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चम्बा ! सदियों से प्रथा चली आ रही गई कि घुमंतू गुज्जर हो या फिर गद्दी समुदाय के लोग इनका सारा जीवन अपने मवेशियों के साथ राह चलते ही मिट जाता है। बताए चले कि यह घुमंतू गुज्जर और गद्दी समुदाय के लोग गर्मियों के दिनों में अपने मवेशियों के साथ 6, महीने पहाड़ो पर,तो सर्दियां आते ही यह लोग फिर से अपने मवेशियों के साथ मैदानी इलाकों में प्लाएंन करना शुरू कर देते है। इन घुमंतू गुज्जर समुदाय के लोगों का सरकार के प्रति गहरा रोष है। इन लोगों का कहना है कि हम लोग साल में दो बार अपने जानवरों के साथ एक राज्य से दूसरे राज्य में जाते है जोकि हमारी मजबूरी है,क्योंकि सर्दियों के दिनों में पहाड़ों में घास नहीं होती है ऐसे में इन लोगों को मैदानी इलाकों में जाना ही पड़ता है। इन अल्प संख्यक लोगों ने सरकार के प्रति अपना रोष व्यक्त करते हुए कहा कि बड़े ही अफसोस की बात है कि सरकार द्वारा हमारे समुदाय के लोगों के लिए कोई सुविधा नहीं दी गई है। हमारा सारा परिवार इन मवेशियों के साथ सड़क में सोने को मजबूर है। इन लोगों ने सरकार को उनके किए गए वायदे की याद दिलाते हुए कहा कि प्रदेश सरकार ने हम लोगों को रास्ते में हर उस जगह पड़ाव बनाने की घोषणा की थी, पर वह सरकार की घोषणा आज दिन तक घोषणा बनकर ही रह गई है और आज भी हमारे लोग सर्दी गर्मी बरसात के दिनों में सड़क में सोने को मजबूर है। इन लोगों ने प्रदेश सरकार से मांग करते हुए कहा कि पक्की सराय तो दूर की बात है कम से कम हम गरीब लोगों के लिए रास्ते में विश्राम करने के लिए तिरपाल तो दिलवाई जाए ताकि हम जहां भी रात पड़े उस तारपाल के सहारे दिन गुजार सके। सड़को में हमेशा की तरह धूल से बदहाल हो चुकी इस नौजवान युवती का कहना है कि यह लोग अभी ही पठानकोट से आए है,और बारिश के कारण हमे बहुत ज्यादा समस्या हो जाती है। क्योंकि कोई समाधान नहीं होने के चले हम लोगों को खुले में रहना पड़ता है। यह बच्चे बहुत बड़ी ख्यात तो नहीं पर सर्दी गर्मी से बचने के लिए अपने लिए सरकार से बस छोटा सा टेंट मिल जाये यह मांग कर रहे है।
चम्बा ! सदियों से प्रथा चली आ रही गई कि घुमंतू गुज्जर हो या फिर गद्दी समुदाय के लोग इनका सारा जीवन अपने मवेशियों के साथ राह चलते ही मिट जाता है। बताए चले कि यह घुमंतू गुज्जर और गद्दी समुदाय के लोग गर्मियों के दिनों में अपने मवेशियों के साथ 6, महीने पहाड़ो पर,तो सर्दियां आते ही यह लोग फिर से अपने मवेशियों के साथ मैदानी इलाकों में प्लाएंन करना शुरू कर देते है। इन घुमंतू गुज्जर समुदाय के लोगों का सरकार के प्रति गहरा रोष है। इन लोगों का कहना है कि हम लोग साल में दो बार अपने जानवरों के साथ एक राज्य से दूसरे राज्य में जाते है जोकि हमारी मजबूरी है,क्योंकि सर्दियों के दिनों में पहाड़ों में घास नहीं होती है ऐसे में इन लोगों को मैदानी इलाकों में जाना ही पड़ता है।
इन अल्प संख्यक लोगों ने सरकार के प्रति अपना रोष व्यक्त करते हुए कहा कि बड़े ही अफसोस की बात है कि सरकार द्वारा हमारे समुदाय के लोगों के लिए कोई सुविधा नहीं दी गई है। हमारा सारा परिवार इन मवेशियों के साथ सड़क में सोने को मजबूर है। इन लोगों ने सरकार को उनके किए गए वायदे की याद दिलाते हुए कहा कि प्रदेश सरकार ने हम लोगों को रास्ते में हर उस जगह पड़ाव बनाने की घोषणा की थी, पर वह सरकार की घोषणा आज दिन तक घोषणा बनकर ही रह गई है और आज भी हमारे लोग सर्दी गर्मी बरसात के दिनों में सड़क में सोने को मजबूर है।
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इन लोगों ने प्रदेश सरकार से मांग करते हुए कहा कि पक्की सराय तो दूर की बात है कम से कम हम गरीब लोगों के लिए रास्ते में विश्राम करने के लिए तिरपाल तो दिलवाई जाए ताकि हम जहां भी रात पड़े उस तारपाल के सहारे दिन गुजार सके। सड़को में हमेशा की तरह धूल से बदहाल हो चुकी इस नौजवान युवती का कहना है कि यह लोग अभी ही पठानकोट से आए है,और बारिश के कारण हमे बहुत ज्यादा समस्या हो जाती है।
क्योंकि कोई समाधान नहीं होने के चले हम लोगों को खुले में रहना पड़ता है। यह बच्चे बहुत बड़ी ख्यात तो नहीं पर सर्दी गर्मी से बचने के लिए अपने लिए सरकार से बस छोटा सा टेंट मिल जाये यह मांग कर रहे है।
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