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शिमला ! अक्षय तृतीया का त्योहार भीषण आंधी तूफान में सड़क पर ठिठुरते और बोलने में असमर्थ बेसहारा मनोरोगी की जिंदगी में उजाला ले आया। इसकी सूत्रधार बनीं हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय की पीएचडी शोधार्थी सवीना जहां, यश ठाकुर और शिमला की एसपी डॉ. मोनिका भुटंगरू। उसे मेंटल हेल्थ केयर एक्ट 2017 के अंतर्गत रेस्क्यू करके आईजीएमसी अस्पताल में भर्ती कराया गया है। उसके पास से मोहम्मद शाकिर नाम का एक आधार कार्ड मिला है जो उसके हुलिये से मेल नहीं खाता। उमंग फाउंडेशन के सदस्य सवीना जहां और यश ठाकुर 3 मई की दोपहर को भीषण ओलावृष्टि और तूफान के बीच टूटीकंडी के पास से गुजर रहे थे कि सुरकंडा देवी मंदिर के पास बारिश में भीग कर ठिठुरते शख्स पर उनकी नजर पड़ी। उन्हें लगा कि यह कोई बेसहारा मनोरोगी है। उन्होंने तुरंत फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रो. अजय श्रीवास्तव को फोन किया और उसको अपनी कार में बैठाकर सहारा दिया। बालूगंज के थाना प्रभारी को अजय श्रीवास्तव ने फोन कर मनोरोगी को कानून के तहत रेस्क्यू करने का अनुरोध किया। थाना प्रभारी ने सिपाही भेज कर तुरंत ही रेसक्यू भी कराया। लेकिन हैरानी की बात यह है कि मेंटल हेल्थ केयर एक्ट 2017 के प्रावधानों और हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के सख्त आदेशों का गंभीर उल्लंघन करके उसे ऑकलैंड टनल के पास नगर निगम के रैन बसेरा में छोड़ दिया गया। यह पता चलने पर अजय श्रीवास्तव ने शिमला की संवेदनशील पुलिस अधीक्षक डॉ मोनिका भुटंगरू को फोन कर पुलिस द्वारा कानून के उल्लंघन की जानकारी दी। उन्होंने रैन बसेरा से उस शख्स को रेस्क्यू कराया। फिर कानून के तहत उसे जुडिशल मजिस्ट्रेट के पास पेश करके कोर्ट के आदेश पर आईजीएमसी में दाखिल कराया गया। वह व्यक्ति सिर्फ इशारों में बात करता है और अपना पता ठिकाना या कुछ भी बता पाने में असमर्थ है। बताते हैं कि वह पिछले कई महीनों से क्रॉसिंग पर बनी नई पार्किंग में खुले में रात गुजारता था। पुलिस की तलाशी में उसके पास से बिजनौर के पते वाला किसी मोहम्मद शाकिर का आधार कार्ड मिला है। लेकिन उसका ब्यौरा उसके हुलिए और उम्र से मेल नहीं खाता। आईजीएमसी के मनोचिकित्सा विभाग के अध्यक्ष डॉ दिनेश शर्मा का कहना है कि बेसहारा मनोरोगी को फिलहाल 12 मई तक के लिए भर्ती कर लिया गया है। उसके परिवार का पता ढूंढने के लिए कोशिश भी की जा रही है। यदि उसे लंबे समय तक इलाज की जरूरत पड़ेगी तो राज्य मनोरोग अस्पताल में भेज दिया जाएगा। गौरतलब है कि सवीना जहां और यश ठाकुर सड़कों पर घूमने वाले अनेक बेसहारा मनोरोगियों को कानून के तहत पुलिस के माध्यम से रेस्क्यू करवा चुके हैं। उमंग फाउंडेशन के साथ जुड़कर समाज में निस्वार्थ भाव से काम कर रहे अन्य युवा भी प्रदेश भर से बहुत से बेसहारा मनोरोगियों का जीवन बचा चुके हैं। प्रो. श्रीवास्तव ने कहा कि जहां कहीं भी कोई बेसहारा मनोरोगी दिखाई दे तो उसकी सूचना तुरंत पुलिस को दें। कानून के प्रावधानों और हाईकोर्ट के आदेशों के तहत उसे रेस्क्यू करना पुलिस की जिम्मेवारी है। उधर एसपी डॉ मोनिका का कहना है कि बेसहारा मनोरोगयों को कानून के अंतर्गत रेस्क्यू करके अस्पताल में भर्ती कराना पुलिस का दायित्व है।
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