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चम्बा ! वैश्विक महामारी कोरोना के बीच आइए बात करते हैं । उन अफवाहों की जो न केवल किसी व्यक्ति विशेष की भावनाओं को आहत ही नहीं करती हैं अपितु एक समूचे परिवार को मानसिक प्रताड़ना के भवर में धकेल देती है। आधुनिक युग में जब मानव चांद पर आशियाना बनाने के मंसूबे बांध रहा हो, ऐसी परिस्थितियों में धरती पर, केवल आपसी मतभेदों या दूसरे को प्रताड़ित करने के उद्देश्य से, कोई झूठी अफवाहों के बलबूते पर किसी परिवार को निशाना बनाता है, तो न यह एक अत्यंत निंदनीय कार्य है, अपितु कानूनी दृष्टि से यह एक आपराधिक मामला भी बनता है । जी हां निसंदेह एक अपराधिक मामला है। ऐसा ही एक मामला इन दिनों, चंबा जिला के ओबडी मोहल्ला का चर्चा में आया है। यह मामला, हमारी मानसिकता की तमाम हदों को लांघकर हमारी अज्ञानता और कलुषता की घिनौनी तस्वीर भी प्रस्तुत करता है। एक मां लॉक डाउन की विकट स्थितियों के चलते अपने युवा पुत्र के लिए चिंतित होती है । चिंतित इसलिए कि वे पुत्र अपने परिवार की गुजर-बसर के लिए अपना शहर छोड़कर लगभग 350 किलोमीटर दूर प्रदेश की सड़कों में धूल फांक रहा है। यह युवा किसी निजी संस्थान में अस्थाई नौकरी करता है । कोरोना वायरस के बढ़ते कहर से जब समस्त दुनिया एक दूसरे के लिए चिंतित है। तो ऐसे में उस ममतामयी मां की स्थिति का अंदाजा आप भी लगाएं जिसका एक जवान पुत्र प्रदेश में पूर्णता अलग-थलग पड़ गया हो। इन 30 ,40 दिनों में हर स्तर पर प्रयास होते हैं । उस बेटे को घर वापस लाने के लिए मगर गाड़ियां बंद हैं सरकारी स्वीकृतियों की लंबी प्रक्रिया में उलझती उस मां को तब संजीवनी मिलती प्रतीत होती है। जब सरकार निर्धारित दिशा निर्देशों के अंतर्गत उस युवक को वापिस लाने की स्वीकृति देती है। तो मार्ग में विभिन्न स्तरों पर बच्चे की गहनता से स्वास्थ्य जांच होती है और वह बेटा सरकार के सभी दिशा निर्देशों की पालना करता है। बाकायदा 28 दिन क्वारंटाइन में गुजारता है, 28 दिन पूर्ण होने की अवधि पश्चात फिर स्वास्थ्य विभाग उस युवक की जांच करता है और रिपोर्ट पूर्ववत की भांति नेगेटिव ही आती है। फिर आरंभ होता है अफवाहों का बाजार। जी हां बच्चे के प्रति कुछ लोग कोरोना संक्रमित होने की अफवाह फैला देते हैं। आस पड़ोस में कानाफुसीयां आरम्भ होती है। परिवार में पल रहे एक अन्य छोटे बच्चे पर भी घर से बाहर दुकानों इत्यादि पर कोरोना संक्रमण के संदर्भ में ताने कसे जाते है। परिवार मानसिक परेशानियों की सभी सीमाओं को पार करके, निसहाय होकर एकाएक सामूहिक मौत पर विचार विमर्श करने लगता है। जी हां अत्यंत मार्मिक और बेहद दर्द भरा निर्णय। झूठी अफवाहों के कारण अगर कोई परिवार आत्महत्या तक की बात सोचने लगता है तो आप भी सोचिए कि हम किस युग में विचरण कर रहे है। हम भविष्य की पीढ़ी के लिए कैसे समाज का निर्माण कर रहे है। अफवाहों की यह निंदनीय घटना है। यह हमें झकझोरती है , हमारी आत्मा की भावनाओं को , संवेदना को जागृत होने को प्रेरित करती है। शर्मशार होने को विवश करती है। वहीं अगर हम कानूनी दृष्टि से इस पूरे घटनाक्रम का विश्लेषण करें तो संबंधित अधिकारियों का कथन है कि आपदा प्रबंधन अधिनियम के अंतर्गत इस तरह की अफवाहें फैलाने वाले लोगों पर विभिन्न धाराओं के अंतर्गत मुकदमा दर्ज कर के उन लोगो पर कड़ी कार्यवाही अमल में लाने का प्रावधान है। सभ्य समाज से यही आशा की जा सकती है कि कोरोना महामारी के चलते हम किसी भी परिवार या व्यक्ति के संदर्भ में इस प्रकार की झूठी अफवाहें फैलाकर। समाज में कटुता, घृणा, और असुरक्षा का माहौल कायम न करें। विपदा की इस घड़ी में सभी जन सामूहिक रूप से इस लड़ाई को जीतने में अपना योगदान दें।
