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डलहौजी , 25 अक्टूबर [ सुभाष महाजन ] ! हिन्दू धर्म में आस्था रखने वाले बकलोह के गोरखा समुदाय के लोगो का 5 दिवसीय दीपावली का त्यौहार दो दिन पहले ही शरू हो गया है। दीपावली की रात को लक्ष्मी पूजा किए जाने के बाद गोरखा समुदाय की महिलाएं एवं युवतिया भइलो खेलने के लिए एक दूसरे के घरों में जाती हैं। यह परंपरा गोरखा समुदाय में एक सास्कृतिक उत्सव के रूप में देखा जाता है। लक्ष्मी पूजा के दिन गोरखा समुदाय के लोग गाय का पूजन करते हैं एवं गाय को लक्ष्मी का स्वरूप मानकर घर आगन को गोबर से लिपने के बाद घर में दीये जलाते हैं। लक्ष्मी पूजा से दो दिन आगे ही त्योहार पर्व शुरू हो जाता है। लक्ष्मी पूजा से दो दिन आगे काग त्यौहार अर्थात कौवे का पूजन, दूसरे दिन कुकुर त्यौहार अर्थात यमराज के दूत कुत्ता का पूजन किया जाता है। यह अनोखी एवं सास्कृतिक परंपरा का उत्सव गोरखा समुदाय में काफी उल्लास से प्रतिवर्ष मनाया जाता है। लक्ष्मी पूजा के दिन गोरखा समुदाय के युवती एवं महिलाएं घर घर में जाकर भइलोनी खेलते हुए गीत के माध्यम से घर में सुख शाति समृद्धि का संदेश एवं आशीर्वाद देते है। भइलों खेलने वालों को घर के मालिक यथाशक्ति दक्षिणा देते हुए उन्हें अगले बार से सुख एवं शाति का संदेश लेकर आने के लिए कहते है। उसी तरह लक्ष्मी पूजा के दूसरे दिन भाई टिका को लेकर तैयारी शुरू की जाती है। लक्ष्मी पूजा के एक दिन के बाद गोरखा समुदाय भाई टिका का त्यौहार काफी हर्ष उल्लास के साथ मनाते हैं। इस दिन लड़के देवसी खेलने के लिए निकलते हैं। देवसी गीत के जरिए घर-घर पहुंचकर सुस्वास्थ्य, समृद्धि, शाति भाईचारे का संदेश गीत के जरिए देते हैं एवं घर के सभी समुदाय को आशीर्वाद भी देते हैं। इस परंपरा को लेकर डुआर्स में काफी चहल पहल देखी जाती है। लोगों का कहना है पहले की अपेक्षा आज के युवाओं में इस परंपरा को भूलते जा रहे हैं इस परंपरा को जीवित रखने के लिए जगह-जगह सामूहिक रूप से देवसी कार्यक्रम सामूहिक रूप से विभिन्न संस्था द्वारा भी किया जा रहा है।
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