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शिमला ,15 जनवरी [ विशाल सूद ] ! हिमाचल प्रदेश में 1 साल के लंबे अंतराल के बाद सुक्खू सरकार में कैबिनेट विस्तार हुआ और दो नए मंत्रियों को कैबिनेट में जगह दी गई। नए मंत्रियों को विभाग वितरित किए गए तो विक्रमादित्य सिंह से खेल मंत्रालय लेकर यादवेंद्र गोमा को दिया गया। विक्रमादित्य की अपनी ही सरकार से नाराजगी की चर्चा भी सियासी गलियारों में हुई खासकर तब जब विक्रमादित्य कैबिनेट की बैठक में शामिल नहीं हुए। विक्रमादित्य ने अब इसको लेकर चुप्पी तोडी है। विक्रमादित्य सिंह ने विभाग वापिस लेने पर कहा कि मुझे कोई नराजगी नहीं है. वीरभद्र सिंह के नाम पर प्रदेश में चुनाव हुए. सबने मिलकर काम किया. विभाग लेना और देना मुख्यमंत्री का अधिकार क्षेत्र है. उन्होंने कहा कि मंत्री का तमगा लेने वाले हम नहीं है. व्यक्ति अपने कर्मो से जाना जाता है कितने पोर्टफोलियो किसके पास है इससे नहीं. सरकारें आती जाती है. जनता के साथ जुड़े रहना जरूरी है.एक साल में खेल विभाग में जो कर सकते थे किया और इसमें और बहुत कुछ करने की जरूरत है। वही राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा में शामिल होने के सवाल पर विक्रमादित्य सिंह ने कहा कि हम कांग्रेस पार्टी के कर्मठ कार्यकर्ता है. कांग्रेस की विचारधारा उनकी विचार धारा है. आरएसएस और संघ के साथ उनके वैचारिक और सेधांतिक मतभेद है. विक्रमादित्य ने कहा कि ये कह नहीं रहे बल्कि करके दिखाया है। सनातनी होने के नाते उनका दायित्व है कि प्रदेश कि देव संस्कृति को बना कर रखे. पूर्व में वीरभद्र सरकार ने प्रदेश में धर्मनांतरण का क़ानून लाया। पूर्व प्रधानमंत्री स्व राजीव गाँधी ने ही 1989 में राम मंदिर के दरवाज़े खोले. उन्होंने कहा कि उन्हें भाजपा और आरएसएस से सर्टिफिकेट लेने कि जरूरत नहीं है कि हम कितने हिन्दू हैं। पार्टी के दिशानिर्देशों का पालन किया जाएगा। पार्टी ने किसी को जाने से नहीं रोका है. हमें जब जाना होगा हम जाएंगे। राम मंदिर देश के लिए गर्व का पल है इसे राजनितिक दृष्टि से नहीं देखा जाना चाहिए।
शिमला ,15 जनवरी [ विशाल सूद ] ! हिमाचल प्रदेश में 1 साल के लंबे अंतराल के बाद सुक्खू सरकार में कैबिनेट विस्तार हुआ और दो नए मंत्रियों को कैबिनेट में जगह दी गई। नए मंत्रियों को विभाग वितरित किए गए तो विक्रमादित्य सिंह से खेल मंत्रालय लेकर यादवेंद्र गोमा को दिया गया। विक्रमादित्य की अपनी ही सरकार से नाराजगी की चर्चा भी सियासी गलियारों में हुई खासकर तब जब विक्रमादित्य कैबिनेट की बैठक में शामिल नहीं हुए। विक्रमादित्य ने अब इसको लेकर चुप्पी तोडी है।
विक्रमादित्य सिंह ने विभाग वापिस लेने पर कहा कि मुझे कोई नराजगी नहीं है. वीरभद्र सिंह के नाम पर प्रदेश में चुनाव हुए. सबने मिलकर काम किया. विभाग लेना और देना मुख्यमंत्री का अधिकार क्षेत्र है. उन्होंने कहा कि मंत्री का तमगा लेने वाले हम नहीं है. व्यक्ति अपने कर्मो से जाना जाता है कितने पोर्टफोलियो किसके पास है इससे नहीं. सरकारें आती जाती है. जनता के साथ जुड़े रहना जरूरी है.एक साल में खेल विभाग में जो कर सकते थे किया और इसमें और बहुत कुछ करने की जरूरत है।
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वही राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा में शामिल होने के सवाल पर विक्रमादित्य सिंह ने कहा कि हम कांग्रेस पार्टी के कर्मठ कार्यकर्ता है. कांग्रेस की विचारधारा उनकी विचार धारा है. आरएसएस और संघ के साथ उनके वैचारिक और सेधांतिक मतभेद है. विक्रमादित्य ने कहा कि ये कह नहीं रहे बल्कि करके दिखाया है।
सनातनी होने के नाते उनका दायित्व है कि प्रदेश कि देव संस्कृति को बना कर रखे. पूर्व में वीरभद्र सरकार ने प्रदेश में धर्मनांतरण का क़ानून लाया। पूर्व प्रधानमंत्री स्व राजीव गाँधी ने ही 1989 में राम मंदिर के दरवाज़े खोले. उन्होंने कहा कि उन्हें भाजपा और आरएसएस से सर्टिफिकेट लेने कि जरूरत नहीं है कि हम कितने हिन्दू हैं। पार्टी के दिशानिर्देशों का पालन किया जाएगा। पार्टी ने किसी को जाने से नहीं रोका है. हमें जब जाना होगा हम जाएंगे। राम मंदिर देश के लिए गर्व का पल है इसे राजनितिक दृष्टि से नहीं देखा जाना चाहिए।
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