चम्बा ! वैश्विक महामारी कोरोना के बीच आइए बात करते हैं । उन अफवाहों की जो न केवल किसी व्यक्ति विशेष की भावनाओं को आहत ही नहीं करती हैं अपितु एक समूचे परिवार को मानसिक प्रताड़ना के भवर में धकेल देती है। आधुनिक युग में जब मानव चांद पर आशियाना बनाने के मंसूबे बांध रहा हो, ऐसी परिस्थितियों में धरती पर, केवल आपसी मतभेदों या दूसरे को प्रताड़ित करने के उद्देश्य से, कोई झूठी अफवाहों के बलबूते पर किसी परिवार को निशाना बनाता है, तो न यह एक अत्यंत निंदनीय कार्य है, अपितु कानूनी दृष्टि से यह एक आपराधिक मामला भी बनता है । जी हां निसंदेह एक अपराधिक मामला है।
ऐसा ही एक मामला इन दिनों, चंबा जिला के ओबडी मोहल्ला का चर्चा में आया है। यह मामला, हमारी मानसिकता की तमाम हदों को लांघकर हमारी अज्ञानता और कलुषता की घिनौनी तस्वीर भी प्रस्तुत करता है। एक मां लॉक डाउन की विकट स्थितियों के चलते अपने युवा पुत्र के लिए चिंतित होती है । चिंतित इसलिए कि वे पुत्र अपने परिवार की गुजर-बसर के लिए अपना शहर छोड़कर लगभग 350 किलोमीटर दूर प्रदेश की सड़कों में धूल फांक रहा है। यह युवा किसी निजी संस्थान में अस्थाई नौकरी करता है । कोरोना वायरस के बढ़ते कहर से जब समस्त दुनिया एक दूसरे के लिए चिंतित है। तो ऐसे में उस ममतामयी मां की स्थिति का अंदाजा आप भी लगाएं जिसका एक जवान पुत्र प्रदेश में पूर्णता अलग-थलग पड़ गया हो। इन 30 ,40 दिनों में हर स्तर पर प्रयास होते हैं ।
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उस बेटे को घर वापस लाने के लिए मगर गाड़ियां बंद हैं सरकारी स्वीकृतियों की लंबी प्रक्रिया में उलझती उस मां को तब संजीवनी मिलती प्रतीत होती है। जब सरकार निर्धारित दिशा निर्देशों के अंतर्गत उस युवक को वापिस लाने की स्वीकृति देती है। तो मार्ग में विभिन्न स्तरों पर बच्चे की गहनता से स्वास्थ्य जांच होती है और वह बेटा सरकार के सभी दिशा निर्देशों की पालना करता है। बाकायदा 28 दिन क्वारंटाइन में गुजारता है, 28 दिन पूर्ण होने की अवधि पश्चात फिर स्वास्थ्य विभाग उस युवक की जांच करता है और रिपोर्ट पूर्ववत की भांति नेगेटिव ही आती है। फिर आरंभ होता है अफवाहों का बाजार। जी हां बच्चे के प्रति कुछ लोग कोरोना संक्रमित होने की अफवाह फैला देते हैं। आस पड़ोस में कानाफुसीयां आरम्भ होती है। परिवार में पल रहे एक अन्य छोटे बच्चे पर भी घर से बाहर दुकानों इत्यादि पर कोरोना संक्रमण के संदर्भ में ताने कसे जाते है। परिवार मानसिक परेशानियों की सभी सीमाओं को पार करके, निसहाय होकर एकाएक सामूहिक मौत पर विचार विमर्श करने लगता है। जी हां अत्यंत मार्मिक और बेहद दर्द भरा निर्णय। झूठी अफवाहों के कारण अगर कोई परिवार आत्महत्या तक की बात सोचने लगता है तो आप भी सोचिए कि हम किस युग में विचरण कर रहे है। हम भविष्य की पीढ़ी के लिए कैसे समाज का निर्माण कर रहे है। अफवाहों की यह निंदनीय घटना है। यह हमें झकझोरती है , हमारी आत्मा की भावनाओं को , संवेदना को जागृत होने को प्रेरित करती है। शर्मशार होने को विवश करती है।
वहीं अगर हम कानूनी दृष्टि से इस पूरे घटनाक्रम का विश्लेषण करें तो संबंधित अधिकारियों का कथन है कि आपदा प्रबंधन अधिनियम के अंतर्गत इस तरह की अफवाहें फैलाने वाले लोगों पर विभिन्न धाराओं के अंतर्गत मुकदमा दर्ज कर के उन लोगो पर कड़ी कार्यवाही अमल में लाने का प्रावधान है। सभ्य समाज से यही आशा की जा सकती है कि कोरोना महामारी के चलते हम किसी भी परिवार या व्यक्ति के संदर्भ में इस प्रकार की झूठी अफवाहें फैलाकर। समाज में कटुता, घृणा, और असुरक्षा का माहौल कायम न करें। विपदा की इस घड़ी में सभी जन सामूहिक रूप से इस लड़ाई को जीतने में अपना योगदान दें।
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