाने लगाए हुए व्यापारियों से बातचीत की गई तो उनकी प्रतिक्रिया भी कुछ खास नहीं थी उनका कहना है कि यहां पर तकरीबन ढाई सौ के करीब दुकानें लगाई गई हैं जिस वजह से उन्हें खास आमदनी नहीं हो पाई है। उनका कहना है कि प्रशासन द्वारा काफी ऊंचे ऊंचे दाम में उन्हें दुकान लगाने के लिए जगह दी जाती है। लेकिन जितने दाम वह जगह खरीदने के लिए देते हैं उतनी उनकी वहां पर कमाई नहीं हो पाती। उनका कहना है कि वह लोग कई वर्षों से अपनी पौराणिक परंपरा को सहेजे हुए है ऐसे में उन्होंने मेला कमेटी और प्रशासन से दुकानें लगाने के लिए कुछ राहत की माग की है। उनका कहना है कि कई ऐसे मेले है जिनमें उन्हें फ्री में अपनी दुकान लगाने के लिए जगह दी जाती है। लेकिन कहीं मेले ऐसे हैं जहां पर उनसे काफी ऊंचे ऊंचे दाम वसूले जाते हैं। उसका कहना है कि हम यह नहीं कहते कि हमें फ्री में ही जगह दी जाए लेकिन कुछ राहत प्रशासन की तरफ से उन्होंने अपने लिए मांगी है।
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