- विज्ञापन (Article Top Ad) -
चम्बा , 26 सितंबर [ शिवानी ] ! वैसे तो नेपाल भी देवभूमि के नाम से प्रचलित है जहां पर बोध मंदिर तो है ही पर वहीं पर देखा जाए तो भगवान शिव और भगवान विष्णु को समर्पित कई मंदिर विराजमान है जिनमे सबसे प्रसिद्ध भगवान भोलेनाथ को समर्पित पशुपतिनाथ मंदिर इनमे एक है। अब हम अपने दर्शकों को नेपाल काठमांडू से करीब 10, किलोमीटर की दूरी पर एक ऐसे मंदिर के दर्शन करवाएंगे जिसका नाम नीलकंठ के नाम से भले ही जुड़ा हुआ है पर उसमे भगवान विष्णु सरोवर के बीच नाग शय्या पर लेटे हुए दिखाई देते है। श्याम रंग से सशोभित इस भीमकाय मूर्ति का किसने और कब निर्माण करवाया उसका उल्लेख किसी के पास नही है। पर भगवान विष्णु को समर्पित इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह तालाब ब्रमाधित समुंदर का प्रतिनिधित्व करता है। आपको यह जानकर भी हैरानी होगी कि जिस तालाब में भगवान विष्णु प्रत्यक्ष रूप से विराजमान दिखते है तो वही भगवान शिव सावन में होने वाले उपवास के दौरान अप्रत्यक्ष रूप से इसी झील में उनकी अलौकिक छवि दिखाई देती है। भगवान भोलेनाथ को समर्पित इस मंदिर का नाम बूढ़ानीलकंठ है और इस प्राचीन मंदिर को देखने के लिए दुनिया भर के सैलानी दूर दूर से नेपाल आते है। हैरानी की बात तो यह है कि शिव मंदिर के गर्भगृह में जहां पर भगवान भोले नाथ की परित्मा होनी चाहिए उस स्थान पर करीब 13,मीटर के इस तलाब में भगवान विष्णु जी पानी के मध्य नाग शय्या पर लेटे विश्राम करते हुए दिखाई देते है। इससे बड़ी हैरानी की बात एक और भी इस मंदिर में देखने को मिलती है कि जिस नाग शय्या पर भगवान विष्णु जी नाग शय्या पर विश्राम कर रहे है उस मूर्ति की लंबाई भी करीब 5, मीटर के करीब है। और इस मूर्ति को कब और किसने बनवाया था यह कोई भी नही जानता है पर देश विदेश से हजारों किलोमीटर का लंबा सफर करके जो कोई भी इस सुंदर मूर्ति को देखता है दंग ही रह जाता है। आपको यह जानकर भी हैरानी होगी कि भगवान शिव के इस मंदिर में विष्णु भगवान की इतनी बड़ी प्रतिमा भला कैसे आई तो इस रहस्य का पता देवताओं और राक्षसों के समुंदर मंथन की कहानी से जुड़ा हुआ पाया गया। माना जाता है कि समुंदर मंथन के दौरान भगवान शिव ने श्रृष्टि को बचाने उसमे से निकले विष को अपने कंठ में उतार लिया जिस कारण उनका गला जलने लगा तो भगवान शिव काठमांडू की तरफ उतर सीमा की और चल दिए और झील बनाने उन्होंने अपनी त्रिशूल से पहाड़ पर वार किया जिससे वहां एक झील बन गई। जिससे उन्होंने अपनी प्यास बुझाई। कहते है कि कलयुग में इस झील को गोसाई कुंड के नाम से जाना जाता है। आपको यह जानकर भी आश्चर्य होगा कि यह मंदिर आज भी नेपाल के राज परिवार के लिए श्रफित है माना जाता है कि आज भी कोई राज परिवार का कोई भी व्यक्ति इस दिव्य मंदिर और मूर्ति के दर्शन कर लेता है तो उसकी मृत्यु होना निश्चित है। आज भी यह प्रथा यूं ही बरकरार वैसे ही चली हुई है कि कोई भी राजस्वी परिवार से जुड़ा हुआ शाही व्यक्ति इस मंदिर के दर्शनों को नहीं कर पाता है।
