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शिमला ! अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय इकाई द्वारा आज दिनांक 22 जनवरी 2022 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती व पराक्रम दिवस के उपलक्ष्य पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया | इस कार्यक्रम में मुख्यअतिथि के रूप में श्री हरीश कुमार जी ( चेयरमैन राजनीतिक विज्ञान विभाग हि.प्र.वि.वि.) एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में श्री गौरव अत्रि जी ( अ.भा.वि.प. हिमाचल प्रान्त संगठन मंत्री ) मौजूद रहे | युवाओं को सम्बोधित करते हुए गौरव अत्रि ने कहा कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस साहसी,नेतृत्व कौशल से परिपूर्ण और असाधारण वक्ता थे. वे खुद तो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल थे ही पर उन्होंने अन्य कई लोगों को भारतीय राष्ट्रीय सेना में शामिल होने और भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया था. नेताजी के नाम से लोकप्रिय सुभाष चंद्र बोस ने अंग्रेजों से लड़ने के लिए आजाद हिंद फौज की स्थापना की थी. नेताजी की राष्ट्र के लिए निस्वार्थ सेवा का सम्मान करने और उन्हें याद करने के लिए भारत सरकार ने हर साल 23 जनवरी को उनके जन्मदिन को 'पराक्रम दिवस' के रूप में मनाने का फैसला किया.सुभाष चंद्र बोस की जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मनाने के पीछे का मकसद देश के लोगों, खासतौर पर युवाओं में नेताजी की तरह ही विपरीत परिस्थितियों का सामना करने और उनमें देशभक्ति की भावना का संचार करना है | कार्यक्रम में उपस्थित कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुए मुख्य अतिथि हरीश कुमार ने कहा कि जब देश अंग्रेजी हुकूमत का गुलाम था तब नेताजी सुभाष चंद्र बोस आजाद हिंद फौज बनाकर देश की आजादी के लिए बिगुल फूंका था.नेताजी की अदम्य भावना और राष्ट्र के लिए उनके नि:स्वार्थ सेवा के सम्मान में उनको याद रखने के लिए भारत सरकार ने हर साल 23 जनवरी पर उनके जन्मदिन को 'पराक्रम दिवस' के रूप में मनाने का फैसला किया है. इससे देश के लोगों विशेषकर युवाओं को विपत्ति का सामना करने में नेताजी के जीवन से प्रेरणा मिलेगी और उनमें देशभक्ति और साहस की भावना समाहित होगी. उन्होंने कहा कि भारत की आजादी के साथ-साथ नेताजी का जुड़ाव सामाजिक कार्यों में भी बना रहा. बंगाल की भयंकर बाढ़ में घिरे लोगों को उन्होंने भोजन, वस्त्र और सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने का साहसपूर्ण काम किया था. समाज सेवा का काम नियमित रूप से चलता रहे इसके लिए उन्होंने 'युवक-दल' की स्थापना की.अपने सार्वजनिक जीवन में सुभाष को कुल 11 बार कारावास की सजा दी गई थी. सबसे पहले उन्हें 16 जुलाई 1921 को छह महीने का कारावास दिया गया था. 1941 में एक मुकदमे के सिलसिले में उन्हें कलकत्ता की अदालत में पेश होना था, तभी वे अपना घर छोड़कर चले गए और जर्मनी पहुंच गए. जर्मनी में उन्होंने हिटलर से मुलाकात की. अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध के लिए उन्होंने आजाद हिन्द फौज का गठन किया और युवाओं को 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा' का नारा भी दिया. उन्होंने कार्यक्रम में उपस्थित लोगों से नेताजी के जीवन से प्रेरणा लेने का आह्वान भी किया | इकाई उपाध्यक्ष अनिल ने कहा कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस का व्यक्तिगत हमें सिखाता है कि आत्मसम्मान गौरव और देश की रक्षा करना ही हमारा धर्म है | उन्होंने कहा कि नेताजी राजनीतिक, साहित्यिक और ऐतिहासिक दृष्टि से क्रांतिकारि नेता थे,उन्होंने भारतीयों को झुकना नहीं लड़ना सिखाया | अनिल ने कहा कि नैतिक मूल्यों और देश प्रेम की भावना की स्थापना करके ही हम अपने महापुरुषों को सच्ची श्रद्धांजलि दे पाएंगे | पैरा ओलम्पिक खिलाडियों तथा वि.वि. के सफाई कर्मचारियों का भी हुआ सम्मान इकाई उपाध्यक्ष अनिल ने कहा कि आज आयोजित इस कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के सफाई कर्मचारियों तथा पैरा ओलम्पिक खिलाडियों को भी सम्मानित किया गया | कार्यक्रम के अंत में अनिल ने सभी कार्यकर्ताओं का आभार ज्ञापित करते हुए सभी से नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जीवन से प्रेरणा लेने का आह्वान किया |
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