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कुल्लू ! कुल्लू जिले के बंजार क्षेत्र में फागली उत्सव खूब धूमधाम से मनाया जा रहा है । घाटी के कोठी पलाहच के कलवारी और पलाहच में बहुत ही जोश के साथ फागली उत्सव मनाया जा रहा है भगवान लक्ष्मीनारायण के सम्मान में ये उत्सव हर वर्ष बड़े हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है लोग अपने चेहरों पर पौराणिक मुखौटे लगाकर जंगली घास (शलूली) के चोले लगाकर ऐतिहासिक परम्परा का निर्वहन कर नृत्य करते हैं भारी संख्या में लोग इस उत्सव में भाग लेते हैं ! कलवारी के स्वालगा गांव से उत्सव का आरम्भ किया जाता है देवता खुड़ाडु की पूजा अर्चना के बाद मुखेटे पहने हुए लोग (जिनको स्थानीय बोली में मंडयाले कहते है ! कलवारी होते हुए नेनौट में प्रवेश करते हैं वहां स्थानीय लोगों द्वारा उनकी शक्तियों को परखने और दर्शन करने हेतु झाड़ियों से उनका मार्ग रोका जाता है मान्यता है कि मंड्यालो को भगवान लक्ष्मी नारायण का स्वरूप मन जाता है इसलिए उनमे देव खेल आती है और झाड़ियों के लगे विशाल बाड़े को तोड़ कर समाप्त कर देते है फिर बुहारा के पास घांडी नाम के खेत मे देवता नारायण के करडू को तैयार कर मंड्डयालों द्वारा पारम्परिक फागली गीत झीरू (अश्लील गीत )व नृत्य किया जाता है धार्मिक पारम्परिक एवम सांस्कृतिक विरासत को सझोए यह उत्सव माना जाता है कि मंड्याले और देव गुर खेल के माध्यम से बुरी शक्तियों को भगाते है और हर परिवार को हमेशा सुखी रहने का आश्रीवाद देते हैं ।
कुल्लू ! कुल्लू जिले के बंजार क्षेत्र में फागली उत्सव खूब धूमधाम से मनाया जा रहा है । घाटी के कोठी पलाहच के कलवारी और पलाहच में बहुत ही जोश के साथ फागली उत्सव मनाया जा रहा है भगवान लक्ष्मीनारायण के सम्मान में ये उत्सव हर वर्ष बड़े हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है लोग अपने चेहरों पर पौराणिक मुखौटे लगाकर जंगली घास (शलूली) के चोले लगाकर ऐतिहासिक परम्परा का निर्वहन कर नृत्य करते हैं भारी संख्या में लोग इस उत्सव में भाग लेते हैं ! कलवारी के स्वालगा गांव से उत्सव का आरम्भ किया जाता है
देवता खुड़ाडु की पूजा अर्चना के बाद मुखेटे पहने हुए लोग (जिनको स्थानीय बोली में मंडयाले कहते है ! कलवारी होते हुए नेनौट में प्रवेश करते हैं वहां स्थानीय लोगों द्वारा उनकी शक्तियों को परखने और दर्शन करने हेतु झाड़ियों से उनका मार्ग रोका जाता है मान्यता है कि मंड्यालो को भगवान लक्ष्मी नारायण का स्वरूप मन जाता है इसलिए उनमे देव खेल आती है और झाड़ियों के लगे विशाल बाड़े को तोड़ कर समाप्त कर देते है फिर बुहारा के पास घांडी नाम के खेत मे देवता नारायण के करडू को तैयार कर मंड्डयालों द्वारा पारम्परिक फागली गीत झीरू (अश्लील गीत )व नृत्य किया जाता है धार्मिक पारम्परिक एवम सांस्कृतिक विरासत को सझोए यह उत्सव माना जाता है कि मंड्याले और देव गुर खेल के माध्यम से बुरी शक्तियों को भगाते है और हर परिवार को हमेशा सुखी रहने का आश्रीवाद देते हैं ।
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