चम्बा , 26 सितंबर [ शिवानी ] ! वैसे तो नेपाल भी देवभूमि के नाम से प्रचलित है जहां पर बोध मंदिर तो है ही पर वहीं पर देखा जाए तो भगवान शिव और भगवान विष्णु को समर्पित कई मंदिर विराजमान है जिनमे सबसे प्रसिद्ध भगवान भोलेनाथ को समर्पित पशुपतिनाथ मंदिर इनमे एक है। अब हम अपने दर्शकों को नेपाल काठमांडू से करीब 10, किलोमीटर की दूरी पर एक ऐसे मंदिर के दर्शन करवाएंगे जिसका नाम नीलकंठ के नाम से भले ही जुड़ा हुआ है पर उसमे भगवान विष्णु सरोवर के बीच नाग शय्या पर लेटे हुए दिखाई देते है।
श्याम रंग से सशोभित इस भीमकाय मूर्ति का किसने और कब निर्माण करवाया उसका उल्लेख किसी के पास नही है। पर भगवान विष्णु को समर्पित इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह तालाब ब्रमाधित समुंदर का प्रतिनिधित्व करता है। आपको यह जानकर भी हैरानी होगी कि जिस तालाब में भगवान विष्णु प्रत्यक्ष रूप से विराजमान दिखते है तो वही भगवान शिव सावन में होने वाले उपवास के दौरान अप्रत्यक्ष रूप से इसी झील में उनकी अलौकिक छवि दिखाई देती है।
- विज्ञापन (Article Inline Ad) -
भगवान भोलेनाथ को समर्पित इस मंदिर का नाम बूढ़ानीलकंठ है और इस प्राचीन मंदिर को देखने के लिए दुनिया भर के सैलानी दूर दूर से नेपाल आते है। हैरानी की बात तो यह है कि शिव मंदिर के गर्भगृह में जहां पर भगवान भोले नाथ की परित्मा होनी चाहिए उस स्थान पर करीब 13,मीटर के इस तलाब में भगवान विष्णु जी पानी के मध्य नाग शय्या पर लेटे विश्राम करते हुए दिखाई देते है। इससे बड़ी हैरानी की बात एक और भी इस मंदिर में देखने को मिलती है कि जिस नाग शय्या पर भगवान विष्णु जी नाग शय्या पर विश्राम कर रहे है उस मूर्ति की लंबाई भी करीब 5, मीटर के करीब है। और इस मूर्ति को कब और किसने बनवाया था यह कोई भी नही जानता है पर देश विदेश से हजारों किलोमीटर का लंबा सफर करके जो कोई भी इस सुंदर मूर्ति को देखता है दंग ही रह जाता है।
आपको यह जानकर भी हैरानी होगी कि भगवान शिव के इस मंदिर में विष्णु भगवान की इतनी बड़ी प्रतिमा भला कैसे आई तो इस रहस्य का पता देवताओं और राक्षसों के समुंदर मंथन की कहानी से जुड़ा हुआ पाया गया। माना जाता है कि समुंदर मंथन के दौरान भगवान शिव ने श्रृष्टि को बचाने उसमे से निकले विष को अपने कंठ में उतार लिया जिस कारण उनका गला जलने लगा तो भगवान शिव काठमांडू की तरफ उतर सीमा की और चल दिए और झील बनाने उन्होंने अपनी त्रिशूल से पहाड़ पर वार किया जिससे वहां एक झील बन गई। जिससे उन्होंने अपनी प्यास बुझाई।
कहते है कि कलयुग में इस झील को गोसाई कुंड के नाम से जाना जाता है। आपको यह जानकर भी आश्चर्य होगा कि यह मंदिर आज भी नेपाल के राज परिवार के लिए श्रफित है माना जाता है कि आज भी कोई राज परिवार का कोई भी व्यक्ति इस दिव्य मंदिर और मूर्ति के दर्शन कर लेता है तो उसकी मृत्यु होना निश्चित है। आज भी यह प्रथा यूं ही बरकरार वैसे ही चली हुई है कि कोई भी राजस्वी परिवार से जुड़ा हुआ शाही व्यक्ति इस मंदिर के दर्शनों को नहीं कर पाता है।
- विज्ञापन (Article Bottom Ad) -
- विज्ञापन (Sidebar Ad 1) -
- विज्ञापन (Sidebar Ad 2) -
- विज्ञापन (Sidebar Ad 3) -
- विज्ञापन (Sidebar Ad 4) -