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चम्बा ! रविवार से चैत्र माह शुरू होने पर चम्बा में घर-द्वार सुनाए जाने वाले ढोलरू गीत की गूंज भी सुनाई देने लगी है। ढोलक की थाप पर गाए जाने वाले इस गाने को घुमंतू टोली (ढोलरू वाले) हर घर की दहलीज पर जा कर गा रहे हैं। आठ दिनों तक इन घुमंतू टोलियों की ओर से गाए जाने वाले ढोलरू गीत को शुभ मानते हुए लोग भी बड़े चाव से गीत को सुनने के बाद टोलियों को अनाज, कपड़े, वस्त्र मिठाइया व पैसे भेंट करते हैं। सदियों से यह मान्यता है कि चैत्र महीने के नजदीक होने पर उसका नाम तब तक नहीं नहीं लेना, जब तक ढोलरू वाले घर आकर इस महीने का नाम न सुना दें। संक्रांति से लेकर आठ दिनों तक ढोलरू वाले ढोलक बजाकर चैत्र का नाम गायन के माध्यम से सुनाते हैं। ढोलरू के प्रचलित बोल भी विनम्रता और कृतज्ञता से भरे हैं।भले ही अलग-अगल टोलियों ओर व्यक्तियों की ओर से ढोलरू का गीत भी अलग-अलग शैली में गाया जाता हो लेकिन इसका अर्थ एक ही है। दुनिया बनाने वाले भगवान, ईशवर, दुनिया दिखाने वाले माता पिता व दुनिया का ज्ञान देने वाले गुरुओं का नाम पहले लो और उसके बाद बाकी नाम लो। चम्बा जिला में ढोलरू जम्मू से आए बताए जाते हैं। देशी संवत के शुभ माने जाने वाले चैत्र माह का नाम लोगों को सुनाने के लिए जम्मू के बन्नी से हर साल लोग चम्बा पहुंचते थे। ढोलरू नाम से प्रसिद्ध यह लोग आठ दिनों तक घर-घर जाकर लोगों को चैत्र माह के आगमन पर गीत सुनाते थे। अपने पूर्वजों की परंपरा को निभाते हुए आज भी ये लोग गीत गाकर लोगों को चैत्र माह का नाम सुनाते हैं।
चम्बा ! रविवार से चैत्र माह शुरू होने पर चम्बा में घर-द्वार सुनाए जाने वाले ढोलरू गीत की गूंज भी सुनाई देने लगी है। ढोलक की थाप पर गाए जाने वाले इस गाने को घुमंतू टोली (ढोलरू वाले) हर घर की दहलीज पर जा कर गा रहे हैं। आठ दिनों तक इन घुमंतू टोलियों की ओर से गाए जाने वाले ढोलरू गीत को शुभ मानते हुए लोग भी बड़े चाव से गीत को सुनने के बाद टोलियों को अनाज, कपड़े, वस्त्र मिठाइया व पैसे भेंट करते हैं।
सदियों से यह मान्यता है कि चैत्र महीने के नजदीक होने पर उसका नाम तब तक नहीं नहीं लेना, जब तक ढोलरू वाले घर आकर इस महीने का नाम न सुना दें। संक्रांति से लेकर आठ दिनों तक ढोलरू वाले ढोलक बजाकर चैत्र का नाम गायन के माध्यम से सुनाते हैं।
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ढोलरू के प्रचलित बोल भी विनम्रता और कृतज्ञता से भरे हैं।भले ही अलग-अगल टोलियों ओर व्यक्तियों की ओर से ढोलरू का गीत भी अलग-अलग शैली में गाया जाता हो लेकिन इसका अर्थ एक ही है। दुनिया बनाने वाले भगवान, ईशवर, दुनिया दिखाने वाले माता पिता व दुनिया का ज्ञान देने वाले गुरुओं का नाम पहले लो और उसके बाद बाकी नाम लो।
चम्बा जिला में ढोलरू जम्मू से आए बताए जाते हैं। देशी संवत के शुभ माने जाने वाले चैत्र माह का नाम लोगों को सुनाने के लिए जम्मू के बन्नी से हर साल लोग चम्बा पहुंचते थे। ढोलरू नाम से प्रसिद्ध यह लोग आठ दिनों तक घर-घर जाकर लोगों को चैत्र माह के आगमन पर गीत सुनाते थे। अपने पूर्वजों की परंपरा को निभाते हुए आज भी ये लोग गीत गाकर लोगों को चैत्र माह का नाम सुनाते हैं।
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